चलते ऑटो से बीच सड़क गिरा स्कूली बच्चा,
ड्राइवर को पता ही नहीं चला
शहर के एक प्राइवेट स्कूल में अध्ययनरत 6 वर्षीय छात्र ऑटो रिक्शा से गिरने के कारण हुआ घायल, काफी दूर तक जाने के बाद लोगों ने रुकवाया चालक को, ओवरलोड था ऑटो, ड्राइवर को सुनाई खरी खोटी
जालोर शहर के कलेक्ट्रेट के सामने मुख्य मार्ग पर मंगलवार को एक स्कूली बच्चा चलते ऑटो रिक्शा से बीच सड़क पर गिर गया। जिससे उसके पैर और सिर पर चोटें आई हैं। हालांकि प्राथमिक उपचार के बाद उसे घर भेज दिया गया। ऑटो रिक्शा से गिरे इस स्कूली बच्चे के बारे में वाहनचालक को पता तक नहीं चला। ऐसे में मार्ग से गुजर रहे कुछ लोगों ने बच्चे को उठाया और काफी दूर तक जाने के बाद ऑटो रिक्शा चालक को रुकवाकर उसे खूब खरी खोटी सुनाई। जानकारी के अनुसार शहर के गांधी चौक निवासी मानस (6) पुत्र हेमंत श्रीमाली सेंट पॉल स्कूल की तीसरी कक्षा में पढ़ता है। स्कूल से छुट्टी के बाद ऑटो रिक्शा में घर आ रहा था। इस दौरान कलेक्ट्रेट के सामने वह ऑटो से गिर गया, जिसे लोगों ने राजकीय अस्पताल पहुंचाया। वहीं ऑटो चालक को लोगों ने कुछ ही दूरी पर रुकवाकर लताड़ लगाई।
स्कूल संचालकों के पास नहीं है बसें
देखा जाए तो जिला मुख्यालय ही नहीं, बल्कि जिले भर में संचालित होने वाली कई प्राइवेट स्कूलों में बालवाहिनी या बच्चों के सुरक्षित परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में स्कूल में पढऩे वाले सैकड़ों बच्चे रोजाना ऑटो रिक्शा में असुरक्षित रूप से स्कूल से घर और घर से स्कूल जाते हैं। गौरतलब है कि स्कूली बच्चों के सुरक्षित परिवहन को लेकर परिवहन विभाग की ओर से बाल वाहिनी योजना शुरू की गई थी, लेकिन इस योजना को शुरू हुए पांच साल बीतने के बावजूद स्कूल संचालकों के पास बालवाहिनी की कोई व्यवस्था नहीं है। वहीं इस संबंध में परिवहन कार्यालय में अब तक जिले भर के साठ से सत्तर प्राइवेट स्कूलों में बालवाहिनी का पंजीकरण हो रखा है।
आप भी बरतें सावधानी
हालांकि यह हादसा यहीं तक टल गया, लेकिन इससे सभी को सबक मिलता है कि बच्चों को टैक्सी के जरिए स्कूल भेजते समय सावधानी जरूर बरती जाए। आपने यदि किसी ऑटो टैक्सी को हायर किया है तो यह ध्यान अवश्य रखें कि कहीं टैक्सी चालक नियमों को तोड़कर टैक्सी में अधिक बच्चे तो नहीं बैठा रहा है। साथ ही वह बच्चों को किस प्रकार से बैठाता है। इसका भी ध्यान रखें। अधिकांश टैक्सी वाले वाहन के चारों ओर बस्ते लटका देते हैं और ड्राइवर सीट से लेकर पीछे तक छोटे से टैंपो में 10 से 15 बच्चे बैठा लेते हैं जो गलत है। यदि आपका बच्चा भी ऐसी ही स्थिति में स्कूल आता जाता है तो सावधानी बरतें। टैक्सी चालक को मना करें कि वह आवश्यकता से अधिक बच्चों को ना बैठाएं।
अभिभावकों में नहीं है जागरूकता
देखा जाए तो शहर की विभिन्न प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को अभिभावक खुद ऑटो रिक्शा में ही स्कूल भेजते हैं। उनकी ओर से यह भी तय नहीं किया जाता है कि ऑटो रिक्शा चालक और वाहन की स्थिति क्या है और सुरक्षित परिवहन को लेकर वह वाहन सही है भी या नहीं। ऐसे में खुद अभिभावक अगर बालवाहिनी में बच्चों को स्कूल में भेजें तो इस प्रकार के हादसों पर अंकुश लग सकता है।
बच्चे को चोट आने पर ले गए सरकारी अस्पताल, उपचार के बाद दी छुट्टी
निजी स्कूलों में लगे ऑटो चालक बरत रहे लापरवाही, जोखिम में डाल रहे स्कूली बच्चों की जान
पांच साल पहले जारी हुए थे बाल वाहिनी चलाने के आदेश, अभी भी जिले भर की कई प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे जाते हैं ऑटो रिक्शा में
परिवहन विभाग ने कहा सभी स्कूलों के संचालकों को जारी किया था पत्र, इसके बावजूद बालवाहिनी के बजाय ऑटो रिक्शा का हो रहा संचालन
