सोमवार, 5 नवंबर 2012

सिन्धी लोक कहानी 'मूमल राणो' ..


आओ राणा रहो रात.. शाह लतीफ़ का 'मूमल राणो' नूरजहाँ की आवाज़ में



सिन्धी लोक कहानी 'मूमल राणो' ..



Photo Courtesy : The Sketches! Music Band from Hyderabad, Sindh.

मीरपुर माथेलो के राजा नन्द को शिकार करते जंगली सूअर का एक जादुई दांत हासिल हुआ जो पानी सोख लेता था. राजा ने उसकी मदद से अपना सारा खज़ाना नदी के पेट में छिपा दिया. इत्तिफाक से इस बात की भनक एक तांत्रिक को पड़ गई. एक दिन जब राजा महल से बाहर था, वह तांत्रिक आया और अपनी बीमारी के इलाज के लिए सूअर का दांत ज़रूरी बताकर मदद की गुहार लगाईं. राजा की सबसे छोटी और सबसे सुन्दर बेटी मूमल को उस पर दया आ गई और उसने वह दांत ढूंढकर तांत्रिक को सौंप दिया. जब राजा नन्द वापस आया और उसको साडी बात पता चली तो वह मूमल पर बड़ा नाराज़ हुआ. तब सबसे बड़ी और चतुर बेटी सूमल ने पिता से वायदा किया कि खोये खज़ाने से भी कई गुना अधिक खज़ाना जोड़कर देगी. सूमल का अगला क़दम था काक नदी के किनारे पर तिलिस्मी 'काक महल' का निर्माण करवाना. और फिर यह मुनादी कि जो भी इस महल के हर तिलिस्म को पार कर मूमल तक पहुंचेगा, उसको पायेगा वरना अपना सारा धन, माल गँवाएगा. मूमल को पाने कई राजा, राजकुमार आये पर असफल हुए और सब कुछ लुटा बैठे. इस तरह सूमल पिता से किये वायदे अनुसार खज़ाना बढ़ाती रही. उमरकोट के राजा हमीर और उसके तीन वजीरों ने भी अपनी किस्मत आज़मानी चाही जिसमें राजा हमीर का वीर और चतुर वजीर राणा मेंधरा कामियाब हुआ..


राणा मेंध्रो (महेंद्र) तिलिस्मी 'काक महल' को पार कर राजा नन्द की सबसे प्यारी सुन्दर बेटी मूमल तक पहुँचता है और उस से ब्याह रचाता है. राजा हमीर अपनी हार स्वीकार नहीं कर पाता और बदला लेने की तरकीब सोचता रहता. राणा रोज़ रात को ऊँट पर चढ़कर उमरकोट से मीरपुर माथेलो आता था, मूमल से मिलने. राजा हमीर ने ईर्ष्यावश अपने वजीर महेंद्र को नज़रबंद करवा दिया ताकि वह मूमल से मिलने न जा पाए. पर राणा ने अपना नियम नहीं तोड़ा पर एक रात उसे आने में देर हो गई. मूमल की बहन सूमल ने जब अपनी छोटी बहन को उदास देखा तो हंसी ठिठोली करते हुए वह राणा के कपडे पहनकर आ गई. मूमल मुस्कुराने लगी और दोनों बहनें बतियाती हुई सो गयीं. रात के किसी पहर राणा आया, मूमल को किसी ग़ैर मर्द के साथ सोया जान बहुत दुखी हुआ. उसे बेवफा समझ वापस लौट गया. अपनी छड़ी वहीँ छोड़ आया. सुबह जब मूमल उठी तो राणे की छड़ी देख उसे अंदेशा हुआ कि राणा को ग़लतफ़हमी हुई है. मूमल ने राणा को संदेसे भेजे पर वह नहीं आया. वह इंतज़ार करती रही. आखिर भेस बदलकर राणे से मिलने गई, उस से दोस्ती भी कर ली. जब राणा पर मूमल का भेद खुल गया तो वह और नाराज़ हो गया. मूमल सहन नहीं कर पाई और आग में जलकर अपनी जान दे दी. राणा को पता चला तो वह भी मूमल के मार्ग पर चल पड़ा.. मूमल के प्रेम और इंतजार को शाह अब्दुल लतीफ़ भिटाई ने 'सुर मूमल राणो' में पिरोया है. शाह ने जिस अंदाज़ में कहा है.. उस अंदाज़ में यह गाथा आप तक पहुँचाना मेरे बस का नहीं.. कुछ क़तरे और सतरें बुनती चलूंगी फिर भी.


राणा की राह तकती मूमल कहती है कि राणा, तुम लौट आओ, मेरे साथ रहो, तुम्हारे ऊँट को मैं चन्दन खिलाऊँगी..


शाह की वाई
आउ राणा रहु रात, तुहिंजे चांगल खे चन्दन चारियाँ .
रातियाँ डीहाँ रूह में, तन तुहिंजे जी तात
तुहिंजे चांगल खे चन्दन चारियाँ.
वेठी नित निहारियाँ, अचीं जे पिर्भात
तुहिंजे चांगल खे चन्दन चारियाँ.
मूंखे आहे मेंध्रा, वाई तुहिंजी वात
तुहिंजे चांगल खे चन्दन चारियाँ.
अदियूं! शाह लतीफ़ चए, डातर डीन्दुम डात.
तुहिंजे चांगल खे चन्दन चारियाँ.
आउ राणा रहु रात...
(सुर 'मूमल राणो', दास्ताँ आठवीं)




हिंदी अनुवाद :


आओ राणा रहो रात, तेरे चांगे को चन्दन चराऊँ
रात और दिन रूह में, तुम्हें पाने की आस
तेरे चांगे को चन्दन चराऊँ
बैठी राह निहारूं, आओ तो हो प्रभात
तेरे चांगे को चन्दन चराऊँ
मुझे तो है मेंधरा, बस तुम्हारी याद
तेरे चांगे को चन्दन चराऊँ
बहनों! शाह लतीफ़ कहे, दाता पर है आस
तेरे चांगे को चन्दन चराऊँ...
आओ राणा रहो रात...


वाई - गाया जाने वाला सिन्धी काव्य-रूप
चांगा - ऊँट


अनुवाद की कोशिश : विम्मी सदारंगानी


पुरानी सिन्धी फिल्म 'मूमल राणो' में शाह की लतीफ़ की यह 'वाई', मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ ने गाई है. इस लिंक पर सुनी जा सकती है http://www.youtube.com/watch?v=aQVuLXxsEbI

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