यह फिल्म अमर अकबर अन्थोनी ...यह पोस्टर मुझे अपने बचपन की याद दिलाता हें जब बाड़मेर के सिनेमाघरों में यह फिल्म लगती थी भरी भीड़ होती थी ...पहली बार ..इस फिल्म को देखा तब बहूत छूता था..बाद में पांचवी कक्षा में था तब भाई के साथ जिद के चलते देखि ..तब भी नहीं समझा ..बाद में इस फिल को कोई सौ बार देखा ...टी .वी पर जब भी आती हें जरूर देखता हूँ ..फिल्म के पोस्टर बचपन में देखने में मज़ा आता था ..अब तो पोस्टर देखने लायक ही नहीं होते ...अमर अकबर एंथॉनी 1977 की सुपर ब्लॉकबसटर फिल्म है, जिसने कई फिल्म फेयर पुरस्कार जीते है| ‘कुली’, ‘नसीब’ के निर्माता मनमोहन देसाई ने इस फिल्म को बहुत ही हास्य, रोमांचक,और परिवारिक तरह से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है| इस फिल्म की सफलता के बाद मनमोहन देसाई शीर्ष निर्देशकों की सूची में शुमार हो गये थे| कहानी कोई नही नही है, लेकिन देसाई ने इसे काफ़ी अच्छे तरह से दर्शकों के सामने रखा और कलाकारों के अभिनय ने फिल्म की सफलता निश्चित कर दी|
रॉबर्ट(जीवन), किसनलाल(प्राण) को खून का इल्ज़ाम अपने सर लेने को कहता है| रॉबर्ट कहता है की उसके परिवार को देख रेख करेगा और 3 गुना पैसा देगा| किशनलाल जब जेल से आता है, तो अपनी पत्नी भारती(निरूपा रॉय) को बीमार देखता है| इस गुस्से मे किशनलाल रॉबर्ट को मारने जाता है और उसकी सोने की बिस्कुट से भारी गाड़ी लेकर भाग जाता है| इसी दौरान पूरा परिवार एक- दूसरे से दूर हो जाते है|
अमर(विनोद खन्ना) को हिंदू परिवार रखता है और पुलिस बनता है, अकबर(ऋषि कपूर) को मुस्लिम परिवार रखता है, वह गायक बनता है और एंथॉनी(अमिताभ बच्चन) चर्च की सीढ़ी पर पाद्री को मिलता है| एंथॉनी जीजस को अपना दोस्त मानता है और अपनी कमाई का आधा चर्च मे दान दे देता है|
अमर लक्ष्मी(शबाना आज़मी) से प्रेम करता है जो एक चोर रहती है, अकबर सलमा(नीतू सिंग) से प्यार करता है जो डाक्टर रहती है, और एंथॉनी जेन्नी(परवीन बाबी) से प्यार करता है| तीनो भाईयो और मा अचानक एक दुर्घटना मे मिलते है, लेकिन कोई किसी को पहचान नही पाता है| फिल्म मे कई बार एक दूसरे से मिलते है. लेकिन कोई पहचान नही पता है| फिल्म इन्ही कलाकारों के इर्द गिर्द घूमती है|
इस फिल्म मे एक साई बाबा पर एक गाना फिल्माया गया है जो काफ़ी लोकप्रिय है|
देसाई ने इस फिल्म से अपने कुशल निर्देशन का भरपूर परिमान दिया है| ना सिर्फ़ उन्होने सशक्त पटकथा दी, पर सभी कलाकारों से बेहतरीन अभिनय करवाने ने भी सफल रहे| वैसे तो सभी ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया पर अमिताभ का किरदार फिल्म की जान रहा और दर्शकों को बेहद पसंद आया| फिल्म के संवाद शानदार है जो लोगों को आज भी मूँह ज़ुबानी याद है| इस फिल्म का संवाद "ऐसा तो आदमी लाइफ में दो-इच टाइम भागता है. ओलिंपिक का रेस हो या फिर पुलिस का केस हो" जो अमिताभ ने बोला था बहुत लोकप्रिया हुआ|
इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का खिताब मिला था|
अमिताभ का हास्य किरदार जिसमे वह शीशे के सामने जखम पर डेटोल लगाता है भी दर्शकों को बेहद पसंद आया|
फिल्म मे कई अच्छे गाने है :
माइ नेम ईज़ जिसमे अमिताभ एक अंडे से गाने की शुरुआत करते है|
अनहोनी को होनी कर दें गाना काफ़ी लोकप्रिय हुआ जो तीनो भाइयो ने मिलकर गाया था |
शिर्डी वाले साई बाबा(मो. रफ़ी ने ब्ख़ूबी अपनी सुरीली आवाज़ मे गाया है)
देख के तुमको दिल डोला है(मो. रफ़ी, किशोर कुमार,मुकेश,लता मांगेस्कर ने गया है)
संपूर्ण मे फिल्म अपने समय की सबसे सफल फिल्मों में जानी जाती है और आज भी दर्शक इसे बड़े चाव से देखते है|
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