पुलिस और परिवहन विभाग है जिम्मेदार
सरकार की ओर से 21 जुलाई 1998 को बालवाहिनी योजना लागू की गई थी। जिसके तहत बच्चों के सुरक्षित परिवहन को लेकर संचालक को अनुबंधित बस, मिनी बस, टैक्सी, मैक्सी व ऑटो रिक्शा वाहनों की सूची, उनके पंजीयन नंबर, विद्यालय का पूरा नाम पता व चालक का विवरण जिसमें चालक का लाइसेंस पांच वर्ष पुराना होना चाहिए की सूचना परिवहन अधिकारी के समक्ष पेश करने का नियम था। ऐसा नहीं करने पर दुर्घटना के दौरान विद्यालय प्रशासन को इसका जिम्मेदार ठहराया जाएगा। साथ ही परिवहन और पुलिस विभाग की ओर से वाहन जब्त कर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
सख्ती से की जाएगी कार्रवाई
॥इस प्रकार की घटना होना वाकई में चिंताजनक है। यह गंभीर मामला है। भविष्य में ऐसी घटनाएं वापस न हो इसके पूरे प्रयास किए जाएंगे, लेकिन इसके साथ ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों में भी जागरूकता जरूरी है। उन्हें चाहिए कि वे थोड़े से पैसों के लालच में इस प्रकार के ऑटो रिक्शा हायर न करें जो जरूरत से ज्यादा बच्चों को बिठाते हों। घटना की रोकथाम के लिए हम ऑटो रिक्शा चालकों से भी बातचीत करेंगे। दीपक कुमार, एसपी एवं अध्यक्ष बाल वाहिनी समिति
ऐसी होनी चाहिए बाल वाहिनी
विद्यालयों में संचालित बाल वाहिनी का रंग पीला होना चाहिए और इस पर आसमानी रंग की पट्टी होनी भी जरूरी है। साथ ही वाहन पर बालवाहिनी भी लिखना होगा। इस गाड़ी के शीशों और खिड़कियों पर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे कोई छात्र वाहन से अपना शरीर का कोई अंग बाहर न निकाल पाए। इस वाहन में स्पीड गवर्नर मशीन भी लगी होनी चाहिए, जिससे इसकी स्पीड कंट्रोल हो सके, जिससे निर्धारित गति से ही यह वाहन चल पाए।
शहर के एक प्राइवेट स्कूल में अध्ययनरत 6 वर्षीय छात्र ऑटो रिक्शा से गिरने के कारण हुआ घायल, काफी दूर तक जाने के बाद लोगों ने रुकवाया चालक को, ओवरलोड था ऑटो, ड्राइवर को सुनाई खरी खोटी
जालोर शहर के कलेक्ट्रेट के सामने मुख्य मार्ग पर मंगलवार को एक स्कूली बच्चा चलते ऑटो रिक्शा से बीच सड़क पर गिर गया। जिससे उसके पैर और सिर पर चोटें आई हैं। हालांकि प्राथमिक उपचार के बाद उसे घर भेज दिया गया। ऑटो रिक्शा से गिरे इस स्कूली बच्चे के बारे में वाहनचालक को पता तक नहीं चला। ऐसे में मार्ग से गुजर रहे कुछ लोगों ने बच्चे को उठाया और काफी दूर तक जाने के बाद ऑटो रिक्शा चालक को रुकवाकर उसे खूब खरी खोटी सुनाई। जानकारी के अनुसार शहर के गांधी चौक निवासी मानस (6) पुत्र हेमंत श्रीमाली सेंट पॉल स्कूल की तीसरी कक्षा में पढ़ता है। स्कूल से छुट्टी के बाद ऑटो रिक्शा में घर आ रहा था। इस दौरान कलेक्ट्रेट के सामने वह ऑटो से गिर गया, जिसे लोगों ने राजकीय अस्पताल पहुंचाया। वहीं ऑटो चालक को लोगों ने कुछ ही दूरी पर रुकवाकर लताड़ लगाई।
स्कूल संचालकों के पास नहीं है बसें
देखा जाए तो जिला मुख्यालय ही नहीं, बल्कि जिले भर में संचालित होने वाली कई प्राइवेट स्कूलों में बालवाहिनी या बच्चों के सुरक्षित परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में स्कूल में पढऩे वाले सैकड़ों बच्चे रोजाना ऑटो रिक्शा में असुरक्षित रूप से स्कूल से घर और घर से स्कूल जाते हैं। गौरतलब है कि स्कूली बच्चों के सुरक्षित परिवहन को लेकर परिवहन विभाग की ओर से बाल वाहिनी योजना शुरू की गई थी, लेकिन इस योजना को शुरू हुए पांच साल बीतने के बावजूद स्कूल संचालकों के पास बालवाहिनी की कोई व्यवस्था नहीं है। वहीं इस संबंध में परिवहन कार्यालय में अब तक जिले भर के साठ से सत्तर प्राइवेट स्कूलों में बालवाहिनी का पंजीकरण हो रखा है।
