जम्मू से 45 मील दूर उत्तर-पश्चिम से शतशृंग नामक पर्वत है। कटरा नगर इस पर्वत के चरणों में बसा हुआ है। इस पर्वत के मध्यभाग में माता वैष्णो की पवित्र गुफा है। यह जम्मू के ऊधमपुर मंडल के अंतर्गत चिडि़आई नामक गांव से लेकर रियासी तक लगभग मीलों तक फैली हुई तहदार चट्टान में बनी हुई है। जब माता वैष्णो आदि कुमारी स्थान से महिषासुर का पीछा करती हुई इस स्थान पर पहुंचीं तो गुफा के बाहर महिषासुर का संहार करने के उपरांत उन्होंने इसी गुफा में तप करने का निर्णय किया था।
प्राकृतिक शिलाखंड पर उभरी तीन पिंडियां हैं, दक्षिण भाग में महासरस्वती की, मध्य में वैष्णवी की तथा वामभाग में महाकाली की। मूल पराशक्ति एक है, अत: यह पिंडी भी मूल से एक ही है और लगभग पांच-छ: फुट लम्बी है। ऊपर आकर इसी पिंडी के तीन अलग-अलग रूप हो गए हैं। ये तीनों पिंडियां सोने के पत्रों से मण्डित हैं। सबके सिर पर सोने के मुकुट और सोने के छत्र शोभायमान हैं। इन तीन पिंडियों की पृष्ठभूमि में इन्हीं देवियों की साकार मूर्तियां स्थापित हैं।
मध्यवर्ती पिंडी माता महालक्ष्मी की है। महालक्ष्मी विष्णु की शक्ति है और इनका दूसरा नाम वैष्णवी है। यह वैष्णवी पराशक्ति हैं।
शास्त्रों के अनुसार जो परमशुद्ध सत्स्वरूपा हैं, उनका नाम महालक्ष्मी है, परम परमात्मा श्रीहरि की वह शक्ति हैं हजार पंखुडिय़ों वाला कमल उनका आसन है। इनके मुख की शोभा तपे हुए स्वर्ण के समान है। इनका रूप करोड़ों चंद्रमाओं की कांति से सम्पन्न है। सम्पत्तियों की ईश्वरी होने के कारण अपने सेवकों को यह धन, ऐश्वर्य, सुख, सिद्धि और मोक्ष प्रदान करती हैं।
यह शक्ति सबकी कारण रूप हैं। सर्वोच्च पतिव्रता हैं और वैकुंठ लोक में अपने स्वामी श्री हरि की सेवा में लीन रहती हैं। गुफा में दूसरी पिंडी माता महाकाली की है। महाकाली महाशक्ति का प्रधान अंश है। शुंभ और निशुंभ से होने वाले महासमर के समय यह भगवती दुर्गा के ललाट से प्रकट हुई थीं। इन्हें भगवती दुर्गा का आधा अंश माना जाता है। गुण और तेज में यह दुर्गा के समान ही हैं। इनका अत्यंत शक्तिशाली शरीर करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी है।
सम्पूर्ण शक्तियों में ये प्रमुख हैं। यह परम योग स्वरूपिणी सम्पूर्ण सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। श्री हरि की वह अनन्य भक्त हैं। तेज, पराक्रम और गुण में ये श्री हरि के तुल्य हैं। इनके शरीर का रंग काला है और इतनी शक्तिशाली हैं कि यदि यह चाहें तो एक ही सांस में सारे विश्व को नष्ट कर सकती हैं। जो भी मनुष्य महाकाली भगवती की पूजा करता है उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष तथा अन्य सांसारिक सम्पत्तियां प्राप्त होती हैं। ब्रह्म, देवता, मुनिगण और मानव सब इनकी उपासना करते हैं।
इनका एक प्रसिद्ध नाम चामुंडा है। इन्होंने असुरों के साथ होने वाले युद्ध में चण्ड-मुण्ड नामक दो महाअसुरों का संहार किया था, अत: इनको चामुंडा भी कहा जाने लगा। मधु-कैटभ द्वारा संकटग्रस्त होने पर इन्होंने ब्रह्मा और विष्णु को भयमुक्त किया था। इनकी कृपा से मानव निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसे कोई पराजित नहीं कर सकता।
गुफा में तीसरी पिंडी महासरस्वती की है। महाशक्ति के तीसरे प्रमुख रूप का नाम महासरस्वती है। पारब्रह्म परमात्मा से संबंध रचाने वाली वाणी की अधिष्ठात्री, कवियों की इष्टदेवी, शुद्ध सत्यस्वरूपा और शांत रूपिणी हैं। वाणी, विद्या, बुद्धि और ज्ञान को प्रदान करने वाली यही देवी हैं। वाणी में श्रेष्ठता, विद्याओं और कलाओं में निपुणता, बुद्धि में विलक्षणता के लिए इनकी कृपा आवश्यक है।मां सरस्वती का शरीर अत्यंत गौर वर्ण का है। वह अत्यंत सुंदर और तेजस्वी हैं। इनका शरीर तेज की आभा से इतना कांतिमान रहता है कि करोड़ों चंद्रमाओं की आभा भी उनके सामने तुच्छ प्रतीत होती है।
इनकी कृपा से शास्त्र और ज्ञान संबंधी सभी भ्रम और संदेह मिट जाते हैं। मानव को स्मरण शक्ति प्रदान करने वाली माता सरस्वती को स्मृति शक्ति, ज्ञान शक्ति और बुद्धि शक्ति कहा गया है। प्रतिभा और कल्पना शक्ति भी यही हैं। इनकी मूर्ति तपोमयी है तपस्या करने वाले अपने भक्त को यह तत्काल फल प्रदान करती हैं। सिद्धि विद्या स्वरूपिणी होने के कारण वह सिद्धि देने वाली हैं।
यात्रा कथा
पवित्र गुफा लगभग 98 फुट लम्बी है। गुफा के भीतर व बाहर कई अन्य सांकेतिक दर्शन भी हैं। मान्यता है कि सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं ने इस गुफा में किसी न किसी समय माता की उपासना की है व अपने चिन्ह छोड़े हैं। यह भी माना जाता है कि प्रात: व सायंकालीन पूजन व आरती के समय देवी-देवता पवित्र गुफा में माता की वंदना हेतु आते हैं। गुफा के मुख पर बाएं हाथ की ओर वक्रतुंड श्री गणेश के दर्शन हैं। समीप ही सूर्य व चंद्रदेव के चिन्ह हैं। गुफा में प्रवेश करते ही भैरों नाथ का शिला रूपी धड़ आता है। भैरों नाथ के धड़ के पश्चात श्री हनुमान के दर्शन होते हैं व उसी स्थान पर माता के पावन चरणों से होकर आती चरण गंगा कलकल बहती है।
इस स्थान के बाद यात्री को इसी चरणगंगा के जल में से होकर आगे बढऩा होता है जहां से 23 फुट की दूरी पर बाएं हाथ पर ऊपर की ओर गुफा की छत मानो शेषनाग के असंख्य फनों पर टिकी नजर आती है। शेषनाग के फन के नीचे माता का हवन कुंड व उसके पास माता के शंख, चक्र, गदा व पद्म के चिन्ह हैं। उसके ऊपर गुफा की छत को छूते हुए पांच पांडव, सप्त ऋषि, कामधेनु के थन, ब्रह्मा, विष्णु, महेश व शिव पार्वती के चिन्ह हैं।
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