सोमवार, 2 जुलाई 2012

'नरसिंहा राव भी थे अयोध्या के विलेन'


 
नई दिल्ली.मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री केंद्र में मंत्री रह चुके दिवंगत अर्जुन सिंह ने आत्मकथा 'अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम' में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव को 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए एक तरह से 'विलेन' करार दिया है। अर्जुन सिंह की यह किताब भारत में 599 रुपये की कीमत पर अगले हफ्ते उपलब्ध होगी।

'अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम' किताब में अर्जुन सिंह ने लिखा है, 'जब मुझे यह लगा कि प्रधानमंत्री को लिखी जा रही चिट्ठियों के पहुंचने तक की सूचना मुझे नहीं दी जा रही है तो मुझे लगा कि मैं अपना सिर दीवार पर मार रहा हूं।' इसके बाद किताब में परोक्ष रूप से पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव पर निशाना साधते हुए अर्जुन सिंह ने लिखा, 'कांग्रेस का एक सदस्य जिसे भारतीय गणराज्य का प्रधानमंत्री बनने का गौरव पार्टी की मदद से हासिल हुआ। लेकिन लगता था कि वह उन ऊंचे आदर्शों और सिद्धांतों को भूल चुका है, जिन्होंने इस महान संस्था (कांग्रेस) को हमेशा ही रास्ता दिखाया है। इसके बाद मैंने प्रधानमंत्री (पीवी नरसिंहा राव) के राजनीतिक सचिव जितेंद्र प्रसाद को चिट्ठी लिखी और कांग्रेस के सभी अहम नेताओं को चिट्ठी की कॉपी भेजी। मुझे नहीं मालूम कि मेरी चिट्ठी का क्या असर हुआ। लेकिन एक बात तो तय है कि अगर ऐसी चिट्ठी आज़ादी के पहले कांग्रेस में लिखी जाती तो पार्टी में हड़कंप मच जाता।'

अर्जुन ने किताब में लिखा है, 'प्रधानमंत्री की तरफ से हर तरह से निराश होने के बाद 3 दिसंबर, 1992 को मैंने खुद अयोध्या जाने का फैसला किया ताकि जमीनी हकीकत का अंदाजा लगा सकूं। मुझे लखनऊ मेल पकड़नी थी। इस ट्रेन से लखनऊ पहुंचने के बाद मेरा इरादा एक अन्य ट्रेन से अयोध्या पहुंचना था। जब मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा तो मुझे प्रधानमंत्री का संदेश मिला कि मैं उन्हें तुरंत फोन करूं। यह घटना मेरे लिए अचरज भरी थी क्योंकि मेरी तमाम चेतावनियों और संदेशों को अनसुना किए जाने के बाद मुझे फोन करने को कहा गया। मैंने उन्हें फोन किया। वे जानना चाहते थे कि मैं उनकी इजाजत के बिना अयोध्या क्यों जा रहा हूं? मैंने इसका जवाब दिया कि एक मंत्री के तौर पर मुझे कहीं भी आने-जाने की इजाजत है। मैं अयोध्या जा रहा हूं ताकि खुद यह जान सकूं कि वहां फर जमीनी तौर पर कैसा माहौल है। वे सीधे तौर पर मुझे नहीं रोक सके, लेकिन उनकी बातों से ऐसा ही लग रहा था। इसके बाद उन्होंने मुझे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से लखनऊ में मिलने को कहा। मैंने कहा कि मेरे उनसे मिलने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन आप कह रहे हैं तो मैं उनसे मिलूंगा और उनकी योजनाओं के बारे में जानकारी लूंगा।'

किताब में अर्जुन आगे लिखते हैं, 'मैं 4 दिसंबर की शाम दिल्ली पहुंचा। अगले दिन सुबह मैं नरसिंहा राव से मिलने पहुंचा और उन्हें कल्याण सिंह से हुई बातचीत का ब्योरा दिया। लेकिन मुझे लगा कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। ऐसा लगा कि मैं उन्हें ऐसी मुलाकात के बारे में बता रहा हूं, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला। जब मैंने अपनी बात पूरी कर ली तो उन्होंने पूछा, पूरे मामले को लेकर आपका क्या आकलन है? मैंने जवाब दिया-आपने मुझे लखनऊ से बाहर जाने नहीं दिया तो मैं आपको क्या आकलन बताऊं? इस पर उन्होंने कहा-नहीं, नहीं, मुझे मालूम है कि आपके अपने सूत्र हैं वहां पर और मैं यह जानना चाहता हूं कि अब आगे क्या होगा? तब मैंने बड़ी साफगोई से उन्हें बता दिया कि बाबरी मस्जिद टूटने वाली है। इस खबर से वे हिल गए और वे मेरे दावे को झुठलाना चाहते थे।'

कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अर्जुन किताब में आगे लिखा है, 'इसके बाद वे (पीवी नरसिंहा राव) मस्जिद टूटने के नतीजों के बारे में सोचने लगे। तभी अचानक उन्होंने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस पार्टी पर इसका बड़ा बुरा असर पड़ेगा। लेकिन मेरे हिसाब से तो यह आकलन बड़ा ही साधारण था। उस समय मैं (अर्जुन सिंह) खुद रोक न सका और कहा, हमने बीजेपी और अन्य हिंदूवादी संगठनों की तैयारियों को अनदेखा किया। तब उन्होंने मुझसे पूछा, यह (मस्जिद का विध्वंस) कब हो सकता है? मैंने जवाब दिया-यह किसी भी दिन हो सकता है। तब तो मैं भी नहीं जानता था कि बाबरी मस्जिद अगले ही दिन यानी 6 दिसंबर, 1992 को ढहा दी जाएगी।'



किताब के मुताबिक, '6 दिसंबर, 1992 की रात प्रधानमंत्री ने टीवी और रेडियो पर देश को संबोधित किया। उनके भाषण का सार यही था कि कल्याण सिंह (तत्कालीन मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश) बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का अपना वादा (सुप्रीम कोर्ट से किया गया) निभा नहीं सके। लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि मैं लोगों को केंद्र सरकार की भूमिका के सवाल पर कैसे समझा पाऊंगा। यह घटना मुस्लिमों के लिए बड़ा झटका थी। इस समुदाय ने कांग्रेस में भरोसा जताया था। यह तथ्य है कि एक कांग्रेसी के तौर पर हम देश की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके, जिसकी कीमत हमें आम चुनावों में भी देखने को मिली।'

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