हैदराबाद. आज से संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है और देखने वाली बात होगी कि सरकार बजट में सूखे से परेशान किसानों के लिए क्या करती है। महाराष्ट्र में सूखे से किसानों का हाल बेहाल है। वहीं, पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में भी हालात बेहद खराब हैं। आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाके का अनंतपुर जिला। यह जिला बीते दस साल से सूखे की चपेट में है। जमीन बंजर हो चुकी है। फसल नहीं होने की वजह से पेट में आग लगी है। हालात के मारे लोग पेट की आग बुझाने के लिए अपनी बहू-बेटियों के जिस्म का सौदा करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
राज्य सरकार ने जिले में सूखे से निपटने के लिए इसी साल जनवरी में 'प्रोजेक्ट अनंत' की शुरुआत की है। लेकिन जमीन स्तर पर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। किसान कंगाली की हालत में हैं। आर्थिक तंगी और कर्ज के बोझ को उतारने के लिए यहां के किसान अपने घर की महिलाओं को दलालों के हाथों बेच रहे हैं। ये लड़कियां दिल्ली और मुंबई के रेड लाइट एरिया में सप्लाई की जाती हैं।
लगातार बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते एक दशक पहले तक करीब पांचवें साल आने वाला सूखा अब हर दूसरे साल आता है। इससे जमीन बंजर हो गई है। दाने-दाने के मोहताज लोग पेट पालने के लिए घर की इज्जत बेचने को मजबूर हैं। उधर, सरकार की लापरवाही से यह जिला अब महिलाओं की खरीद-फरोख्त का बाजार बनता जा रहा है। यहां के एक किसान के मुताबिक उसका परिवार अनंतपुर के कदरी में रहता है। सूखे के प्रकोप से खेत सूख चुके हैं। सभी दाने-दाने को मोहताज है। ऐसे भीषण हालात में इस किसान को बस एक ही रास्ता नजर आया। उसने अपनी बेटी का सौदा मुंबई में कर दिया। हाथ में जब पैसा आया तो फसल खड़ी हो गई, लेकिन एक बार फिर सूखे की मार ने खेती को तबाह कर दिया। वह बताते हैं कि हमें सरकार ने दो एकड़ ज़मीन दी थी, पर वो खेती लायक नहीं है। खेती के लिए पैसे की जरूरत थी। हमारे सामने कोई चारा नहीं रह गया था। बेटी को मुंबई भेजने से जो पैसा आया उसे खेत में लगाया, पर फसल दुबारा खराब हो गई और हम कंगाल हो गए। सरकार कोई सुध नहीं ले रही है।
एक पीड़ित लड़की के मुताबिक, 'खेती के लिए पैसा चाहिए। इसलिए उसे बेच दिया गया। यह कहा गया कि अब मुश्किलें दूर हो जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।' वह अकेली महिला नहीं, जिसे तंगी ने जिस्म के धंधे में धकेला हो। पूरे इलाके में ऐसी कई अभागी महिलाएं मिलेंगी जो किसी की बेटी हैं तो किसी की पत्नी और सूखे के बाद पैदा हुए हालात से लड़ने के लिए जिस्मफरोशी के घिनौने बाजार में बिकने को मजबूर हो गईं।
रायलसीमा इलाके के किसान ही नहीं, खेतिहर मजदूरों के घरों में भी चूल्हे की आंच ठंड पड़ चुकी है। बेटियों-बहुओं को बिकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। नालामाडा में रहने वाली पांच महिलाएं दिल्ली के जिस्म के दलालों के हाथों से निकलकर वापस अपने घर पहुंची हैं, लेकिन लौटने के बाद यहां के हालात इनके लिए और बदतर हो चुके हैं।
