सत्तर से अस्सी फीसदी महिलाओ की आत्महत्या करने की पसंददीदा जगह टाँके
सार्वजनिक टाँके यानी आत्महत्या का घर
बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले में विभिन्न सरकारी योजनाओ में पेयजल संग्रहण के लिए प्रत्येक गाँव ढाणी में सार्वजानिक और व्यक्तिगत टाँके बनाये जाते हें .यह टाँके बाड़मेर में मौत का दूसरा रूप बन चुके हें .बाड़मेर जिले में प्रतिवर्ष लगभग तीन सौ आत्महत्या के मामले दर्ज होते हें जिनमे स्तर फीसदी मामलो में मृतक टाँके में कूद कर आत्महत्या करने के मामले सामने आये हें ,बाड़मेर के गाँव धानियो में आत्महत्या करने के सुलभ तरीको में सर्वाधिक पसंददीदा पानी के टाँके हें वहीं दूसरे स्थान पर खेजड़ी के पेड़ हें जिस पर फंदा लगा कर महिलाए और पुरुष आत्महत्या करते हें .सबसे चौंकाने वाला तथ्य हें की महिलाए जो आत्महत्या करती हें उन्हें मौत का जरिया पानी के टाँके बनाने सर्वाधिक सोहालियत पूर्ण लगते हें ,जिले के विभिन्न थानों में दर्ज होने वाले आत्महत्या के मामलो में स्तर से अस्सी फीसदी आत्महत्या करने वाले टांको को माध्यम चुनते हें मौत का उसके बाद खेजड़ी के पेड़ से फंदा लगाना वहीं शहरी क्षेत्रो में आत्महत्या का सर्वाधिक पसंदीदा जरिया रेल हें प्रतिवर्ष चालीस से पचास लोग रेल के आगे कूद कर आत्महत्या करते हें ,पुलिस से जुड़े सूत्रों का कहना हें की गाँवो में मामूली बात पर घरेलु झगड़ो से परेशान होकर अधिकांस महिलाए नजदीकी पानी के टांको में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त करती हें .इधर सरकारी योजनाओ में बाड़मेर जिले में पानी की किल्लत को ध्यान में रख कर स्थानीय वासिंदो के के लिए बरसात के पानी को संगृहीत करने के लिए टांको के निर्माण का प्रावधान हें जिले में विभिन्न सरकारी योजनाओ में अब तक सात लाख से अधिक टांको का निर्माण हो चुका हें .जिले में एक भी ऐसा गाँव नहीं हें जहां टाँके में आत्महत्या का मामला दर्ज नहीं हुआ हो .
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें