गुरुवार, 7 जून 2012

वैज्ञानिकों ने दी धरती के अंत की चेतावनी

 

लगातार बढ़ रही जनसंख्या अब धरती के अस्तित्व के लिए ही खतरा बन गई है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने धरती के अंत की ओर बढ़ने की चेतावनी देते हुए पानी, जंगल और जमीन के अधिक उपयोग को इसका कारण बताया है।

शोध पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि धरती अब उस दिशा में बढ़ रही है जब कई प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी और अमूलचूल बदलाव होंगे। ऐसा 12 हजार साल पहले ग्लेशियर रीट्रीट के दौरान हुआ था। ये वो प्रजातियां हैं, जिन पर हम निर्भर हैं। ऐसे में अंतत: हमारा अस्तित्‍व भी संकट में पड़ जाएगा।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि हम प्रकृति से टकराव के सबसे बुरे दौर के करीब आ गए हैं और स्थितियां उससे कहीं ज्यादा भयावह है जैसा कि हमने पहले सोचा था।

साइंटिफिक थ्यौरी, इकोसिस्टम मॉडलिंग, पैलियनटोलॉजिकल एविडेंस आदि तरीकों का इस्तेमाल करते हुए विभिन्न क्षेत्रों के माहिर 18 वैज्ञानिकों की टीम ने शोध के बाद कहा है कि धरती पर मौजूद इकोसिस्टम ध्वस्त होने के कगार पर है और इस पतन को रोका नहीं जा सकता।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि धरती की जैविक विविधता, मौसम में बदलाव, टोटल एनर्जी बजट में तीव्र बदलाव, और इकोसिस्टम का आपस में संतुलन खतरे के निशान पर है और ऐसा बिंदू करीब आ गया गया है जहां धरती पतन की ओर चली जाएगी।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इकोसिस्टम के ध्वस्त होने का समय इसी शताब्दी के भीतर भी आ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो धरती का संतुलन बिगड़ जाएगा और परिस्थितियां पलक झपकते ही पूरी तरह बदल जाएगीं। इससे पहले धरती पर बड़ा बदलाव करीब 12 हजार साल पहले हुआ था जब ग्लेशियर पिघले थे। इससे पहले धरती पर एक लाख साल तक सिर्फ बर्फ की चट्टाने ही थीं।

शोध पत्र की सह लेखिका आर्नी मूअर्स ने कहा, 'एक बार जब धरती पर यह बड़ा बदलाव हुआ था तब तब सिर्फ एक हजार साल के अंदर ही धरती की परिस्थितियां पूरी तरह बदल गईं थी और यह उस स्थिति में आ गई थी जिस स्थिति में अब है। यह एक बच्चे का एक साल के भीतर ही वयस्क होने जैसा था। महत्वपूर्ण बात यह है कि धरती अब इससे भी तेज गति से बदल रही है। अगले बदलाव का मौजूदा मानव सभ्यता पर व्यापक असर होने की संभावना बेहद ज्यादा है। हमे यह याद रखना होगा कि हम जंगली सभ्यता से मौजूदा मार्डन सभ्यता में धरती के सबसे संतुलित समय में आए हैं।'

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