ले चल पड़े मशालें मेरे डोली गाँव के
.बाड़मेर डोली गांव के लोग वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के बारे में ठीक से जानते तक नहीं लेकिन उन्होंने गांव में जल निकासी की समस्या से निपटने के लिए जो काम किया वह किसी सरकारी महकमे की इंजीनियरिंग से कम नहीं। लोगों ने घर-घर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा दिए हैं।
इसे देसी नाम सोखन गड्ढे दिया है। इसमें एक हजार से पंद्रह सौ रुपए खर्चा आता है। करीब एक हजार घरों की बस्ती में पिछले तीन महीने में साढ़े तीन सौ सोखन गड्ढे बनाए गए हैं। अब घरों से निकलने वाला पानी सड़कों पर नहीं बहता।
एक साल पहले तक गांव की सड़कों व गलियों से लोगों का निकलना सिर्फ इसलिए मुश्किल था कि जल निकासी के लिए कोई नाली नहीं थी। हर वक्त गलियां व सड़कें पानी से भरी रहती थीं। तीन दशक से ग्रामवासी गांव में नालियां बनाने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। समस्या तब और गंभीर बन गई जब बारिश में रास्ते बंद हो गए। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे।
पिछले साल रात्रि चौपाल में कलेक्टर आए तो ग्रामीणों ने उन्हें इस समस्या के बारे में बताया। उन्होंने आश्वासन दिया लेकिन कुछ नहीं हुआ। ऐसे में ग्रामवासियों ने मीटिंग की। इसमें सोखन गड्ढे से इस समस्या का हल ढूंढा गया।
हर घर के बाहर इसे बनाने की सहमति बनी। यह भी निर्णय हुआ कि जो नहीं बनाएगा वह 1100 रुपए का दंड भरेगा। एडवोकेट सुरताराम देवासी बताते हैं कि शुरुआत में सौ घरों के बाहर सोखन गड्ढे बनाए गए। समाजसेवी मंजू गौड़ बताती हैं कि 30 साल से गांव में समस्या थी, लेकिन अब हर कोई सोखन गड्ढा बना रहा है। सरपंच समदा पटेल भी लोगों को प्रोत्साहित कर रही हैं।
देसी तरीका बना कारगर, बना दिए 350 सोखन गड्ढे
एक हजार रुपए में कमाल का देसी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
घर के बाहर खाली स्थान पर 4 से 6 फीट चौड़ा व गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पत्थरों के टुकड़े भरने के बाद इसमें पानी का पाइप जोड़ देते हैं। दिन भर घर का जितना भी पानी होता है उसे जमीन सोख लेती है। इस सोखन गड्ढे को बनाने की अपील के रूप में एडवोकेट सुरताराम देवासी ने करीब दो हजार एसएमएस किए।
रिटायर्ड व्याख्याता अशोक भारती, खरताराम पटेल, पूर्व सरपंच राणाराम पटेल, रामाराम पटेल व दुर्गाराम मेघवाल बताते हैं कि गांव से गंदगी मिट गई है और सही मायने में गांव, गांव बना है। हम घरों के बाहर चबूतरी पर बैठकर हथाई कर सकते हैं। पहले कीचड़ के कारण बाहर नहीं बैठ पाते थे। अब गांव में हर समय साफ-सफाई रहती है।
.बाड़मेर डोली गांव के लोग वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के बारे में ठीक से जानते तक नहीं लेकिन उन्होंने गांव में जल निकासी की समस्या से निपटने के लिए जो काम किया वह किसी सरकारी महकमे की इंजीनियरिंग से कम नहीं। लोगों ने घर-घर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगा दिए हैं।
इसे देसी नाम सोखन गड्ढे दिया है। इसमें एक हजार से पंद्रह सौ रुपए खर्चा आता है। करीब एक हजार घरों की बस्ती में पिछले तीन महीने में साढ़े तीन सौ सोखन गड्ढे बनाए गए हैं। अब घरों से निकलने वाला पानी सड़कों पर नहीं बहता।
एक साल पहले तक गांव की सड़कों व गलियों से लोगों का निकलना सिर्फ इसलिए मुश्किल था कि जल निकासी के लिए कोई नाली नहीं थी। हर वक्त गलियां व सड़कें पानी से भरी रहती थीं। तीन दशक से ग्रामवासी गांव में नालियां बनाने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। समस्या तब और गंभीर बन गई जब बारिश में रास्ते बंद हो गए। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे।
पिछले साल रात्रि चौपाल में कलेक्टर आए तो ग्रामीणों ने उन्हें इस समस्या के बारे में बताया। उन्होंने आश्वासन दिया लेकिन कुछ नहीं हुआ। ऐसे में ग्रामवासियों ने मीटिंग की। इसमें सोखन गड्ढे से इस समस्या का हल ढूंढा गया।
हर घर के बाहर इसे बनाने की सहमति बनी। यह भी निर्णय हुआ कि जो नहीं बनाएगा वह 1100 रुपए का दंड भरेगा। एडवोकेट सुरताराम देवासी बताते हैं कि शुरुआत में सौ घरों के बाहर सोखन गड्ढे बनाए गए। समाजसेवी मंजू गौड़ बताती हैं कि 30 साल से गांव में समस्या थी, लेकिन अब हर कोई सोखन गड्ढा बना रहा है। सरपंच समदा पटेल भी लोगों को प्रोत्साहित कर रही हैं।
देसी तरीका बना कारगर, बना दिए 350 सोखन गड्ढे
एक हजार रुपए में कमाल का देसी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
घर के बाहर खाली स्थान पर 4 से 6 फीट चौड़ा व गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पत्थरों के टुकड़े भरने के बाद इसमें पानी का पाइप जोड़ देते हैं। दिन भर घर का जितना भी पानी होता है उसे जमीन सोख लेती है। इस सोखन गड्ढे को बनाने की अपील के रूप में एडवोकेट सुरताराम देवासी ने करीब दो हजार एसएमएस किए।
रिटायर्ड व्याख्याता अशोक भारती, खरताराम पटेल, पूर्व सरपंच राणाराम पटेल, रामाराम पटेल व दुर्गाराम मेघवाल बताते हैं कि गांव से गंदगी मिट गई है और सही मायने में गांव, गांव बना है। हम घरों के बाहर चबूतरी पर बैठकर हथाई कर सकते हैं। पहले कीचड़ के कारण बाहर नहीं बैठ पाते थे। अब गांव में हर समय साफ-सफाई रहती है।
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