खारे पानी को मीठा करने के सुजलाम योजना फेल
थार में "कलाम" का "कमाल" भी बेकार
बाड़मेर। थार के रेगिस्तान में बसे लोगों और यहां सरहदों की सुरक्षा कर रहे जवानों के लिए भयंकर समस्या बन चुके मीठे पानी के लिए देश के जाने माने वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलामऎसा कमाल किया था कि इस योजना को समूचे बाड़मेर में तरीके से चलाया गया होता तो दुरूह धोरों को किसी बड़ी परियोजना का इंतजार नहीं होता। अपने गांव के खारे पानी को मीठा कर लोग अपनी जरूरत पूरा कर लेते।
कम राशि में बड़ी समस्या को हल करने के कलाम की कमाल की योजना ने साकारा रूप भी ले लिया था, लेकिन जलदाय महकमे की अरूचि ने सारे किए धरे पर पानी फेर दिया। थार में सुजलम परियोजना के तहत स्थापित 37 ईडी संयंत्र(जल निर्लवणीकरण संयत्र) फेल कर दिए गए।
वर्ष 1997 में डॉ. कलाम रक्षा प्रयोगशाला में प्रमुख वैज्ञानिक थे। इस दौरान उनके सामने पश्चिमी राजस्थान की सरहद पर जवानों के सामने आ रही पेयजल की समस्या का जिक्र किया गया। स्वयं कलाम बाड़मेर आए और उन्होंने इसे समझा। उन्होंने पाया कि यहां मीठा पानी तो नहीं है, लेकिन कई गांव ऎसे है जहां खारा पानी जरूर है। इस खारे पानी को मीठे मेे तब्दील कर दिया जाए तो सैकड़ों गांवों की समस्या हल हो सकती है। सरहदी गांवों में यह संयंत्र लगने से बीएसएफ व सेना के जवानों को भी फायदा हो जाएगा। कलाम ने इसका उपाय खोज लिया।
उन्होंने पानी में टीडीएस व लवण की मात्रा को कम करने के लिए ईडी प्लांट तैयार करवाए। प्रतिदिन पांच से दस हजार लीटर पानी मीठा हो सकता था। रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर को यह जिम्मेवारी सौंपते हुए 37 गांवों में संयंत्र स्थापित किए। आराबा दूदावता व चौहान गांव में स्वयं डॉ. कलाम ने इसका उद्घाटन किया। 37 गांवों में सालों बाद मीठा पानी पहुंचा और लोगों की समस्या का समाधान हो गया।
पांच साल तक सब ठीक रहा और रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर इसकी देखरेख करती रही, लेकिन पांच साल के रखरखाव बाद इसे जलदाय महकमे को सुपुर्द कर दिया। जलदाय महकमे ने इसे एक दिन भी गंभीरता से नहीं लिया। यहां एक गैर तकनीकी व्यक्ति की नियुक्ति कर दी गई। इसके बाद लगातार इन संयंत्रों में खराबी आने लगी। कई बार ग्रामीणों, सरपंचों व जनप्रतिनिधियों ने शिकायत की लेकिन महकमे ने ध्यान ही नहीं दिया। दो साल में तो सारे संयंत्र जवाब दे गए। ऎसे में एक बड़ी और कमाल की योजना थार में फेल हो गई।
खुद कलाम को दु:ख
राष्ट्रपति रहते हुए कलाम बाड़मेर यात्रा पर आए। आराबा के सरपंच उम्मेदसिंह आराबा ने उन्हें सारी बात बताई। कलाम को इस पर दु:ख हुआ। उन्होंने इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए, लेकिन जलदाय महकमे ने तो जैसे इन संयंत्रों से दुश्मनी ही पाल ली थी।
भयंकर पेयजल किल्लत
जहां ये संयंत्र स्थापित है आज उन गांवों में पानी की भयंकर किल्लत है। ग्रामीण पांच सौ से आठ सौ रूपए टैंकर के देकर पानी खरीद रहे हंै। अधिकांश जगह अन्य कोई सरकारी इंतजाम नहीं है। जहां है वहां भी पानी की आपूर्ति महीनों नहीं होती है।
काया कल्प हो जाता
कमाल की इस योजना को गांव ढाणियों में शुरू कर दिया गया होता तो काया कल्प हो जाता। जीएलआर टांकों के साथ इस प्रकार के संयंत्र खड़े हो जाते तो दूरस्थ ढाणियों में लंबी लंबी पाइप लाइन बिछाने की जरूरत नहीं होती।
ध्यान ही नहीं दिया
इस योजना पर जलदाय विभाग ने ध्यान दिया न प्रशासनिक तंत्र ने। कलाम के दिमाग को पूरा देश सलाम करता है। उन्होंने योजना बनाई थी तो शर्तियां इसमें बहुत दम था। कम लागत की इस योजना से पूरे जिले की समस्या हल हो सकती थी।
उम्मेदसिंह आराबा,पूर्व सरपंच (कलाम के साथ रहकर पूरी योजना को परखा था)
