रविवार, 2 सितंबर 2012

आजादी के वक्त तय नहीं हुआ था राष्ट्रगान

आजादी के वक्त तय नहीं हुआ था राष्ट्रगान

मुम्बई। देश की आजादी के वक्त राष्ट्रगान को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया था। यह बात यहां शनिवार को सार्वजनिक एक पुराने पत्र से उजागर हुई। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्व कवि रविंद्र नाथ ठाकुर की रचना और हमारे मौजूदा राष्ट्रगान "जन गन मन", को यह दर्जा काफी दिनों बाद संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को दिया।

आजादी से कुछ दिन पहले भूतपूर्व बॉम्बे राज्य (अब महाराष्ट्र और गुजरात राज्य) के कई जिला कलेक्टरों ने तत्कालीन मुख्य सचिव को इस बारे में एक पत्र लिखा था। वे यह जानना चाहते थे कि देश की आजादी की बेला में अंगे्रजों के राष्ट्रगान "गॉड सेव द किंग" को भारत के राष्ट्रगान के रूप में गाने की अनुमति दी जाए या नहीं।

मुख्य सचिव ने 11 अगस्त 1947 को पत्र का जवाब एक "एक्सप्रेस पत्र" से दिया। और गॉड सेव द किंग के गाने पर रोक लगाई। पत्र में हालांकि लिखा गया था कि यदि कोई "वंदे मातरम" गाना चाहे, तो उस पर कोई आपत्ति नहीं होगी।

पत्र पर गवर्नमेंट ऑफ बॉम्बे, पॉलिटिकल एंड सर्विसेज डिपार्टमेंट के सचिव के रूप में जे. चेव्स का हस्ताक्षर है। इसमें लिखा गया कि नए राष्ट्रगान के बारे में आदेश जल्द ही जारी किया जाएगा। 15 अगस्त 1947, 1948 और 1949 के स्वतंत्रता दिवस समारोह में राष्ट्रगान के रूप में क्या हो, इस पर आमराय नहीं थी।

राज्यपाल के. शंकरनारायणन की कोशिश से नवनिर्मित राजभवन अभिलेखागार में ये पत्र और इनसे सम्बंधित अन्य विवरण उपलब्ध हैं। इसे शनिवार से आम लोगों के देखने के लिए खोल दिया गया है। राजभवन अधिकारियों के मुताबिक अब तक 5000 फाइलों और एक लाख दस्तावेजों को वर्गीकृत किया गया है। ये सभी 1929 से 1991 के बीच के हैं।

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