पुरी (ओडीशा). दो दिन रह गए हैं। 21 को पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलनी है। लेकिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन बीमार हैं। कस्बेनुमा शहर के बीच बने मंदिर के पट 15 दिनों से बंद हैं, क्योंकि वैद्य भगवान का इलाज कर रहे हैं। इसमें भगवान को दशमूलारिष्ट से बनाई गोलियां (मोदक) दी (चढ़ाई) जा रही हैं। साथ ही जड़ी-बूटियों वाले दुर्लभ पुलरी तेल की मालिश की गई है। चौंकिए नहीं। ऐसा सचमुच हो रहा है। दरअसल रथयात्रा से पहले 15 दिनों के लिए भगवान को बुखार आता है। पंडित गौरीशंकर शृंगारी कहते हैं कि साल में एक ही बार भगवान को स्नान कराया जाता है। इसमें उन्हें ठंडी लग जाती है। भगवान जून की पूर्णिमा से बीमार होते हैं। रथयात्रा से ठीक पहले स्वस्थ हो जाते हैं। 21 की रथयात्रा से पहले 20 को भगवान दर्शन देंगे। जब तक इलाज चलता है भगवान के बजाय उनकी प्रतिकृति रखी जाती है जिनके दर्शन बड़े दरवाजे के छोटे-छोटे छिद्रों में से दस रुपए चुकाकर किए जा सकते हैं।
इलाज वाले तय हैं
भगवान के इलाज के लिए पुजारियों में अलग ही महकमा है। ये जड़ी-बूटियों के जानकार होते हैं। यहां जगन्नाथ मंदिर एक मंत्रालय की तरह काम करता है। इसमें 36 विभाग हैं। सभी पंडितों को उनके पुश्तैनी इतिहास या पौराणिक मान्यताओं के आधार पर जिम्मेदारी दी गई है। खाना बनाने वाले, इलाज करने वाले, शृंगार करने वाले सभी अलग-अलग। दवा देने वाले को दैत्या कहा जाता है। इसी तरह शृंगार करने वाले के नाम के आगे शृंगारी लगा होता है।
स्वर्ग भी सिधारते हैं भगवान
भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन स्वर्ग भी सिधारते हैं। यदि आप मंदिर के पीछे वाले हिस्से में जाएंगे तो आपकों चारों की समाधि मिलेंगी। ये समाधियां 16 साल पुरानी हैं। तब भगवान स्वर्ग सिधारे थे। समाधि बनाने के साथ ही पूरे अनुष्ठान और श्रद्धा के साथ नई मूर्तियों से भगवान की स्थापना कर दी जाती है। पंडित ज्योतिप्रकाश महापात्र कहते हैं अगली समाधि संभवत: 2015 में होगी। जिस जून-जुलाई में दो मलमास आते हैं उसमें भगवान को समाधि दे दी जाती है। यहां समाधियों की रक्षा करने वाला विभाग भी अलग है जिन्हें अघोरी कहा जाता है। नई मूर्तियों की स्थापना के लिए विश्वकर्मा बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले पंडितों का विभाग काम करता है।
खंडित भगवान पूजे जाते हैं
भारतीय संस्कृति में शायद ऐसा कहीं नहीं होता है कि खंडित मूर्ति की पूजा की जाती हो, लेकिन 'जगत' के इस 'नाथ' को दुनिया खंडित स्वरूप में ही पूजती है। जो मूर्तियां मंदिर में रखी हैं उसमें भगवान जगन्नाथ के कान, पांव, हाथ के पंजे और पलकें नहीं हैं, जबकि सुभद्रा और बलभद्र की पलकें तो हैं, लेकिन शेष मूर्ति इनकी भी जगन्नाथ जैसी ही हैं। यह भी बता दें कि और मंदिरों की तरह यहां मूर्तियां किसी धातु की न होकर लकड़ी की हैं।
'फन्नर' मंदिर में नहीं आ सकते
साहब जी इस मंदिर में 'फन्नर' के आने पर रोक है। टैक्सी वाले ने जब ये कहा तो पहले मैं समझा नहीं, फिर सोचा कोई उडिय़ा बिरादरी होगी जिसे मंदिर में घुसने नहीं दिया जाता है। कुछ देर की चुप्पी के फिर पूछा- कौन नहीं आ सकता? जवाब वही मिला- 'फन्नर'। 'फन्नर' का ये रहस्य मंदिर में जाने के बाद खुला। 'फन्नर' याने फॉरेनर। जगन्नाथ मंदिर केवल हिंदुओं के लिए है। बोर्ड पर साफ ये हिदायत लिखी गई है। फन्नर उर्फ फॉरेनर तो यहां आ ही नहीं सकते इसके अलावा भी कुछ बिरादरियों का प्रवेश निषेध है। जानकार इसके पीछे इतिहास में दर्ज मुगल और अंग्रेज कालीन आक्रमणों की बात कहते हैं। कैसे पहचानते हो कि मंदिर में आने वाला हिंदू ही है? इस सवाल का जवाब वहां के कर्ताधर्ता जगन्नाथजी पर छोड़ देते हैं। भगवान से कौन छुप सकता है।
रौनक का इंतजार
समंदर की लहरों से घिरे पुरी के चबूतरों पर साधु बाबाओं और होटलों में देशी-विदेशी सैलानियों ने डेरा जमा लिया है लेकिन भक्तों की लहरें अभी नहीं उठी हैं। चार किलो मीटर लंबे जिस मार्ग से रथ यात्रा गुजरेगी, वहां अभी सड़क पर सब्जी मंडी लग रही है, बेतरतीब रिक्शा स्टैंड भी वहीं डटा है। यह जरूर है इस मार्ग पर पडऩे वाले घरों, दुकानों और होटलों में बांस-बल्ली ठोंककर मेहमानों के लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। बाहर से आए रंगरूटों के बूट पुरी की सड़कों पर बजने लगे हैं। भक्तों का मजमा 20 से लगेगा जो 22 की सुबह तक रहेगा। वो परीक्षा की घड़ी होती है।
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