थार में "कलाम" का "कमाल" भी बेकार
बाड़मेर। थार के रेगिस्तान में बसे लोगों और यहां सरहदों की सुरक्षा कर रहे जवानों के लिए भयंकर समस्या बन चुके मीठे पानी के लिए देश के जाने माने वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलामऎसा कमाल किया था कि इस योजना को समूचे बाड़मेर में तरीके से चलाया गया होता तो दुरूह धोरों को किसी बड़ी परियोजना का इंतजार नहीं होता। अपने गांव के खारे पानी को मीठा कर लोग अपनी जरूरत पूरा कर लेते।
कम राशि में बड़ी समस्या को हल करने के कलाम की कमाल की योजना ने साकारा रूप भी ले लिया था, लेकिन जलदाय महकमे की अरूचि ने सारे किए धरे पर पानी फेर दिया। थार में सुजलम परियोजना के तहत स्थापित 37 ईडी संयंत्र(जल निर्लवणीकरण संयत्र) फेल कर दिए गए।
वर्ष 1997 में डॉ. कलाम रक्षा प्रयोगशाला में प्रमुख वैज्ञानिक थे। इस दौरान उनके सामने पश्चिमी राजस्थान की सरहद पर जवानों के सामने आ रही पेयजल की समस्या का जिक्र किया गया। स्वयं कलाम बाड़मेर आए और उन्होंने इसे समझा। उन्होंने पाया कि यहां मीठा पानी तो नहीं है, लेकिन कई गांव ऎसे है जहां खारा पानी जरूर है। इस खारे पानी को मीठे मेे तब्दील कर दिया जाए तो सैकड़ों गांवों की समस्या हल हो सकती है। सरहदी गांवों में यह संयंत्र लगने से बीएसएफ व सेना के जवानों को भी फायदा हो जाएगा। कलाम ने इसका उपाय खोज लिया।
उन्होंने पानी में टीडीएस व लवण की मात्रा को कम करने के लिए ईडी प्लांट तैयार करवाए। प्रतिदिन पांच से दस हजार लीटर पानी मीठा हो सकता था। रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर को यह जिम्मेवारी सौंपते हुए 37 गांवों में संयंत्र स्थापित किए। आराबा दूदावता व चौहान गांव में स्वयं डॉ. कलाम ने इसका उद्घाटन किया। 37 गांवों में सालों बाद मीठा पानी पहुंचा और लोगों की समस्या का समाधान हो गया।
पांच साल तक सब ठीक रहा और रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर इसकी देखरेख करती रही, लेकिन पांच साल के रखरखाव बाद इसे जलदाय महकमे को सुपुर्द कर दिया। जलदाय महकमे ने इसे एक दिन भी गंभीरता से नहीं लिया। यहां एक गैर तकनीकी व्यक्ति की नियुक्ति कर दी गई। इसके बाद लगातार इन संयंत्रों में खराबी आने लगी। कई बार ग्रामीणों, सरपंचों व जनप्रतिनिधियों ने शिकायत की लेकिन महकमे ने ध्यान ही नहीं दिया। दो साल में तो सारे संयंत्र जवाब दे गए। ऎसे में एक बड़ी और कमाल की योजना थार में फेल हो गई।
खुद कलाम को दु:ख
राष्ट्रपति रहते हुए कलाम बाड़मेर यात्रा पर आए। आराबा के सरपंच उम्मेदसिंह आराबा ने उन्हें सारी बात बताई। कलाम को इस पर दु:ख हुआ। उन्होंने इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए, लेकिन जलदाय महकमे ने तो जैसे इन संयंत्रों से दुश्मनी ही पाल ली थी।
भयंकर पेयजल किल्लत
जहां ये संयंत्र स्थापित है आज उन गांवों में पानी की भयंकर किल्लत है। ग्रामीण पांच सौ से आठ सौ रूपए टैंकर के देकर पानी खरीद रहे हंै। अधिकांश जगह अन्य कोई सरकारी इंतजाम नहीं है। जहां है वहां भी पानी की आपूर्ति महीनों नहीं होती है।
काया कल्प हो जाता
कमाल की इस योजना को गांव ढाणियों में शुरू कर दिया गया होता तो काया कल्प हो जाता। जीएलआर टांकों के साथ इस प्रकार के संयंत्र खड़े हो जाते तो दूरस्थ ढाणियों में लंबी लंबी पाइप लाइन बिछाने की जरूरत नहीं होती।
ध्यान ही नहीं दिया
इस योजना पर जलदाय विभाग ने ध्यान दिया न प्रशासनिक तंत्र ने। कलाम के दिमाग को पूरा देश सलाम करता है। उन्होंने योजना बनाई थी तो शर्तियां इसमें बहुत दम था। कम लागत की इस योजना से पूरे जिले की समस्या हल हो सकती थी।
उम्मेदसिंह आराबा,पूर्व सरपंच (कलाम के साथ रहकर पूरी योजना को परखा था)
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