या तो तू बाड़मेर में गंगा ला दे या फिर धोरों में आम उगा दे. बिलकुल यही सुझाया था छोगालाल सोनी को, उनके एक मित्र ने. सोनी ने दार्शनिक अंदाज में पूछा था कि 54 साल के हो चुके हैं, ऐसा क्या काम किया जाए कि लोग याद रखें?
राजस्थान के बाड़मेर सरीखे धुर रेगिस्तानी इलाके में बैठकर दिया गया सुझाव सचमुच मजाक ही था. पर बात सोनी के दिल पर लग गई. गंगा न सही, धोरों में आम तो उगा ही सकता हूं. सीधे आते हैं 2012 में.
बाड़मेर से नौ किमी दूर मारूड़ी गांव स्थित फलों के अपने बगीचे से सोनी अब 3-4 लाख रु. सालाना कमा रहे हैं. वह भी तब जबकि आने-जाने वालों को फल लेने से वे मना नहीं करते. पाकिस्तान से लगती सीमा को देखने के लिए मुनाबाव जाते वक्त रास्ते में अब यह बगीचा लोगों के लिए कौतूहल की चीज बन गया है. अब 64 के हो चले सोनी के इस भगीरथ प्रयास को देख आंखें फटी की फटी रह जाती हैं. आम, नींबू, मौसमी, अनार, आंवला, शहतूत, चीकू के अलावा समुद्रतटीय इलाकों में पाए जाने वाले नारियल की भी खेती हो रही है सोनी की बगिया में.
लेकिन अपने सपनों के अंखुआने से लेकर फलने-फूलने तक सोनी को कई साल तक सिर्फ श्रम करना पड़ा. वे कलेक्ट्रेट में कनिष्ठ लिपिक थे. नौकरी से जी भर गया तो उसे छोड़ सर्राफे के पुश्तैनी धंधे में आ गए. खूब पैसा भी कमाया. लेकिन रेत में फल उगाने के नए जुनून के तहत सबसे पहले उन्होंने स्थानीय किसानों से गुर लेना चाहा. इस पर उन्हें पागलपन का इलाज कराने जैसी नसीहत मिली. उनका इरादा उलटे और मजबूत हुआ.
2001 में वे जोधपुर गए और वहां एक नर्सरी से 2,000 पौधे खरीदे. गांव आकर सोनी ने सबसे पहले खेत में बड़े, गहरे गड्ढे खुदवाए और खाद/दवा डालकर पौधे लगा दिए. ड्रिप सिस्टम से सींचते रहे. साल भर तक निरंतर सेवा के बाद भी 700 पौधे जल गए. अब उन्होंने युक्ति लगाई. तापमान कम करने के लिए खेत में इन पौधों के आसपास उगने वाली घास को उन्होंने काटा नहीं ताकि धोरे कुछ ठंडे रहें. पानी के लिए एक कुआं खुदवाया गया. अब पौधों का रंग गहराने लगा.
2005 तक सोनी बगीचे पर 12 लाख रु. फूंक चुके थे. अब कुओं में जलस्तर भी तेजी से गिरने लगा. सोनी ने तुरंत खेत में बड़ी-बड़ी 11 टंकियों और कुएं को पानी से भरा. अब पानी सभी पौधों की बजाए जरूरतमंद पौधों को ही दिया जाने लगा. तभी 2006 में बाड़मेर में बाढ़ आ गई. अब दिन फिरे. 52 बीघे में 2,800 पौधों ने फल देना शुरू कर दिया.
बस तभी से लोगों का मोरूड़ी आना जारी है. कभी सरकारी कारिंदे तो कभी आम जिज्ञासु. हाल ही स्थानांतरित होकर बाड़मेर पहुंचे कृ षि विभाग के उपनिदेशक अमरसिंह हैरत से कहते हैं, ''सोनी का प्रयोग धोरों के किसानों के लिए बड़ी प्रेरणा है. इससे साबित होता है कि लगन से सब कुछ संभव है.''
हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें जिले के प्रथम किसान का 25,000 रु. इनाम दिया. दर्जनों इनाम उन्हें पहले ही मिल चुके हैं. सोनी इज्राएल भी हो आए लेकिन अब वे उसी पर सवाल उठा रहे हैं, ''हर साल किसानों को इज्राएल भेजा जाता है पर सरकार कुछ करने को तैयार नहीं तो किसान क्या खाक करेगा?
इज्राएल में सड़कों के दोनों ओर गहरी खाइयां बनाकर बरसात का पानी उसमें बटोरते हैं और सभी खाइयों को किसी तालाब से जोड़ते हैं. यहां प्रशासन को कई बार लिखा कि बरसाती पानी इकट्ठा करने को कुछ किया जाए पर कहीं कोई सुनवाई नहीं.'' देखिए, एक जिज्ञासा और उससे उपजे जुनून ने एक बाबू को कृषि विशेषज्ञ बना दिया.
