सोमवार, 21 मई 2012

'अन्याय के खिलाफ लड़ना है मां, मुझे घर मत ले जाओ'

गोहाना.रविवार दोपहर 2 बजकर 5 मिनट हुए हैं। विवि की छात्रा रितु को उसकी मां अपने साथ छात्रावास से घर ले जा रही है। उसके साथ-साथ चलती हुई रितु बार-बार अपनी मां से आग्रह कर रही है कि मम्मी प्लीज मुझे घर मत ले जाओ।

 

मुझे अन्याय के खिलाफ लड़ना है, लेकिन मां उसे कभी समझाते हुए तो कभी फटकारते हुए चुपचाप घर चलने की नसीहत दे रही हैं। न चाहते हुए मां के सामने मजबूर रितू आंदोलनकारियों साथियों को छोड़कर मां के साथ-साथ घर की ओर चल पड़ती है।



ठीक 15 मिनट के बाद 2 बजकर 20 मिनट पर एक व्यक्ति अपनी बेटी व उसके सामान के साथ विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से बाहर निकलता है। 2 बजकर 37 मिनट पर विवि के मुख्य द्वार से विवि की एक बस बाहर निकलती है। बस के अंदर से छात्राओं के चिल्लाने की आवाज आती है। वास्तव में इस बस में छात्राओं को बैठाकर गोहाना के बस अड्डे पर ले जाया जा रहा है।



आरोप है कि इन छात्राओं को निर्देश दिए गए हैं कि वापस न आकर अपने घरों को चली जाएं। तभी धरनास्थल पर बैठी हुई अनेकों छात्राएं दौड़ती हुई बस को सामने से घेर लेती हैं। विश्वविद्यालय के कुछ कर्मचारी व पुलिस कर्मी आनन-फानन में उस बस को वापस विश्वविद्यालय परिसर में ले जाते हैं। आंदोलनकारी छात्राएं दौड़ती हुई महिला विश्वविद्यालय के सीनियर सेकेंडरी स्कूल के नजदीक वाले द्वार की ओर जाने का प्रयास करती हैं, लेकिन उसके वहां पहुंचने से पहले ही बस उस गेट से गोहाना की ओर रवाना हो जाती है।



दोपहर 3 बजे धरनास्थल पर बैठी हुई एक छात्रा अचानक बेहोश हो जाती है। उसकी सहेलियां उसके चेहरे पर पानी के छींटे डालती हैं। होश में आते हुए वह छात्रा रोने लगती है। रोते-रोते छात्रा के मुंह से सिर्फ यही शब्द निकलते हैं अब क्या होगा। लड़कियां घटती जा रही हैं.. कैसे चलेगा आंदोलन.. क्या हमेशा ऐसे ही जुल्म झेलने पड़ेंगे। और फिर से रोने लगती हैं।

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