बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

राजस्थानी को मान्यता दिलाना ही जीवन का एक मात्र लक्ष्य पोखरणा

राजस्थानी भाषा के प्रमुख तथा इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पोखरणा ने ली समिति की बैठक


राजस्थानी को मान्यता दिलाना ही जीवन का एक मात्र लक्ष्य पोखरणा


बाड़मेर राजस्थानी भाषा अभियान के मुख्य स्तम्भ और इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ सुरेन्द्र सिंह पोखरणा के मुख्य आतिथ्य और जय कोठारी की अध्यक्षता तथा राजस्थानी साहित्यकार प्रेम चंद कोठारी के नेतृत्व में बुधवार को अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बालोतरा की बैठक का आयोजन जसोल में किया गया .


जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर चलाये जा रहे अभियान के स्तंभकार और इसरो के पूर्व वैज्ञानिक सुरेन्द्र सिंह पोखरण के मुख्य आतिथ्य में बालोतरा ब्लोक की अहम् बैठक का आयोजन किया गया ,बैठक को संबोधित करते हुए सुरेन्द्र सिंह पोखरण ने कहा की राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के संबंध में राजस्थान विधानसभा द्वारा 25 अगस्त, 2003 को सर्वसम्मति से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेज दिया गया है और इसके पश्चात लगातार संसद और संसद के बाहर राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के संबंध में अनुरोध किया जा रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने भी केंद्र सरकार से इस बारे में आग्रह किया गया है।उन्होंने कहा की जल्द भोजपुरी और राजस्थानी भाषा को मान्यता प्रदान करने के संबंध में केंद्र स्तर पर आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा किए जाने की कार्यवाही जारी है।इस अवसर पर जय ज्कोथारी ने कहा की मायद भाषा का कर्ज उसे मान्यता दिला कर चुकाने का प्रायः हें ,उन्होंने बाड़मेर जिले में चलाये जा रहे अभियान की तारीफ़ करते हुए कहा की राजस्थानी भाषा अभियान को जन अभियान में तब्दील करना सुखद हें ,बाड़मेर से पुरे राजस्थान को प्रेरणा लेने की जरुरत हें ,उन्होंने कहा की भारत वर्ष में रह रहे राजस्थानियों के मन में राजस्थानी को मान्यता दिलाने की ललक हें ,इस अवसर पर राजस्थानी भाषा के साहित्यकार और कवी प्रेम चाँद कोठारी ने कहा की

राजस्थानी भाषा आजादी से पूर्व राजस्थान, मालवा, उमरकोट(वर्तमान पाकिस्तान में) की राजभाषा थी, जिसकी मेवाड़ी, ढूंढ़ाड़ी, मेवाती, हाडौती, वागड़ी, मालवी, ब्रज, मारवाड़ी, भीली, पहाड़ी, खानाबदोषी आदि बोलियां एवं डिंगल-पिंगल शास्त्रीय कविता की शैलियां हैं। इसके लाखों हस्तलिखित ग्रंथ शोध संस्थानों में प्रकाशन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सिंधी, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, मराठी के आदिकाल, मध्यकाल राजस्थानी लिपि मुडिय़ा में ही हैं। हमारी राष्ट्रीय लिपि देवनागरी, वर्तमान गुजराती, पंजाबी की लिपियां इसी से विकसित हुई हैं।

उन्होंने कहा की राजस्थानी गीत के छंद के 120 भेद हैं जो विश्व की किसी भी भाषा के छंद शास्त्र से कम नहीं हैं। यह राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, यू.जी.सी. आदि में शिक्षण एवं शोध की भाषा है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं, टी.वी. चैनल्स में भी राजस्थानी में प्रसारण होता है। साथ ही नाटक व फिल्मों में अभिनय एवं रंगकर्म का श्रेष्ठ माध्यम साबित हो रही है। अमेरिका की लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की समृद्घतम 13 भाषाओं में से एक मानते हुए पद्मश्री से अलंकृत श्री कन्हैया लाल सेठिया की 75 मिनट की रिकार्डिंग कर अपने संग्रह में रखी है। इसी प्रकार शिकागो विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में राजस्थानी एक विषय के रूप में चलाया जा रहा है। पाकिस्तान में भी ÓÓ राजस्थानी कायदोंÓÓ नाम से व्याकरण चलती हैइस अवसर पर बालोतरा उप खंड के अध्यक्ष भीखदान चारण ने बाड़मेर जिले में राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए चलाये जा रहे अभियान के बारे में जानकारी देते हुए बताया की समिति जिले के सभी तहसीलों में कार्य कर रही हेह ,सभी घटक के अध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी की घोषणा कर अभियान को गति देने में जुटे हें ,इस अवसर पर शिक्षक चिंतन परिषद् बालोतरा के अध्यक्ष तन सिंह जुगतावत ने कहा की जिले के समस्त शिक्षक राजस्थानी भाषा के अभियान से परोक्ष अपरोक्ष रूप से जुड़ कर अपना योगदान दे रहे हें ,इस अवसर पर राजस्थानी छात्र मोर्चा के अध्यक्ष रानिदान रावल ,राजूराम ,उद्योगपति भंवर भंसाली ने भी अपनी बात रखी .।

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