राजस्थान के बाड़मेर सरीखे धुर रेगिस्तानी इलाके में बैठकर दिया गया सुझाव सचमुच मजाक ही था. पर बात सोनी के दिल पर लग गई. गंगा न सही, धोरों में आम तो उगा ही सकता हूं. सीधे आते हैं 2012 में.
बाड़मेर से नौ किमी दूर मारूड़ी गांव स्थित फलों के अपने बगीचे से सोनी अब 3-4 लाख रु. सालाना कमा रहे हैं. वह भी तब जबकि आने-जाने वालों को फल लेने से वे मना नहीं करते. पाकिस्तान से लगती सीमा को देखने के लिए मुनाबाव जाते वक्त रास्ते में अब यह बगीचा लोगों के लिए कौतूहल की चीज बन गया है. अब 64 के हो चले सोनी के इस भगीरथ प्रयास को देख आंखें फटी की फटी रह जाती हैं. आम, नींबू, मौसमी, अनार, आंवला, शहतूत, चीकू के अलावा समुद्रतटीय इलाकों में पाए जाने वाले नारियल की भी खेती हो रही है सोनी की बगिया में.
लेकिन अपने सपनों के अंखुआने से लेकर फलने-फूलने तक सोनी को कई साल तक सिर्फ श्रम करना पड़ा. वे कलेक्ट्रेट में कनिष्ठ लिपिक थे. नौकरी से जी भर गया तो उसे छोड़ सर्राफे के पुश्तैनी धंधे में आ गए. खूब पैसा भी कमाया. लेकिन रेत में फल उगाने के नए जुनून के तहत सबसे पहले उन्होंने स्थानीय किसानों से गुर लेना चाहा. इस पर उन्हें पागलपन का इलाज कराने जैसी नसीहत मिली. उनका इरादा उलटे और मजबूत हुआ.
2001 में वे जोधपुर गए और वहां एक नर्सरी से 2,000 पौधे खरीदे. गांव आकर सोनी ने सबसे पहले खेत में बड़े, गहरे गड्ढे खुदवाए और खाद/दवा डालकर पौधे लगा दिए. ड्रिप सिस्टम से सींचते रहे. साल भर तक निरंतर सेवा के बाद भी 700 पौधे जल गए. अब उन्होंने युक्ति लगाई. तापमान कम करने के लिए खेत में इन पौधों के आसपास उगने वाली घास को उन्होंने काटा नहीं ताकि धोरे कुछ ठंडे रहें. पानी के लिए एक कुआं खुदवाया गया. अब पौधों का रंग गहराने लगा.
2005 तक सोनी बगीचे पर 12 लाख रु. फूंक चुके थे. अब कुओं में जलस्तर भी तेजी से गिरने लगा. सोनी ने तुरंत खेत में बड़ी-बड़ी 11 टंकियों और कुएं को पानी से भरा. अब पानी सभी पौधों की बजाए जरूरतमंद पौधों को ही दिया जाने लगा. तभी 2006 में बाड़मेर में बाढ़ आ गई. अब दिन फिरे. 52 बीघे में 2,800 पौधों ने फल देना शुरू कर दिया.
बस तभी से लोगों का मोरूड़ी आना जारी है. कभी सरकारी कारिंदे तो कभी आम जिज्ञासु. हाल ही स्थानांतरित होकर बाड़मेर पहुंचे कृ षि विभाग के उपनिदेशक अमरसिंह हैरत से कहते हैं, ''सोनी का प्रयोग धोरों के किसानों के लिए बड़ी प्रेरणा है. इससे साबित होता है कि लगन से सब कुछ संभव है.''
हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें जिले के प्रथम किसान का 25,000 रु. इनाम दिया. दर्जनों इनाम उन्हें पहले ही मिल चुके हैं. सोनी इज्राएल भी हो आए लेकिन अब वे उसी पर सवाल उठा रहे हैं, ''हर साल किसानों को इज्राएल भेजा जाता है पर सरकार कुछ करने को तैयार नहीं तो किसान क्या खाक करेगा?
इज्राएल में सड़कों के दोनों ओर गहरी खाइयां बनाकर बरसात का पानी उसमें बटोरते हैं और सभी खाइयों को किसी तालाब से जोड़ते हैं. यहां प्रशासन को कई बार लिखा कि बरसाती पानी इकट्ठा करने को कुछ किया जाए पर कहीं कोई सुनवाई नहीं.'' देखिए, एक जिज्ञासा और उससे उपजे जुनून ने एक बाबू को कृषि विशेषज्ञ बना दिया.
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