आप भी बरतें सावधानी
हालांकि यह हादसा यहीं तक टल गया, लेकिन इससे सभी को सबक मिलता है कि बच्चों को टैक्सी के जरिए स्कूल भेजते समय सावधानी जरूर बरती जाए। आपने यदि किसी ऑटो टैक्सी को हायर किया है तो यह ध्यान अवश्य रखें कि कहीं टैक्सी चालक नियमों को तोड़कर टैक्सी में अधिक बच्चे तो नहीं बैठा रहा है। साथ ही वह बच्चों को किस प्रकार से बैठाता है। इसका भी ध्यान रखें। अधिकांश टैक्सी वाले वाहन के चारों ओर बस्ते लटका देते हैं और ड्राइवर सीट से लेकर पीछे तक छोटे से टैंपो में 10 से 15 बच्चे बैठा लेते हैं जो गलत है। यदि आपका बच्चा भी ऐसी ही स्थिति में स्कूल आता जाता है तो सावधानी बरतें। टैक्सी चालक को मना करें कि वह आवश्यकता से अधिक बच्चों को ना बैठाएं।
अभिभावकों में नहीं है जागरूकता
देखा जाए तो शहर की विभिन्न प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को अभिभावक खुद ऑटो रिक्शा में ही स्कूल भेजते हैं। उनकी ओर से यह भी तय नहीं किया जाता है कि ऑटो रिक्शा चालक और वाहन की स्थिति क्या है और सुरक्षित परिवहन को लेकर वह वाहन सही है भी या नहीं। ऐसे में खुद अभिभावक अगर बालवाहिनी में बच्चों को स्कूल में भेजें तो इस प्रकार के हादसों पर अंकुश लग सकता है।
बच्चे को चोट आने पर ले गए सरकारी अस्पताल, उपचार के बाद दी छुट्टी
निजी स्कूलों में लगे ऑटो चालक बरत रहे लापरवाही, जोखिम में डाल रहे स्कूली बच्चों की जान
पांच साल पहले जारी हुए थे बाल वाहिनी चलाने के आदेश, अभी भी जिले भर की कई प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे जाते हैं ऑटो रिक्शा में
परिवहन विभाग ने कहा सभी स्कूलों के संचालकों को जारी किया था पत्र, इसके बावजूद बालवाहिनी के बजाय ऑटो रिक्शा का हो रहा संचालन
पुलिस और परिवहन विभाग है जिम्मेदार
सरकार की ओर से 21 जुलाई 1998 को बालवाहिनी योजना लागू की गई थी। जिसके तहत बच्चों के सुरक्षित परिवहन को लेकर संचालक को अनुबंधित बस, मिनी बस, टैक्सी, मैक्सी व ऑटो रिक्शा वाहनों की सूची, उनके पंजीयन नंबर, विद्यालय का पूरा नाम पता व चालक का विवरण जिसमें चालक का लाइसेंस पांच वर्ष पुराना होना चाहिए की सूचना परिवहन अधिकारी के समक्ष पेश करने का नियम था। ऐसा नहीं करने पर दुर्घटना के दौरान विद्यालय प्रशासन को इसका जिम्मेदार ठहराया जाएगा। साथ ही परिवहन और पुलिस विभाग की ओर से वाहन जब्त कर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
सख्ती से की जाएगी कार्रवाई
॥इस प्रकार की घटना होना वाकई में चिंताजनक है। यह गंभीर मामला है। भविष्य में ऐसी घटनाएं वापस न हो इसके पूरे प्रयास किए जाएंगे, लेकिन इसके साथ ही बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों में भी जागरूकता जरूरी है। उन्हें चाहिए कि वे थोड़े से पैसों के लालच में इस प्रकार के ऑटो रिक्शा हायर न करें जो जरूरत से ज्यादा बच्चों को बिठाते हों। घटना की रोकथाम के लिए हम ऑटो रिक्शा चालकों से भी बातचीत करेंगे। दीपक कुमार, एसपी एवं अध्यक्ष बाल वाहिनी समिति
ऐसी होनी चाहिए बाल वाहिनी
विद्यालयों में संचालित बाल वाहिनी का रंग पीला होना चाहिए और इस पर आसमानी रंग की पट्टी होनी भी जरूरी है। साथ ही वाहन पर बालवाहिनी भी लिखना होगा। इस गाड़ी के शीशों और खिड़कियों पर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे कोई छात्र वाहन से अपना शरीर का कोई अंग बाहर न निकाल पाए। इस वाहन में स्पीड गवर्नर मशीन भी लगी होनी चाहिए, जिससे इसकी स्पीड कंट्रोल हो सके, जिससे निर्धारित गति से ही यह वाहन चल पाए।
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