मरुभूमि की एक अमर प्रेम-कथा… मूमल महेन्द्रा
…राजस्थानी सौंदर्य का प्रतीक. अमर प्रेम के प्रतीक मूमल-महेन्द्रा
जैसलमेर। अद्वितीय सौन्दर्य की स्वामिनी मूमल व अदम्य साहस के प्रतीक महिन्द्रा के अटूट प्रेम को हजारों वर्ष बाद भी लोकप्रियता हासिल है। एक-दूसरे से बेइंतहा प्रेम करने वाले इन दीवानों के प्रेम का हालांकिदु:खद अंत हुआ, लेकिन स्वर्णनगरी के भ्रमण को आने वाले देशी-विदेशी सैलानी यहां मूमल की मेड़ी को देखकर उसकी प्रेम कहानी से काफी प्रभावित होते हंै।
मन में प्रेम कथा का विचार कौंधते ही मानस पटल पर प्रेम के पुजारी हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल, शीरी फरहाद, जूलियट-सीजलर, लैला-मजनू और बूवना-जलाल का नाम सामने आ जाता है। ऎसे में मरूप्रदेश की मूमल व अमरकोट (पाकिस्तान) निवासी उनके प्रियतम महेन्द्रा की प्रेम कहानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मूूमल की कलात्मक मेड़ी का बखान लोक गीतों में भी किया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि जैसलमेर की प्राचीन राजधानी लौद्रवा (जिला मुख्यालय से 14 किमी दूर) में शिव मंदिर के समीप व काक नदी के किनारे आज भी मूमल की मेड़ी के अवशेष मौजूद है, जो कि इस अमर प्रेम कहानी के मूक गवाह बने हुए है। यहां आने वाले सैलानी भग्नावशेष के रूप में दिखाई देने वाली मेड़ी को देखकर उन दिनों की कल्पना करते हैं जब रेगिस्तान के मीलों लंबे समंदर को पार कर अमरकोट से महेन्द्रा अपनी प्रियतमा मूमल से मिलने यहां आता था।
यह है कथा
इतिहासविदों व साहित्यकारों ने मूमल-महेन्द्रा की प्रेम कथा को अलग-अलग ढंग से पेश किया है, लेकिन सभी में एक बात सामान्य है कि उनका इस लोक में सुखद मिलन नहीं हो पाया। कहानी कुछ इस प्रकार है कि सुंदरता की स्वामिनी मूमल की ख्याति सुनकर अमरकोट का महेन्द्रा उसकी एक झलक पाने के लिए काक नदी के समीप मूमल के महल के समीप पहुंचा और अपनी सूझबूझ से महल की सभी बाधाओं व भूलभुलैया को पार कर मूमल को अपना दीवाना बना दिया।
महेन्द्रा प्रतिदिन अमरकोट से ऊंट पर सवार होकर सौ कोस दूर स्थित लौद्रवा में मूमल से मिलने उसके महल आता और भोर होने से पहले ही लौट जाता। एक दिन दुर्भाग्यवश देरी से पहुंचे महेन्द्रा ने मूमल को पुरूष वेश में उसकी बहिन सूमल के साथ देखा, जिससे उसके मन में दुर्भावनाओं ने घर कर लिया। उसके बाद वह मूूूमल से मिले बिना ही वहां से लौट गया और फिर लौटकर उसके पास कभी नहीं आया। महेन्द्रा के कई दिनों तक लौद्रवा न आने से मूमल भी विरह वेदना में जलती रही। जब महेन्द्रा का भ्रम दूर हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हालांकि दोनों प्रेमियों इसके बाद कभी मिलन नहीं हुआ, लेकिन उनकी प्रणय कथा सच्चे प्रेमियों के लिए आदर्श बन चुकी है।
सुंदरता का पर्याय
मरूप्रदेश में सुंदर बेटी या बहू को मूमल की उपमा दी जाती है। अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मरू महोत्सव में भी प्रतिवर्ष मिस मूमल सौन्दर्य प्रतियोगिता होती है। इस प्रतियोगिता को जीतने का सपना संजोए न केवल जिले से, बल्कि दूर-दराज की कई युवतियां यहां पहुंचती है।
