रविवार, 4 नवंबर 2012

पिता का साया सर से उठने के बावजूद ये बेटियां बनीं गांव का गौरव


पिता का साया सर से उठने के बावजूद ये बेटियां बनीं गांव का गौरव

बाड़मेर.  बालोतरा उपखंड के तिरसिंगड़ी चौहान गांव की विधवा महिला लेहरो देवी के पति का दो वर्ष पूर्व देहांत हुआ तो मानो उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। तीन बेटियों व सबसे छोटे बेटे की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई, वे एकदम टूट सी गई।

मगर आज उनका अपनी होनहार बेटियों की मेहनत के बूते साधन संपन्न परिवार हैं। घर में धन-धान की कोई कमी नहीं। सरपंच सहित गांव वाले भी लेहरोदेवी की बेटियों को गांव का गौरव मानते हैं।


अल सवेरे से काम पर जुट जाती हैं तीनों बहने
 

लेहरोदेवी की 12 वर्षीय बेटी मापू अलसवेरे बस में बालोतरा जाती है और वहां से अपनी दुकान के लिए ताजी सब्जियां खरीदकर लाती हैं। उनकी दूसरी बेटी शांति (16 वर्ष) फुटकर किराना की दुकान व आटा चक्की संभालती हैं और छोटी बेटी हुड़की भी दुकान में उसका सहयोग करती हैं।

करीब पांच सौ की आबादी वाले तिरसिंगड़ी चौहान गांव में इस दुकान पर बिक्री भी अच्छी चलती है। इतना ही नहीं ये अपने छोटे भाई नरपत को नियमित स्कूल भी भेजती हैं। वह गांव की स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है।


दुर्घटना में उठा पिता का साया
करीब दो वर्ष पूर्व तिरसिंगड़ी चौहान गांव में अपनी दुकान पर मांगीलाल गवारिया एक ग्राहक की गाड़ी के टायर से पंचर निकालने के लिए टायर खोल रहे थे। तभी टायर की रिंग व व्हील उछलकर उनके सिर पर लगी। इससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी।

लेहरो देवी गर्व के साथ कहती है कि पति के देहांत के बाद मैं तो एकदम टूट गई थी, पर बेटियों ने हौसला बंधाया और दुकान का कामकाज पहले की तरह संभाल लिया। बेटियों के कारण ही लोगों के सामने हाथ फैलाने की नौबत नहीं आई।

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