दो महिलाएं एचआईवी का शिकार हो चुकी हैं तो बाकी गरीबी और भुखमरी में घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। दिल्ली जाने के बाद मिला पैसा न तो इनके परिवार के हालात सुधार सका और न ही घर पर दोनों वक्त का खाना ही मयस्सर हो पाया। ऊपर से सरकारी अनदेखी इनकी तकलीफ को और बढ़ाती है। अब ये इतनी मायूस हो चुकी हैं कि वापस जिस्म के दलदल में उतरने के लिए सोच रही हैं। अनंतपुर के किसान रमेश नायक के मुताबिक, 'मैंने अपनी अंतिम बकरी भी बेच दी है ताकि परिवार के लिए चावल खरीद सकूं। आज से दस साल पहले से हालात बदलने लगे थे। सभी लोग मुसीबत हैं। हालात साल दर साल खराब होते जा रहे हैं।' अनंतपुर में लोग खुदकुशी के बारे में बहुत बातें करते हैं। एक निजी कंपनी में काम करने वाले शेख अनवर के मुताबिक, 'यह इस बात का सुबूत है कि अनंतपुर में सभी योजनाएं फेल हो चुकी हैं। यहां के किसानों और गरीब लोगों के सिर पर बहुत कर्ज है। सूखे ने उनकी कमर तोड़ दी है। कम बारिश से तो काम चलाया जा सकता है, लेकिन बिल्कुल बारिश न होना, हालात को बहुत गंभीर बना देता है। सामाजिक दबाव के चलते आत्महत्याएं हो रही हैं। एक बेटी की शादी करना भी पहाड़ जैसा लगता है। यहां परंपरा है कि बेटी की शादी में 50 से 100 परिवारों को भोजन कराया जाता है। लेकिन जब घर में परिवार के लिए ही अनाज काफी नहीं है तो बरात को कैसे खिलाया जाए।' अनंतपुर आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाके के उन चार जिलों में है, जहां पिछले दस साल से सूखा पड़ रहा है। कुछ इलाके तो भयंकर सूखे की चपेट में हैं। इन इलाकों के लिए बनी सरकारी योजनाएं फाइलों की शोभा बढ़ा रही हैं। मगर जमीन पर इनका कोई वजूद नहीं दिखता। किसानों को कोई राहत नहीं है। यही वजह है कि गरीबी, बेबसी और लाचारी में जनजाति बहुल यह इलाका जिस्मफरोशी की मंडी बनता जा रहा है।
अनंतपुर में हर पांच में से तीन साल सूखा पड़ता है। पिछले साल यह देश का दूसरा सबसे कम बारिश वाला जिला था। 19 हजार में से 10 हजार हेक्टेयर जमीन का दारोमदार सिर्फ बारिश पर है। सूखे ने पिछले साल 50 किसानों को खुदकुशी के लिए मजबूर किया, जबकि 10 साल में यहां करीब 700 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
नागम्मा की कहानी
41 साल की सुगली नागम्मा का घर अनंतपुर जिले में है। उसके पति ने कुछ साल पहले सूखे की मार झेल न पाने की वजह से आत्महत्या कर ली थी। परिवार का पेट पालने के लिए नागम्मा और उसके तीन बच्चे मजदूर के रूप में काम करने को मजबूर हैं। उसकी एक बेटी शादी के लायक हो गई है। इसके चलते बच्चों की पढ़ाई भी छूट गई है। नागम्मा को चिंता इस बात की नहीं है कि वह अपने परिवार का पेट कैसे पालेगी, बल्कि उसकी चिंता इस बात को लेकर है कि वह अपने पति के कर्ज को कैसे चुकाएगी। उसे इस बात की भी फिक्र है कि वह अपनी बेटियों की शादी कैसे करेगी। नागम्मा के मुताबिक, जब मैं इन बातों को सोचती हूं तो मेरे सामने अंधेरा छा जाता है। मुझे मरने से सिर्फ यही बात रोकती है कि