इंदौर. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह पर मॉल के निर्माण में अनियमितता बरतने के आरोपों की जांच अब सीबीआई करेगी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इंदौर के ट्रेजर आइलैंड मॉल के निर्माण की सीबीआई जांच का आदेश दिया है।
इससे पहले पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने दिग्विजय सिंह को क्लिनचिट दे दी थी। गौरतलब है कि ट्रेजर आइलैंड मध्यप्रदेश का पहला शॉपिंग मॉल हैं। गुरुवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रेजर आइलैंड मॉल के निर्माण में धांधलियों के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह समेत छह आरोपियों को आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की दी गई ‘क्लीन चिट’ को दरकिनार कर दिया है। इसके साथ ही, सीबीआई को बहुचर्चित प्रकरण की विस्तृत जांच का आदेश दिया है।
भाजपा नेता महेश गर्ग के वकील मनोहर दलाल ने आज संवाददाताओं को बताया, ‘हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति मूलचंद गर्ग ने अपने 49 पन्नों के आदेश में सीबीआई को आदेश दिया कि वह छह माह के भीतर मामले की विस्तृत जांच करे और अदालत में रिपोर्ट पेश करे।’ याचिकाकर्ता ने आईओडब्ल्यू द्वारा दी गई क्लिन चिट को रद्द करने और सीबीआई जांच की मांग की थी जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
अदालत ने एमजी रोड स्थित शॉपिंग मॉल ‘ट्रेजर आइलैंड’ के निर्माण की अनियमितताओं के मामले में सीबीआई को पांच दिशा निर्देशों की रोशनी में जांच करने को कहा है। इन दिशा निर्देशों के तहत सीबीआई को सरकारी कोड वर्ड ‘एक्स 299’ की हकीकत की भी जांच करने को कहा गया है।
अदालत में पेश दस्तावेजों के मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय ने शॉपिंग मॉल के निर्माण के सिलसिले में 11 सितंबर 2002 को पेश आवेदन पर कार्यवाही करते हुए अपने हस्ताक्षर से मुख्य सचिव को भेजे गए नोट में इस कोड वर्ड का इस्तेमाल किया था। इस नोट में आवेदन की जांच के बाद चर्चा के लिये कहा गया था।
शिकायतकर्ता के मुताबिक आवास और पर्यावरण विभाग के तत्कालीन अवर सचिव सीबी पडवार ने ईओडब्ल्यू को दिये अपने बयान में खुलासा किया कि कोड वर्ड एक्स 299 का मतलब था कि इस आवेदन पर प्राथमिकता के आधार पर सकारात्मक कार्रवाई की जाए।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि दिग्विजय ने शॉपिंग मॉल संचालकों को करोड़ों रुपए का अवैध फायदा पहुंचाया और नियम कायदों के खिलाफ जाकर मॉल के निर्माण को मंजूरी दिलावाई। हाई कोर्ट जाने से पहले शिकायतकर्ता महेश गर्ग ने शॉपिंग मॉल के निर्माण के दौरान बरती गयी कथित अनियमितताओं और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से मॉल संचालकों को अवैध फायदा पहुंचाये जाने की शिकायत ईओडब्ल्यू को की थी। इस शिकायत पर दिग्विजय और प्रदेश के पूर्व आवास और पर्यावरण मंत्री चौधरी राकेश सिंह समेत 12 लोगों के खिलाफ 12 फरवरी 2009 को मामला दर्ज किया गया था।
प्रदेश सरकार की जांच एजेंसी ने हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में 30 अप्रैल 2012 को एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि शॉपिंग मॉल के मामले की जांच पूरी हो चुकी है। लेकिन इसमें प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, तत्कालीन आवास व पर्यावरण मंत्री चौधरी राकेश सिंह, तत्कालीन प्रमुख सचिव एवी सिंह, नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के तत्कालीन संयुक्त संचालक वीपी कुलश्रेष्ठ और मॉल संचालकों के परिवार से ताल्लुक रखने वाली पद्मा कालानी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये ‘पर्याप्त आधार’ नहीं पाए गए।
सूत्रों के मुताबिक ईओडब्ल्यू ने मॉल संचालकों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रेम स्वरूप कालानी का नाम 12 आरोपियों की सूची से यह कहते हुए हटा दिया कि उनके खिलाफ लगाये गये इल्जाम जांच में झूठे पाए गए। बहरहाल, शिकायतकर्ता के वकील मनोहर दलाल के मुताबिक शॉपिंग मॉल मामले की सीबीआई जांच के सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद प्रेमस्वरूप कालानी भी अनुसंधान के दायरे में आ गए हैं।
