शुक्रवार, 8 जून 2012

मासूमो की पेशानी पर कल की चिंता

मासूमो की पेशानी पर कल की चिंता
निबंध प्रतियोगिता में रखी अपनी बात
खास कारवे का समापन समारोह आज दुनिया भर में वर्ष 1990 से 2012 के हर मिनट नौ हेक्टेयर जंगलों का सफाया किया गया है । वनों के खात्मे पर यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र ने जारी की है । दूसरे शब्दों में हर साल औसतन 49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैलेवनों की कटाई की गई । पूरी धरती पर अब तीन फीसदी वन क्षेत्र ही बचा है, जो अपने आप में एक खतरे की घंटी है ।वनों की तबाई और इसके चलते वन्य जीवों के विलुप्त् होने के यह आंकड़े बहुत भी भयानक हैं । जबकि धरती पर्यावरण के असंतुलन की मार पहले ही झेल रही है । इसके चलते वायु प्रदूषण भी अपने चरम पर है । खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के आंकड़ों के अनुसार वनों की यह कटाई इंसानों के आमतौर पर किये जाने वाले विकास कार्यो के नाम पर की है । इसके चलते 22 सालों में पूरी दुनिया में 7 करोड़ 29 लाख हेक्टेयर में फैली वन संपदा पूरी तरह से खत्म हो चुकी है ।अपने आप में हर किसी को इन्शानी जीवन की तरफ बाढ़ रहे खतरे की तरफ आगाह करती यह वह बाते हें जो शुक्रवार की रोज भारत के भावी भविष्य ऩे कागज पर निबंध प्रतियोगिता के जरिये उकेरी . मोका था सी सी डी यू , भारत स्काउट गाइड बाड़मेर इकाई और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सयुक्त तत्वाधान में आयोजी हो रहे विश्व पर्यावरण सप्ताह के तहत निबंध प्रतियोगिता का . सी सी डी यू के आई ई सी कंसल्टेंट अशोक सिंह ऩे बताया की सी सी डी यू , भारत स्काउट गाइड बाड़मेर इकाई और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सयुक्त तत्वाधान में इस खास सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है जिसमे इस सप्ताह में शुक्रवार की रोज निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमे सेकड़ो बच्चो ने अपने भाव शब्दों के माध्यम से उकेरे . मासूम बच्चो ने लिखा कि देश में पिछले दो दशक में करीब २८ लाख हेक्टेयर कृषि भूमि घट गई है । यदि भूमि घटती रही, तो अन्न का उत्पादन भी घटेगा ही ।देश में बीते दो दशक में लगभग दो फीसदी खेती की जमीन कम हो गई है । और रकबा करीब २८ लाख हेक्टेयर होना चाहिए । यह बयान किसी और का नहीं, बल्कि देश के कृषि मंत्री शरद पंवार का है, जो उन्होनें संसद में दिया है । यानी, देश में खेती की जमीन का घट जाना कोई अटकलबाजी नहीं है, बल्कि एक डरावना सच है । बीस साल में २८ लाख हेक्टेयर जमीन आखिर कहां चली गई ? यह जमीन शहरों के फैलाव, कारखानों के निर्माण और उत्खनन की भेंट चढ़ गई है । देश के उन इलाकों मे जाकर देखा जा सकता है, जहां भूगर्भ में खनिज पाए जाते है । वहां की खेती योग्य जमीन के साथ ही साथ जंगल भी बर्बाद कर दिए गए है । कारखानों केे लिए जो जमीन आवंटित कर दी जाती है, वह भी उपजाऊ ही होती है । इधर, शहरों का फैलाव तो हो ही रहा है और वह भी अतार्किक ढंग से । यह सही है कि पिछले दो दशक में देश में शहरीकरण भी तेजी से हुआ है । यानी, ग्रामीण आबादी का एक हिस्सा गांवों से पलायन करके शहरों में आ गया है, लेकिन सच यह भी है कि शहरीकरण जिस अनुपात में हो रहा है, शहरों का फैलाव उससे कई गुना ज्यादा हो रहा है । बच्चो ने जहा पर्यावरण सप्ताह में आयोजीत कई प्रतियोगिताओ में उत्साह से भाग लिया गया वही इन प्रतियोगिताओ का समापन समारोह शनिवार को चोह्टन प्रधान शमा खान , जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अजमल हुसेन , स्काउट सी ओ मनोहर कुमार के आतिथ्य में प्रात १० बजे बालिका उच्च माध्यमिक विधालय गोदाम रोड में होगा .

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