नई दिल्ली
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने रुबेला इन्फेक्शन केखिलाफ चेतावनी देते हुए सभी देशों से कहा है कि वेइसका मुकाबला करने के लिए अपने वैक्सीनेशन प्रोग्रामको मजबूत बनाएं। प्रेग्नेंट महिला को यह संक्रमण होने परबच्चे में कई जन्मजात विकार पैदा हो सकते हैं या भ्रूण कीमृत्यु तक हो सकती है।
दुनिया में हर साल करीब एक लाख 10 हजार बच्चे इसवायरस से विकृतियों के शिकार होते हैं। इनमें से ज्यादातरगरीब देशों के होते हैं। भारत में इससे जुड़ा आधिकारिकडेटा नहीं है पर माना जाता है कि देश के अलग-अलगइलाकों में करीब 12 से 30 प्रतिशत महिलाएं अपनेप्रजनन काल में कभी न कभी इस इन्फेक्शन की चपेट मेंआ जाती हैं।
क्या है रुबेला
यह संक्रमण रूबी नाम के वायरस के कारण होता है। इसेजर्मन मीजल्स के नाम से भी जाना जाता है। इसकी चपेटमें अक्सर बच्चे और युवा आते हैं। यह हवा और आपसीसंपर्क के जरिए फैलता है।
क्या हैं लक्षण
बच्चों में यह संक्रमण होने पर शरीर पर लाल चकत्ते उभर आते हैं। हल्का बुखार हो जाता है। मिचली आ सकती हैऔर आंखें लाल हो जाती हैं। कान के पीछे ग्लैंड्स में सूजन आ सकती है। इसकी चपेट में आने वाले एडल्ट,खासकर महिलाओं के जोड़ों में दर्द हो सकता है और वे आर्थराइटिस की चपेट में आ सकती हैं। ये लक्षण आमतौरपर तीन से 10 दिनों में अपने आप खत्म हो जाते हैं।
पर अगर प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में कोई महिला इस इन्फेक्शन का शिकार हो जाती है तो उसके बच्चे के भीइससे प्रभावित होने की 90 फीसदी आशंका रहती है। ऐसा होने पर महिला का मिसकैरिज हो सकता है। बच्चे कीगर्भ में ही मौत हो सकती है या उसमें गंभीर विकृतियां हो सकती हैं। इन विकृतियों को कन्जेनिटल रुबेला सिंड्रोम(सीआरएस) के नाम से जाना जाता है।
कन्जेनिटल रुबेला सिंड्रोम
इसका शिकार होने पर बच्चे को जन्म से ही सुनने में दिक्कत हो सकती है। आंखों और दिल में डिफेक्ट हो सकता है।साथ ही वह ऑटिज्म, डायबीटीज के अलावा थायरॉइड ग्लैंड में गड़बड़ी का भी शिकार हो सकता है।
भारत का हाल
भारत में इस बीमारी का अधिकृत डेटा न होने के बावजूद कुछ स्टडी से पता चलता है कि देश में बच्चों को होनेवाले कैटरैक्ट के 10 से 15 प्रतिशत मामलों के लिए सीआरएस जिम्मेदार होता है। जन्मजात विकृतियों के शिकार10 से 50 प्रतिशत बच्चों के मामले में सीआरएस की भूमिका का पता चलता है। वहीं, अमेरिका में 2009 सेइसका कोई नया मामला सामने नहीं आया है।
क्या है ट्रीटमेंट
रुबेला इन्फेक्शन का कोई विशेष उपचार मौजूद नहीं है, केवल वैक्सीन के द्वारा ही इससे बचाव हो सकता है।देश के शहरी इलाकों में भले ही इसके टीके के बारे में थोड़ी बहुत जागरूकता है, पर ग्रामीण इलाके इस मामले मेंबहुत पीछे हैं। डब्लूएचओ का कहना है कि सभी सरकारों को रुबेला इन्फेक्शन से बचाव के लिए दी जाने वालीवैक्सीन को अपने टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को इन्फेक्शन से बचायाजा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने रुबेला इन्फेक्शन केखिलाफ चेतावनी देते हुए सभी देशों से कहा है कि वेइसका मुकाबला करने के लिए अपने वैक्सीनेशन प्रोग्रामको मजबूत बनाएं। प्रेग्नेंट महिला को यह संक्रमण होने परबच्चे में कई जन्मजात विकार पैदा हो सकते हैं या भ्रूण कीमृत्यु तक हो सकती है।
