लूंग बाईसा की अंतिम यात्रा में प्रदेशभर से आए लोग
चारण समाज की आराध्य लूंग बाईसा के अंतिम दर्शनों के लिए श्रद्धालु का तांता लग गया। बाईसा के उपासना स्थल हिंगलाज माता मंदिर परिसर में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। दोपहर दो बजे हिंगलाज मंदिर परिसर से उनकी बैकुंठी निकाली गई।
बैकुंठी वलदरा गांव के मुख्य मार्गो से होते हुए पुन: हिंगलाज माता मंदिर पहुंची, जहां लूंग बाईसा के पार्थिव शरीर को समाधि दी गई। भक्तों ने जगह-जगह पुष्प वर्षा व अबीर-गुलाल से लूंग बाईसा को विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा में प्रदेशभर से भी बड़ी संख्या में चारण समाज के लोगों ने भाग लिया।
ऐसा था जीवन:
उनका जन्म विक्रम संवत 1987 को आषाढ़ सुदी द्वितीया सोमवार को हुआ। पिता का नाम अजितदान था, जबकि माता का नाम मैतबाई था। उनका विवाह विक्रम संवत 2004 को भूरसिंह गांगणिया के साथ हुआ।
विवाह के कुछ समय बाद ही पति भूरसिंह आर्मी में थे और शहीद हो गए। इसके बाद उन्होंने भक्ति के मार्ग को अपना लिया। धीरे-धीरे वे जन-जन की आराध्य बन गई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें