विश्वविख्यात रामदेवरा मेला
.... जहाँ उमड़ती है भारत भर की श्रृद्धा सरिताएँ
- डॉ. दीपक आचार्य
जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी,
जैसलमेर
भारतीय संस्कृति और परम्पराओं में मेलों-पवार्ें और उत्सवों का अहम स्थान है जिनकी बदौलत साल भर लोक जीवन में रस-रंगों का उत्सवी उल्लास अपनी बहुरंगी व रोचक परम्पराओं के साथ अनवरत प्रवाहमान रहता आया है।
देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न श्रृद्धास्थलों व तीथार्ें पर बड़े-बड़े मेले भरते हैं जो लोक संस्कृति की इन्द्रधनुषी व मनभावन छटाओं का दिग्दर्शन कराते हैं। इनमें लाखों की संख्या में उमड़ने वाले मेलार्थी अनेकता में एकता की हमारी ख़ासियत दर्शाने के साथ ही आस्था अभिव्यक्त करते हैं और नए-नए उत्साह, संकल्पों व ऊर्जाओं का अहसास कर जीवन में ताजगी पाते हैं।
भारतवर्ष के विभिन्न मेलों में देश की पश्चिमी सरहद पर अवस्थित जैसलमर जिले के रामदेवरा में भरने वाला परम्परागत मेला दुनिया भर में मशहूर है।
यह मेला इस मायने में विश्व का अनूठा मेला कहा जा सकता है कि इस सालाना मेले में हर वर्ष लाखों मेलार्थी आते हैं। सर्वाधिक लम्बी अवधि वाला यह मेला यों तो हर साल भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया (बीज) से लेकर एकादशी (ग्यारस) तक पूरे यौवन पर रहता है लेकिन मेलार्थियों के भारी आवागमन की दृष्टि से यह मेला एक माह पूर्व श्रावण मास से ही प्रारंभ हो जाता है।
मेले की एक और खासियत यह है कि इसमें हजारों की संख्या में पदयात्री कई सौ किलोमीटर का पैदल सफर तय कर रामदेवरा पहुँचते हैं। ये पदयात्री एक से लेकर चार-पाँच पहले ही अपने घर से रामदवेरा के लिए पदयात्रा शुरू कर देते हैं।
रामदेवरा मेला पूरी तरह से लोक देवता बाबा रामदेव को समर्पित है जिन्हें भगवान द्वारिकाधीश का अंशावतार भी माना जाता है। बाबा रामदेव सामाजिक सौहार्द, समरसता और मानवतावादी विचारो के पोषक थे और उन्होंने सर्वधर्म समभाव का पैगाम देते हुए लोक कल्याण की ऎसी ऎतिहासिक परम्परा रखी जो आज भी अपनी पूरी व्यापकता के साथ साम्प्रदायिक सौहार्द का पैगाम दे रही है।
हिन्दुओं में बाबा रामदेव तथा मुसलमानों में राम सा पीर के रूप में पूज्य अवतारी लोकदेवता बाबा का अवतरण पन्द्रहवीं सदी के पहले दशक में बाड़मेर जिले के ऊंडु काश्मीर में तँवर वंशीय ठाकुर अजमालजी के घर माताश्री मैणादे की कोख से हुआ। वीरमदेव बाबा के बड़े भाई थे। शैशव से ही विलक्षण प्रतिमा सम्पन्न योगी बाबा रामदेव ने कई विलक्षण चमत्कार दिखाये। बाबा रामदेव ने उस युग में आतंक व भय का ताण्डव मचाने वाले राक्षसी वृत्तियों भरे क्रूर व्यक्ति भैरव (भैरों) का वध करके जनता को भयमुक्त कर दिया।
तत्कालीन परिस्थितियों में जात-पाँत, ऊँच-नीच आदि भेदभावों को मिटाने के लिए बाबा रामदेव ने व्यापक जनजागृति लाते हुए सामाजिक समरसता व सौहार्द की आदर्श परंपराएं विकसित कीं और समाज सुधार को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
पोकरण क्षेत्र का रूणीचा (अब रामदेवरा) बाबा की कर्मस्थली के रूप में मशहूर है जहाँ बाबा ने कई विस्मयकारी चमत्कार दिखाए, जिन्हें बाबा के परचे कहा जाता है। इन परचों से जुडे़ किस्से आज भी लोग श्रृद्धा के साथ सुनाते हैं। बाबा के नाम समर्पित भजनाें व वाणियों में इन परचों को पूरी श्रद्धा से अभिव्यक्त किया जाता है।
बाबा रामदेव ने रूणीचा (रामदेवरा) में ही पन्द्रहवीं सदी के चतुर्थ दर्शक में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को समाधि ले ली। इसी समाधि स्थल को मंदिर के रूप में विकसित किया हुआ है जहां देश भर से बाबा के भक्तों का आवागमन साल भर बना रहता है।
यह संयोग ही है कि बाबा का जन्म भाद्रपद बीज को तथा निर्वाण एकादशी को हुआ इस वजह से ही हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से लेकर एकादशी तक मुख्य मेला भरता है।
मेलार्थी रामदेवरा पहुँच कर बाबा रामदेव की समाधि के समक्ष नतमस्तक होकर दर्शन करते हैं तथा भेंट व प्रसाद के रूप में श्रीफल, नारियल, गोला, मिश्री, मखाना, मेवे आदि चढ़ाकर मन्नत मानते एवं छोड़ते हैं।
श्रृद्धालु बाबा रामदेव समाधि स्थल की परिक्रमा करते हैं वहीं स्थित अन्य समाधियों के साथ ही बाबा रामदेव की शिष्या डाली बाई के मंदिर में दर्शन करते हैं तथा लेटकर गोल चकरानुमा कंगन में होकर दूसरी तरफ निकलते हैं। श्रृद्धालु मंदिर के पीछे अवस्थित एवं बाबा रामदेव द्वारा निर्मित ऎतिहासिक रामसरोवर में स्नान करते हैं। इसके बाद मेलार्थी परचा बावड़ी के पवित्र जल का आचमन करते हैं व इसे अपने साथ ले जाते हैं। रामदेवरा पहुँचने वाले श्रृद्धालु गुरुद्वारा, बाबा का पालना झूला आदि देव स्थलों में जाकर दर्शन करते हैं।
मेला अवधि में पूरे रामदेवरा में हर तरफ विस्तृत मेला बाजार लगता है जहाँ मेलार्थी खरीदारी करते हैं। इन मेला बाजारों में हमेशा मेलार्थियों का जमघट लगा रहता है। मेले में प्रशासन की ओर से मेलार्थियों की सुविधा के लिए हर साल व्यापक बन्दोबस्त किए जाते हैंं।
मेलार्थियों के लिए मेले में मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं तथा प्रदर्शनियाँ भी लगती हैं। मेले मे लाखों मेलार्थियों के बीच विदेशी पर्यटक भी आते हैं व मेले के अभिराम दृश्यों पर अभिभूत होते हुए इन्हें कैमरे में कैद करते हैं। पूरे भारतवर्ष के मेलार्थियों की आवाजाही व मौजूदगी की वजह से रामदेवरा का परिवेश लघु भारत का सुनहरा बिम्ब दिखाता है।
साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक यह मेला लोक संस्कृति ओर आस्था का वह महाकुंभ है जहाँ भारत के कोने-कोने से आयी श्रृद्धा सरिताएँ बाबा रामदेव के चरणों में समर्पित होकर नवजीवन का पैगाम मुखरित करती हैं।
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