रविवार, 23 दिसंबर 2012

अज्ञात बीमारी से मर रही भेड़ें, पशुपालक चिंतित


अज्ञात बीमारी से मर रही भेड़ें, पशुपालक चिंतित

भेजी जाएगी टीम भेड़ों की जांच की जाएगी

कोई कार्रवाई नहीं हुई नहीं कराया था बीमा



जिला मुख्यालय से 11 किमी दूर कानीवाड़ा का मामला, एक के बाद एक भेड़-बकरियों के मरने से पशुपालकों की चिंता बढ़ी

जालोर



निकटवर्ती कानीवाड़ा गांव में पिछले पंद्रह दिन से गांव में फैली अज्ञात बीमारी के कारण रोजाना पांच से सात भेडें़ व बकरियां काल कवलित हो रही हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अज्ञात बीमारी से भेड़ों ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मुंह में छाले होने के साथ भेड़ों के घुटने जाम होने से वे चल नहीं पाती। गांव के नाथाराम देवासी ने बताया कि चार वर्ष पहले इस तरह की बीमारी फैली थी, उस दौरान भी सैकड़ों भेड़ों की मौत हुई थी। गांव में पशु चिकित्सा सुविधा नहीं होने के कारण ग्रामीणों को पशुओं के इलाज के लिए जिला मुख्यालय या निकटस्थ आहोर कस्बे में जाना पड़ता है। ऐसे में तत्काल इलाज के अभाव में पशु काल कलवित हो रहे हैं। इधर, प्रशासन व पशु चिकित्साकर्मियों को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। पशु चिकित्सालय के कार्मिकों की मानें तो कानीवाड़ा क्षेत्र के पशुओं की देखरेख गोदन गांव के पशुधन सहायक द्वारा की जाती है, लेकिन काफी समय से यहां पद रिक्त होने से गांव में पशुओं का इलाज नहीं हो रहा है। फिलवक्त इस क्षेत्र का अतिरिक्त कार्यभार जालोर पशुपालन विभाग के पास ही है, लेकिन कर्मचारियों को इसकी जानकारी नहीं है। कानीवाड़ा क्षेत्र के पशुपालक जागरूकता की कमी के कारण विभाग को इसकी जानकारी तक नहीं दे पाए हैं।

नहीं लगाए गए टीके : पशु पालन विभाग की ओर से कानीवाड़ा गांव में पशुओं के निशुल्क टीकाकरण का कैंप काफी समय से नहीं लगाया गया है। ग्रामीणों ने बताया कि पशुओं को टीका लगाने के लिए बाजार से इंजेक्शन उन्हें ही लाना पड़ता है। विभाग की ओर से सालभर में एक बार भी टीकाकरण शिविर नहीं लगाया गया है। अज्ञात बीमारी के कारण भेड़ें मरने से ग्रामीण काफी चिंतित हैं। प्रतिदिन औसतन पांच से सात भेड़ें मर रही हैं। खास बात यह है कि इन मरने वाली भेड़ों व बकरियों एक साल से कम या करीब एक साल है। इसके अलावा कई भेड़-बकरियां बाड़े में अचेत अवस्था में हैं।

गांव में हैं करीब दो हजार भेड़ें : कानीवाड़ा गांव में करीब पंद्रह परिवार देवासी जाति के हैं। जिनकी आजीविका का मुख्य साधन भेड़-बकरियां ही हैं। इनसे मिलने वाले दूध और ऊन को बेचकर ये परिवार का गुजारा करते हैं। गांव में इन परिवारों के पास करीब दो हजार भेड़ें हैं। पिछले पंद्रह दिन लगभग 50 भेड़-बकरियां इस बीमारी से मर चुकी हैं। इसके अलावा बाड़े में मौजूद अन्य बीमार भेड़ें धीरे-धीरे इस बीमारी से निढाल पड़ी हैं।

नहीं मिलती निशुल्क दवाइयां

पशु चिकित्सक नहीं होने से यह परेशानी उठानी पड़ रही है। ग्रामीणों ने बताया कि एक साल से न तो पशुओं का इलाज किया गया न ही दवाइयां दी गई। पशु जब भी बीमार होते हैं, तो बाजार से दवाइयां लाकर पशुओं को देनी पड़ती है। इधर, जिला मुख्यालय पर भी पशु चिकित्सा प्रभारी व वेटेरनरी का पद रिक्त होने से पशु चिकित्सालय में निशुल्क दवाइयां नहीं पहुंच रही हैं।

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