इससे पहले पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने दिग्विजय सिंह को क्लिनचिट दे दी थी। गौरतलब है कि ट्रेजर आइलैंड मध्यप्रदेश का पहला शॉपिंग मॉल हैं। गुरुवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रेजर आइलैंड मॉल के निर्माण में धांधलियों के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह समेत छह आरोपियों को आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की दी गई ‘क्लीन चिट’ को दरकिनार कर दिया है। इसके साथ ही, सीबीआई को बहुचर्चित प्रकरण की विस्तृत जांच का आदेश दिया है।
भाजपा नेता महेश गर्ग के वकील मनोहर दलाल ने आज संवाददाताओं को बताया, ‘हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति मूलचंद गर्ग ने अपने 49 पन्नों के आदेश में सीबीआई को आदेश दिया कि वह छह माह के भीतर मामले की विस्तृत जांच करे और अदालत में रिपोर्ट पेश करे।’ याचिकाकर्ता ने आईओडब्ल्यू द्वारा दी गई क्लिन चिट को रद्द करने और सीबीआई जांच की मांग की थी जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
अदालत ने एमजी रोड स्थित शॉपिंग मॉल ‘ट्रेजर आइलैंड’ के निर्माण की अनियमितताओं के मामले में सीबीआई को पांच दिशा निर्देशों की रोशनी में जांच करने को कहा है। इन दिशा निर्देशों के तहत सीबीआई को सरकारी कोड वर्ड ‘एक्स 299’ की हकीकत की भी जांच करने को कहा गया है।
अदालत में पेश दस्तावेजों के मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय ने शॉपिंग मॉल के निर्माण के सिलसिले में 11 सितंबर 2002 को पेश आवेदन पर कार्यवाही करते हुए अपने हस्ताक्षर से मुख्य सचिव को भेजे गए नोट में इस कोड वर्ड का इस्तेमाल किया था। इस नोट में आवेदन की जांच के बाद चर्चा के लिये कहा गया था।
शिकायतकर्ता के मुताबिक आवास और पर्यावरण विभाग के तत्कालीन अवर सचिव सीबी पडवार ने ईओडब्ल्यू को दिये अपने बयान में खुलासा किया कि कोड वर्ड एक्स 299 का मतलब था कि इस आवेदन पर प्राथमिकता के आधार पर सकारात्मक कार्रवाई की जाए।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि दिग्विजय ने शॉपिंग मॉल संचालकों को करोड़ों रुपए का अवैध फायदा पहुंचाया और नियम कायदों के खिलाफ जाकर मॉल के निर्माण को मंजूरी दिलावाई। हाई कोर्ट जाने से पहले शिकायतकर्ता महेश गर्ग ने शॉपिंग मॉल के निर्माण के दौरान बरती गयी कथित अनियमितताओं और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से मॉल संचालकों को अवैध फायदा पहुंचाये जाने की शिकायत ईओडब्ल्यू को की थी। इस शिकायत पर दिग्विजय और प्रदेश के पूर्व आवास और पर्यावरण मंत्री चौधरी राकेश सिंह समेत 12 लोगों के खिलाफ 12 फरवरी 2009 को मामला दर्ज किया गया था।
प्रदेश सरकार की जांच एजेंसी ने हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में 30 अप्रैल 2012 को एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि शॉपिंग मॉल के मामले की जांच पूरी हो चुकी है। लेकिन इसमें प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, तत्कालीन आवास व पर्यावरण मंत्री चौधरी राकेश सिंह, तत्कालीन प्रमुख सचिव एवी सिंह, नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के तत्कालीन संयुक्त संचालक वीपी कुलश्रेष्ठ और मॉल संचालकों के परिवार से ताल्लुक रखने वाली पद्मा कालानी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये ‘पर्याप्त आधार’ नहीं पाए गए।
सूत्रों के मुताबिक ईओडब्ल्यू ने मॉल संचालकों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रेम स्वरूप कालानी का नाम 12 आरोपियों की सूची से यह कहते हुए हटा दिया कि उनके खिलाफ लगाये गये इल्जाम जांच में झूठे पाए गए। बहरहाल, शिकायतकर्ता के वकील मनोहर दलाल के मुताबिक शॉपिंग मॉल मामले की सीबीआई जांच के सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद प्रेमस्वरूप कालानी भी अनुसंधान के दायरे में आ गए हैं।
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