जैसलमेर। अद्वितीय सौन्दर्य की स्वामिनी मूमल व अदम्य साहस के प्रतीक महिन्द्रा के अटूट प्रेम को हजारों वर्ष बाद भी लोकप्रियता हासिल है। एक-दूसरे से बेइंतहा प्रेम करने वाले इन दीवानों के प्रेम का हालांकिदु:खद अंत हुआ, लेकिन स्वर्णनगरी के भ्रमण को आने वाले देशी-विदेशी सैलानी यहां मूमल की मेड़ी को देखकर उसकी प्रेम कहानी से काफी प्रभावित होते हंै।
मन में प्रेम कथा का विचार कौंधते ही मानस पटल पर प्रेम के पुजारी हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल, शीरी फरहाद, जूलियट-सीजलर, लैला-मजनू और बूवना-जलाल का नाम सामने आ जाता है। ऎसे में मरूप्रदेश की मूमल व अमरकोट (पाकिस्तान) निवासी उनके प्रियतम महेन्द्रा की प्रेम कहानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मूूमल की कलात्मक मेड़ी का बखान लोक गीतों में भी किया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि जैसलमेर की प्राचीन राजधानी लौद्रवा (जिला मुख्यालय से 14 किमी दूर) में शिव मंदिर के समीप व काक नदी के किनारे आज भी मूमल की मेड़ी के अवशेष मौजूद है, जो कि इस अमर प्रेम कहानी के मूक गवाह बने हुए है। यहां आने वाले सैलानी भग्नावशेष के रूप में दिखाई देने वाली मेड़ी को देखकर उन दिनों की कल्पना करते हैं जब रेगिस्तान के मीलों लंबे समंदर को पार कर अमरकोट से महेन्द्रा अपनी प्रियतमा मूमल से मिलने यहां आता था।
यह है कथा
इतिहासविदों व साहित्यकारों ने मूमल-महेन्द्रा की प्रेम कथा को अलग-अलग ढंग से पेश किया है, लेकिन सभी में एक बात सामान्य है कि उनका इस लोक में सुखद मिलन नहीं हो पाया। कहानी कुछ इस प्रकार है कि सुंदरता की स्वामिनी मूमल की ख्याति सुनकर अमरकोट का महेन्द्रा उसकी एक झलक पाने के लिए काक नदी के समीप मूमल के महल के समीप पहुंचा और अपनी सूझबूझ से महल की सभी बाधाओं व भूलभुलैया को पार कर मूमल को अपना दीवाना बना दिया।
महेन्द्रा प्रतिदिन अमरकोट से ऊंट पर सवार होकर सौ कोस दूर स्थित लौद्रवा में मूमल से मिलने उसके महल आता और भोर होने से पहले ही लौट जाता। एक दिन दुर्भाग्यवश देरी से पहुंचे महेन्द्रा ने मूमल को पुरूष वेश में उसकी बहिन सूमल के साथ देखा, जिससे उसके मन में दुर्भावनाओं ने घर कर लिया। उसके बाद वह मूूूमल से मिले बिना ही वहां से लौट गया और फिर लौटकर उसके पास कभी नहीं आया। महेन्द्रा के कई दिनों तक लौद्रवा न आने से मूमल भी विरह वेदना में जलती रही। जब महेन्द्रा का भ्रम दूर हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हालांकि दोनों प्रेमियों इसके बाद कभी मिलन नहीं हुआ, लेकिन उनकी प्रणय कथा सच्चे प्रेमियों के लिए आदर्श बन चुकी है।
सुंदरता का पर्याय
मरूप्रदेश में सुंदर बेटी या बहू को मूमल की उपमा दी जाती है। अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मरू महोत्सव में भी प्रतिवर्ष मिस मूमल सौन्दर्य प्रतियोगिता होती है। इस प्रतियोगिता को जीतने का सपना संजोए न केवल जिले से, बल्कि दूर-दराज की कई युवतियां यहां पहुंचती है।
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