दुनिया में हर साल करीब एक लाख 10 हजार बच्चे इसवायरस से विकृतियों के शिकार होते हैं। इनमें से ज्यादातरगरीब देशों के होते हैं। भारत में इससे जुड़ा आधिकारिकडेटा नहीं है पर माना जाता है कि देश के अलग-अलगइलाकों में करीब 12 से 30 प्रतिशत महिलाएं अपनेप्रजनन काल में कभी न कभी इस इन्फेक्शन की चपेट मेंआ जाती हैं।
क्या है रुबेला
यह संक्रमण रूबी नाम के वायरस के कारण होता है। इसेजर्मन मीजल्स के नाम से भी जाना जाता है। इसकी चपेटमें अक्सर बच्चे और युवा आते हैं। यह हवा और आपसीसंपर्क के जरिए फैलता है।
क्या हैं लक्षण
बच्चों में यह संक्रमण होने पर शरीर पर लाल चकत्ते उभर आते हैं। हल्का बुखार हो जाता है। मिचली आ सकती हैऔर आंखें लाल हो जाती हैं। कान के पीछे ग्लैंड्स में सूजन आ सकती है। इसकी चपेट में आने वाले एडल्ट,खासकर महिलाओं के जोड़ों में दर्द हो सकता है और वे आर्थराइटिस की चपेट में आ सकती हैं। ये लक्षण आमतौरपर तीन से 10 दिनों में अपने आप खत्म हो जाते हैं।
पर अगर प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में कोई महिला इस इन्फेक्शन का शिकार हो जाती है तो उसके बच्चे के भीइससे प्रभावित होने की 90 फीसदी आशंका रहती है। ऐसा होने पर महिला का मिसकैरिज हो सकता है। बच्चे कीगर्भ में ही मौत हो सकती है या उसमें गंभीर विकृतियां हो सकती हैं। इन विकृतियों को कन्जेनिटल रुबेला सिंड्रोम(सीआरएस) के नाम से जाना जाता है।
कन्जेनिटल रुबेला सिंड्रोम
इसका शिकार होने पर बच्चे को जन्म से ही सुनने में दिक्कत हो सकती है। आंखों और दिल में डिफेक्ट हो सकता है।साथ ही वह ऑटिज्म, डायबीटीज के अलावा थायरॉइड ग्लैंड में गड़बड़ी का भी शिकार हो सकता है।
भारत का हाल
भारत में इस बीमारी का अधिकृत डेटा न होने के बावजूद कुछ स्टडी से पता चलता है कि देश में बच्चों को होनेवाले कैटरैक्ट के 10 से 15 प्रतिशत मामलों के लिए सीआरएस जिम्मेदार होता है। जन्मजात विकृतियों के शिकार10 से 50 प्रतिशत बच्चों के मामले में सीआरएस की भूमिका का पता चलता है। वहीं, अमेरिका में 2009 सेइसका कोई नया मामला सामने नहीं आया है।
क्या है ट्रीटमेंट
रुबेला इन्फेक्शन का कोई विशेष उपचार मौजूद नहीं है, केवल वैक्सीन के द्वारा ही इससे बचाव हो सकता है।देश के शहरी इलाकों में भले ही इसके टीके के बारे में थोड़ी बहुत जागरूकता है, पर ग्रामीण इलाके इस मामले मेंबहुत पीछे हैं। डब्लूएचओ का कहना है कि सभी सरकारों को रुबेला इन्फेक्शन से बचाव के लिए दी जाने वालीवैक्सीन को अपने टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को इन्फेक्शन से बचायाजा सके।
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