मेरे मरने के बाद मेरे बच्चे अकेले पड़ जाएंगे। अनंतपुर को सूखे और तंगहाली के भंवर से निकालने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने 'प्रोजेक्ट अनंत' की शुरुआत की है। सरकार की कोशिश है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए अनंतपुर जिले में हमेशा के लिए सूखा खत्म करने की कोशिश की जा रही है। जिला प्रशासन ने इस प्रोजेक्ट को अंतिम तौर पर लागू करने से पहले इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च के निदेशक के पास भेजा है। इसके अलावा जिले में इंदिरा जलप्रभा परियोजना के तहत 60,000 एकड़ खेतों में 6 हजार कुएं खोदे गए हैं। ये खेत अनुसूचित जाति और जनजातियों के हैं। अनंतपुर के जिलाधिकारी दुर्गादास के मुताबिक, 'हम इंदिरा जलप्रभा योजना के तहत 500 से ज्यादा कुएं खोद चुके हैं और 280 पंपसेट के लिए बिजली कनेक्शन दे चुके हैं।'
राज्य सरकार ने जिले में सूखे से निपटने के लिए इसी साल जनवरी में 'प्रोजेक्ट अनंत' की शुरुआत की है। लेकिन जमीन स्तर पर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। किसान कंगाली की हालत में हैं। आर्थिक तंगी और कर्ज के बोझ को उतारने के लिए यहां के किसान अपने घर की महिलाओं को दलालों के हाथों बेच रहे हैं। ये लड़कियां दिल्ली और मुंबई के रेड लाइट एरिया में सप्लाई की जाती हैं।
एक पीड़ित लड़की के मुताबिक, 'खेती के लिए पैसा चाहिए। इसलिए उसे बेच दिया गया। यह कहा गया कि अब मुश्किलें दूर हो जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।' वह अकेली महिला नहीं, जिसे तंगी ने जिस्म के धंधे में धकेला हो। पूरे इलाके में ऐसी कई अभागी महिलाएं मिलेंगी जो किसी की बेटी हैं तो किसी की पत्नी और सूखे के बाद पैदा हुए हालात से लड़ने के लिए जिस्मफरोशी के घिनौने बाजार में बिकने को मजबूर हो गईं।
रायलसीमा इलाके के किसान ही नहीं, खेतिहर मजदूरों के घरों में भी चूल्हे की आंच ठंड पड़ चुकी है। बेटियों-बहुओं को बिकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। नालामाडा में रहने वाली पांच महिलाएं दिल्ली के जिस्म के दलालों के हाथों से निकलकर वापस अपने घर पहुंची हैं, लेकिन लौटने के बाद यहां के हालात इनके लिए और बदतर हो चुके हैं।
दो महिलाएं एचआईवी का शिकार हो चुकी हैं तो बाकी गरीबी और भुखमरी में घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं। दिल्ली जाने के बाद मिला पैसा न तो इनके परिवार के हालात सुधार सका और न ही घर पर दोनों वक्त का खाना ही मयस्सर हो पाया। ऊपर से सरकारी अनदेखी इनकी तकलीफ को और बढ़ाती है। अब ये इतनी मायूस हो चुकी हैं कि वापस जिस्म के दलदल में उतरने के लिए सोच रही हैं। अनंतपुर के किसान रमेश नायक के मुताबिक, 'मैंने अपनी अंतिम बकरी भी बेच दी है ताकि परिवार के लिए चावल खरीद सकूं। आज से दस साल पहले से हालात बदलने लगे थे। सभी लोग मुसीबत हैं। हालात साल दर साल खराब होते जा रहे हैं।' अनंतपुर में लोग खुदकुशी के बारे में बहुत बातें करते हैं। एक निजी कंपनी में काम करने वाले शेख अनवर के मुताबिक, 'यह इस बात का