बुधवार, 6 जून 2012

प्यासे कंठो का "पार" बना आसरा

प्यासे कंठो का "पार" बना आसरा
चांधन। भीषण पेयजल संकट से रूबरू हो रहे जैसलमेर के ग्रामीण इलाकों के लिए परंपरागत जल स्त्रोत पार वरदान साबित हो रहे हैं। लंबी पाइप लाइनों व अन्य कारणों से पानी नहीं पहुंचने के कारण लोग इन पुराने जल स्त्रोतों से प्यास बुझा रहे हैं। मीठे पेयजल के स्त्रोतों पर पानी निकासी का कोई साधन नहीं होने से ग्रामीण पुराने साधन काम में ले रहे हैं।

ऎसे में लोगों को विशेष कर ग्रामीण महिलाओं को पानी के लिए अधिक श्रम करना पड़ रहा है। कहते है प्रकृति अभाव के साथ सुविधा भी प्रदान करती है। मरूधरा में जगह-जगह फैले ये पार इस बात के प्रमाण है। जिन स्थानों पर भू-गर्भीय जल खारा व गहरा है। पार उन्हीं स्थानों पर ज्यादा स्थित है। ऎसे गांवों व ढाणियों के भू-स्तर पर नीचे 10 से 20 मीटर की गहराई पर चिकनी मिट्टी की अपागम्य मोटी परत पाई जाती है।

यह परत बारिश के पानी को नीचे प्रवाहित होने से रोक देती है। ऎसे में यह बरसाती पानी धरती के ऊपरी स्तर में संग्रहित हो जाता है। इन स्थानों पर 15 से 20 मीटर की गहराई के छोटे कुएं खोद दिए जाते हैं। इन छोटे कुंओं को स्थानीय भाषा में बेरी कहा जाता है। अधिक पानी प्राप्त करने के लिए इन स्थानों पर कई बेरियां खोद दी जाती है। इन बेरियों के समूह को पार के नाम से जाना पाता है।

धीरे-धीरे रिसकर आता है पानी
ग्रामीणों की ओर से तैयार ये कुएं अधिकांश जगहों पर कच्चे हैं। इन कुओं पर पानी धीरे-धीरे रिसकर आता है। ऎसे मे इन्हें नीचे की ओर कच्चा रखना जरूरी भी है, लेकिन ऊपर इन कुओ को पक्की परत से बांधा जा सकता है। ज्यादातर पार गांव के आगोर तालाबों के पीछे या खडिनों में स्थित है। सम पंचायत समिति के धनाना पार, राबलाऊ पार, महबूब का पार, सीयांबर का पार धोरों के बीच स्थित है।

नहीं हुआ आधुनीकरण
गर्मी के दिनों में इन पार से ग्रामीण विशेषकर महिलाओं को रस्सी व बाल्टी से पानी खींचते देखा जा सकता है। ग्रामीण महिलाएं अपने घरों से दूर स्थित इन पार तक पैदल चलकर आती है तथा पानी सींचकर घड़ा भरकर पैदल ही वापस जाती है। पानी सींचने में उन्हें अधिक श्रम करना पड़ता है तथा खुले कुंओं में गिरने का खतरा भी बना रहता है। ऎसे में इन पार पर पानी निकासी के अन्य साधनों की आवश्यकता जरूरी हो गई है। हेंडपम्प की हत्थी या सिंगल फेज मोनोब्लॉक पंप से इस पानी की निकासी कर उसे एक स्थान पर संग्रहित किया जा सकता है। जहां से महिलाएं पानी आसानी से प्राप्त कर सकती है।

पनघट पर चहल-पहल
कनोई गांव के पूर्वदिशा में स्थित पार आज भी पूरे गांव की प्यास बुझा रहा है। यहां पर गांव की महिलाएं समूह में पानी ले जाती दिख जाती है। महिलाओं के समूह यहां किसी ग्रामीण मेले का अहसास कराते हैं। गांव के हर वर्ग की महिलाएं यहां आकर पानी के साथ अपना सुख-दुख बांटती है। खेजड़ी के पेड़ों की छांव में बैठकर व बतियाकर ये महिलाएं यहां सुकून भी पाती है।

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