जांबाजों के हौसले ने लिखा इतिहास
लोंगेवाला की ऎतिहासिक लड़ाई
जैसलमेर। नापाक इरादो के साथ सरहद के भीतर घुस आए दुश्मन को खदेड़ने की हुंकार, लक्ष्य को नेस्तनाबूत करने का जज्बा लिए लड़ाकू विमानो से आकाशवीरो के अचूक निशाने, अर्द्धरात्रि के समय धुएं के काले बादलो से घिरा आकाश और मुंह खुली तोपो से निकली कर्णभेदी आवाज, चारो ओर मां भारती के जयकारे और अंतत: 16 दिसम्बर को सन्नाटे को चीरता विजयी उद्घोष...। वर्ष 1971 का यह दिन गवाह बना उस दुश्मन के इरादो को नेस्तनाबूद करने का, जिसने हिमाकत की।
रात के सन्नाटे को चीरती हवा के बीच धोरों में आती टैंक चलने की घर्र-घर्र आवाज। यह सब कुछ भारतीय सेना के सतर्क व होशियार जवानों को इस बात का आभास कराने के लिए काफी था कि दुश्मन ने आंख उठाने की हिमाकत की है। पश्चिमी सीमा के जैसलमेर सेक्टर में करीब चार दशक पहले लड़ी गई लोंगेवाला की ऎतिहासिक लड़ाई का नाम आते ही आज भी पाकिस्तानी सेना की रूह कांप उठती होगी। इस लड़ाई में पाकिस्तान को न सिर्फ मुंह की खानी पड़ी, बल्कि लोंगेवाला सामरिक इतिहास में दुश्मन के टैंकों की कब्रगाह के रूप में अमर हो गया।
...और लिखा सुनहरा इतिहास
वर्ष 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर विजय देशवासियों के लिए गौरवपूर्ण गाथा तो है ही, जैसलमेर के लिए खास मायना भी रखती है। यही वो जिला है, जहां पाकिस्तानी सैनिकों ने घुसने का दुस्साहस किया था लेकिन भारतीय सेना के जांबाजों ने लोंगेवाला में उन्हें करारी शिकस्त देकर उनके टैंकों की कब्रगाह बना दी और लिख दिया। इस युद्ध में मिली विजय आज भी थार के युवाओं को सरहद की रक्षा के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।
दिखाई दुनिया को ताकत
सरहदी जैसलमेर जिले का सीमा पर बसा गांव लोंगेवाला आज भी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। काबुल और सिंध से अजमेर और आगरा के रास्तों से जुड़े इस गांव में पंजाब रेजिमेन्ट की 23वीं बटालियन और वायुसेना के विमानों ने अपनी ताकत के झंडे गाड़े थे।
बारूदी सुरंगें न हथियारो का जखीरा
मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक जेपी दत्ता की फिल्म "बॉर्डर" की बदौलत एक छोटा से गांव को देश व दुनिया के घर-घर में पहचान मिली। लोंगेवाला की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लेफ्टिनेंट धर्मवीर के शब्दों में यह लड़ाई बरसों तक वीरता की अनूठी कहानी, कत्तüव्य के प्रति समर्पण भाव, राष्ट्रभक्ति और जवानों के उत्साह के साथ गर्व से याद की जाएगी। इस लड़ाई में न तो दुश्मन को रोकने के लिए बारूदी सुरंगें बिछाई गई थी और न ही बड़े हथियारों का जखीरा। साथ था तो सिर्फ जवानों का हौसला और राष्ट्रसेवा की भावना, जिसने 4 व 5 दिसम्बर 1971 को वीरता का नया इतिहास लिख डाला। लोंगेवाला पोस्ट की सुरक्षा का जिम्मा उठाने वाली टुकड़ी पर सीमा स्तम्भ संख्या 632 व 239 के बीच के क्षेत्र में दायित्व सौंपा गया था।
यूं चला घटनाक्रम
भारत-पाक युद्ध के तहत तीन दिसम्बर 1971 को शुरू हुई लड़ाई में पाकिस्तान ने जोधपुर सहित पश्चिमी सीमा के कई वायु रक्षा ठिकानों को निशाना बनाया था, लेकिन दुश्मन की थल सेना की हलचल दिखाई नहीं दी। अगले दिन सुबह नौ बजे कमांडिंग आफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल एम. के. हुसैन ने स्थिति की समीक्षा की और वहां से लौटकर मेजर चांदपुरी ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कड़ी चौकसी की हिदायत दी। आधी रात को दो बजे गोलाबारी शुरू हुई। पाकिस्तान ने पूरी आम्र्ड रेजिमेंट व दो इंफेन्ट्री स्क्वाड्रन के साथ धावा बोलने का दुस्साहस किया था, लेकिन भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों के अचूक निशानों से लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह बना डाला। पाकिस्तान के करीब चालीस टैंक वहां दफन हो गए।