सुबूत है कि अनंतपुर में सभी योजनाएं फेल हो चुकी हैं। यहां के किसानों और गरीब लोगों के सिर पर बहुत कर्ज है। सूखे ने उनकी कमर तोड़ दी है। कम बारिश से तो काम चलाया जा सकता है, लेकिन बिल्कुल बारिश न होना, हालात को बहुत गंभीर बना देता है। सामाजिक दबाव के चलते आत्महत्याएं हो रही हैं। एक बेटी की शादी करना भी पहाड़ जैसा लगता है। यहां परंपरा है कि बेटी की शादी में 50 से 100 परिवारों को भोजन कराया जाता है। लेकिन जब घर में परिवार के लिए ही अनाज काफी नहीं है तो बरात को कैसे खिलाया जाए।' अनंतपुर आंध्र प्रदेश के रायलसीमा इलाके के उन चार जिलों में है, जहां पिछले दस साल से सूखा पड़ रहा है। कुछ इलाके तो भयंकर सूखे की चपेट में हैं। इन इलाकों के लिए बनी सरकारी योजनाएं फाइलों की शोभा बढ़ा रही हैं। मगर जमीन पर इनका कोई वजूद नहीं दिखता। किसानों को कोई राहत नहीं है। यही वजह है कि गरीबी, बेबसी और लाचारी में जनजाति बहुल यह इलाका जिस्मफरोशी की मंडी बनता जा रहा है।
अनंतपुर में हर पांच में से तीन साल सूखा पड़ता है। पिछले साल यह देश का दूसरा सबसे कम बारिश वाला जिला था। 19 हजार में से 10 हजार हेक्टेयर जमीन का दारोमदार सिर्फ बारिश पर है। सूखे ने पिछले साल 50 किसानों को खुदकुशी के लिए मजबूर किया, जबकि 10 साल में यहां करीब 700 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
नागम्मा की कहानी
41 साल की सुगली नागम्मा का घर अनंतपुर जिले में है। उसके पति ने कुछ साल पहले सूखे की मार झेल न पाने की वजह से आत्महत्या कर ली थी। परिवार का पेट पालने के लिए नागम्मा और उसके तीन बच्चे मजदूर के रूप में काम करने को मजबूर हैं। उसकी एक बेटी शादी के लायक हो गई है। इसके चलते बच्चों की पढ़ाई भी छूट गई है। नागम्मा को चिंता इस बात की नहीं है कि वह अपने परिवार का पेट कैसे पालेगी, बल्कि उसकी चिंता इस बात को लेकर है कि वह अपने पति के कर्ज को कैसे चुकाएगी। उसे इस बात की भी फिक्र है कि वह अपनी बेटियों की शादी कैसे करेगी। नागम्मा के मुताबिक, जब मैं इन बातों को सोचती हूं तो मेरे सामने अंधेरा छा जाता है। मुझे मरने से सिर्फ यही बात रोकती है कि मेरे मरने के बाद मेरे बच्चे अकेले पड़ जाएंगे। अनंतपुर को सूखे और तंगहाली के भंवर से निकालने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने 'प्रोजेक्ट अनंत' की शुरुआत की है। सरकार की कोशिश है कि इस प्रोजेक्ट के जरिए अनंतपुर जिले में हमेशा के लिए सूखा खत्म करने की कोशिश की जा रही है। जिला प्रशासन ने इस प्रोजेक्ट को अंतिम तौर पर लागू करने से पहले इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च के निदेशक के पास भेजा है। इसके अलावा जिले में इंदिरा जलप्रभा परियोजना के तहत 60,000 एकड़ खेतों में 6 हजार कुएं खोदे गए हैं। ये खेत अनुसूचित जाति और जनजातियों के हैं। अनंतपुर के जिलाधिकारी दुर्गादास के मुताबिक, 'हम इंदिरा जलप्रभा योजना के तहत 500 से ज्यादा कुएं खोद चुके हैं और 280 पंपसेट के लिए बिजली कनेक्शन दे चुके हैं।'
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