रविवार, 4 नवंबर 2012

पागलों का गांव- वादुरा



चेन्नई।। कड़क धूप और पैरों और हाथों में पड़ी लोहे की बेड़ियों के दर्द को नज़रअंदाज़ करते हुए राजू यानि राजेन्द्र धेरे ज़मीन पर झुक कर मिट्टी पर उंगली से अपना नाम उकेरने लगता है। राजू की उम्र और उसका काम पूछिए तो वो झट से जवाब देता है एक और कक्षा एक और बेफ़िक्री से यहां-वहां घूमने लगता है। लेकिन क्या यह उसकी असली उम्र है ?
mental illness 
40 साल के राजू का यह दुःख वादुरा गांव के लगभग हर घर में पसरा हुआ है। वादुरा अमरावती ज़िले के बीचों-बीच नांदगांव-खंडेश्वर ब्लॉक में बसा है और इस गांव की आबादी करीब 1800 है। विदर्भ के दूसरे इलाके हमेशा ही ग़रीब किसानों की आत्महत्या को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। लेकिन यह गांव वादुरा या कहें कि पागलों का वादुरा, जैसा कि इसे दूसरे इलाकों में कहा जाता है, के पास परेशान होने के लिए एक दूसरी बड़ी वजह है। इस गांव को पागलपन या कहें कि दिमागी बीमारी का श्राप है जिससे बरसों से इस गांव के लोग जूझ रहे हैं और अब सरकार के हस्तक्षेप की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

इन गांव वालों को 2010 के ड्राफ्ट मेन्टल हेल्थ केयर बिल के बारे में कुछ भी नहीं पता, जिसके मुताबिक दिमागी बीमारी से जूझ रहे किसी भी व्यक्ति को बेड़ियों में जकड़ना कानूनन जुर्म है। राजू के परिवार का कहना है कि उसे बांध कर रखना ही उसे कंट्रोल में रखने का एकमात्र तरीका है। वो बताते हैं कि राजू अक्सर हिंसक हो जाता है। हमने उसे नागपुर स्थित स्थानीय मेन्टल हॉस्पिटल में तीन बार भर्ती करवाया लेकिन कोई फ़र्क नहीं पड़ा। राजू अपने छोटे भाई और उसकी पत्नी के साथ रहता है। राजू के पिता ने 3 साल पहले गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। गांव के लोगों ने बताया कि राजू को एक बहुत बुद्धिमान लड़का माना जाता था, जिसने बहुत कम उम्र में ही तैराकी सीख ली थी। लेकिन, उस प्रतिभा का कोई भी अंश आज राजू में दिखाई नहीं देता।इसी तरह इस गांव के 52 वर्षीय लक्ष्मण सतंगे उर्फ़ टाइगर में भी उनके जवानी के दिनों की कोई बात नज़र नहीं आती। वह अपने घर में ही घूमते रहते हैं या एक कोने में चुपचाप बैठ कर किसी भी चीज़ को घंटों तक एकटक देखते रहते हैं। कुछ ऐसा ही हाल उनके छोटे बेटे प्रभाकर का है। दो महीने पहले वह गांव भर में भटकता रहता था। लेकिन अब वह सिर्फ़ खुद से बात करता है, और ज़्यादातर वक़्त सोते हुए बिताता है।
पागलों का गांव नाम से जाना जाने वाले वादुरा में दिमागी बीमारी का अनुपात चिन्ताजनक रूप से बेहद ऊँचा है। लेकिन शायद सरकार को इस गाँव की तरफ़ देखने की फिलहाल फ़ुर्सत नहीं है।

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