रात के सन्नाटे को चीरती हवा के बीच धोरों में आती टैंक चलने की घर्र-घर्र आवाज। यह सब कुछ भारतीय सेना के सतर्क व होशियार जवानों को इस बात का आभास कराने के लिए काफी था कि दुश्मन ने आंख उठाने की हिमाकत की है। पश्चिमी सीमा के जैसलमेर सेक्टर में करीब चार दशक पहले लड़ी गई लोंगेवाला की ऎतिहासिक लड़ाई का नाम आते ही आज भी पाकिस्तानी सेना की रूह कांप उठती होगी। इस लड़ाई में पाकिस्तान को न सिर्फ मुंह की खानी पड़ी, बल्कि लोंगेवाला सामरिक इतिहास में दुश्मन के टैंकों की कब्रगाह के रूप में अमर हो गया।
...और लिखा सुनहरा इतिहास
वर्ष 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर विजय देशवासियों के लिए गौरवपूर्ण गाथा तो है ही, जैसलमेर के लिए खास मायना भी रखती है। यही वो जिला है, जहां पाकिस्तानी सैनिकों ने घुसने का दुस्साहस किया था लेकिन भारतीय सेना के जांबाजों ने लोंगेवाला में उन्हें करारी शिकस्त देकर उनके टैंकों की कब्रगाह बना दी और लिख दिया। इस युद्ध में मिली विजय आज भी थार के युवाओं को सरहद की रक्षा के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।
दिखाई दुनिया को ताकत
सरहदी जैसलमेर जिले का सीमा पर बसा गांव लोंगेवाला आज भी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। काबुल और सिंध से अजमेर और आगरा के रास्तों से जुड़े इस गांव में पंजाब रेजिमेन्ट की 23वीं बटालियन और वायुसेना के विमानों ने अपनी ताकत के झंडे गाड़े थे।
बारूदी सुरंगें न हथियारो का जखीरा
मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक जेपी दत्ता की फिल्म "बॉर्डर" की बदौलत एक छोटा से गांव को देश व दुनिया के घर-घर में पहचान मिली। लोंगेवाला की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लेफ्टिनेंट धर्मवीर के शब्दों में यह लड़ाई बरसों तक वीरता की अनूठी कहानी, कत्तüव्य के प्रति समर्पण भाव, राष्ट्रभक्ति और जवानों के उत्साह के साथ गर्व से याद की जाएगी। इस लड़ाई में न तो दुश्मन को रोकने के लिए बारूदी सुरंगें बिछाई गई थी और न ही बड़े हथियारों का जखीरा। साथ था तो सिर्फ जवानों का हौसला और राष्ट्रसेवा की भावना, जिसने 4 व 5 दिसम्बर 1971 को वीरता का नया इतिहास लिख डाला। लोंगेवाला पोस्ट की सुरक्षा का जिम्मा उठाने वाली टुकड़ी पर सीमा स्तम्भ संख्या 632 व 239 के बीच के क्षेत्र में दायित्व सौंपा गया था।
यूं चला घटनाक्रम
भारत-पाक युद्ध के तहत तीन दिसम्बर 1971 को शुरू हुई लड़ाई में पाकिस्तान ने जोधपुर सहित पश्चिमी सीमा के कई वायु रक्षा ठिकानों को निशाना बनाया था, लेकिन दुश्मन की थल सेना की हलचल दिखाई नहीं दी। अगले दिन सुबह नौ बजे कमांडिंग आफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल एम. के. हुसैन ने स्थिति की समीक्षा की और वहां से लौटकर मेजर चांदपुरी ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कड़ी चौकसी की हिदायत दी। आधी रात को दो बजे गोलाबारी शुरू हुई। पाकिस्तान ने पूरी आम्र्ड रेजिमेंट व दो इंफेन्ट्री स्क्वाड्रन के साथ धावा बोलने का दुस्साहस किया था, लेकिन भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों के अचूक निशानों से लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह बना डाला। पाकिस्तान के करीब चालीस टैंक वहां दफन हो गए।
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