नई दिल्ली. बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनने जा रहे नए कानून प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट (पीसीएसओए) के प्रावधानों पर गौर करने से पता चलता है कि इसमें कई नई बातें हैं तो कई चिंता बढ़ाने वाली भी हैं। इस कानून का एक प्रमुख प्रावधान यह है कि 18 साल से कम उम्र में सहमति के बावजूद सेक्स करना गैरकानूनी होगा। पहले यह उम्र सीमा 16 साल थी। इसके अलावा नए कानून के प्रावधान आईपीसी में वयस्कों से संबंधित इसी प्रकार के मौजूदा प्रावधानों से इस तरह अलग है।
अवयस्कों के लिए रेप में लिंग का महत्व नहीं
1860 में बनी आईपीसी के अनुसार एक पुरुष ही बलात्कार करता सकता है, लेकिन पीसीएसओए के तहत इसे ‘पेनेट्रेटिव सेक्सु्अल एसॉल्टल’ कहा जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि जब वयस्कों का मामला होगा तो केवल महिला के साथ ही बलात्कार हो सकता है। पीसीएसओए में पहली बार इस बात की पहचान की गई है कि एक लड़के के साथ एक लड़की या एक महिला भी बलात्कार कर सकती है।
पेनेट्रेशन की परिभाषा में विस्तार
आईपीसी के अनुसार बलात्कार की परिभाषा में पेनेट्रेशन एक आवश्यकक शर्त है और परंपरागत रूप से इसे 'पेनाइल वेजिना इंटरकोर्स' तक सीमित रखा गया है। इसके बरक्स पीसीएसओए के प्रावधानों में पेनाइल पेनेट्रेशन केवल योनि तक सीमित नहीं होकर बच्चे के मुख, यूरेथ्रा या गुदा भी शामिल है। इसके तहत उन परिस्थितियों को भी शामिल किया गया है जहां आरोपी किसी बच्चे के शरीर के किसी हिस्से में किसी हद तक कोई वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा ‘पेनेट्रेट’ करता है। 18 साल के किसी बच्चे के साथ ‘ओरल सेक्स’ भी रेप की परिभाषा के तहत आएगा।
दुष्कर्म के लिए सजा बढ़ी
आईपीसी के तहत यदि कोई शख्स किसी महिला की इज्जत के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे दो साल की सजा हो सकती है। रुचिका गिरहोत्रा केस में लोगों के गुस्से का नतीजा यह दिखा कि पीसीएसओए के तहत यदि कोई वयस्क किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म करता है तो उसे तीन से पांच साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
पीडित नहीं, आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने का बोझ
पीसीएसओए में कहा गया है कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के मामले में आरोपी को यह साबित करना होगा कि उसने ऐसा नहीं किया, न कि पीडित को यह साबित करने की जरूरत है कि उसके साथ गलत हुआ। यदि आरोपी अवयस्क है तो मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष की बात पहले रखी जाएगी।
झूठी शिकायत करने वाले बच्चे को कोई सजा नहीं
यदि कोई वयस्क किसी के खिलाफ बच्चों के साथ यौन अपराध के झूठे आरोप लगाता है तो ऐसे शख्स के खिलाफ पीसीएसओए के तहत छह महीने तक कैद का प्रावधान है लेकिन नया कानून किसी बच्चे को ऐसे आरोप लगाने के बाद निर्दोष मानता है। यदि कोई बच्चा यौन शोषण की झूठी शिकायत करता है या गलत सूचना देता तो उसे किसी तरह की सजा नहीं होगी। इसका मतलब हुआ कि यदि कोई अवयस्क दूसरे अवयस्क के खिलाफ झूठे आरोप लगाता है तो आरोप लगाने वाले पर कोई जवाबदेही तय नहीं होती।
अवयस्कों के लिए रेप में लिंग का महत्व नहीं
1860 में बनी आईपीसी के अनुसार एक पुरुष ही बलात्कार करता सकता है, लेकिन पीसीएसओए के तहत इसे ‘पेनेट्रेटिव सेक्सु्अल एसॉल्टल’ कहा जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि जब वयस्कों का मामला होगा तो केवल महिला के साथ ही बलात्कार हो सकता है। पीसीएसओए में पहली बार इस बात की पहचान की गई है कि एक लड़के के साथ एक लड़की या एक महिला भी बलात्कार कर सकती है।
पेनेट्रेशन की परिभाषा में विस्तार
आईपीसी के अनुसार बलात्कार की परिभाषा में पेनेट्रेशन एक आवश्यकक शर्त है और परंपरागत रूप से इसे 'पेनाइल वेजिना इंटरकोर्स' तक सीमित रखा गया है। इसके बरक्स पीसीएसओए के प्रावधानों में पेनाइल पेनेट्रेशन केवल योनि तक सीमित नहीं होकर बच्चे के मुख, यूरेथ्रा या गुदा भी शामिल है। इसके तहत उन परिस्थितियों को भी शामिल किया गया है जहां आरोपी किसी बच्चे के शरीर के किसी हिस्से में किसी हद तक कोई वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा ‘पेनेट्रेट’ करता है। 18 साल के किसी बच्चे के साथ ‘ओरल सेक्स’ भी रेप की परिभाषा के तहत आएगा।
दुष्कर्म के लिए सजा बढ़ी
आईपीसी के तहत यदि कोई शख्स किसी महिला की इज्जत के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे दो साल की सजा हो सकती है। रुचिका गिरहोत्रा केस में लोगों के गुस्से का नतीजा यह दिखा कि पीसीएसओए के तहत यदि कोई वयस्क किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म करता है तो उसे तीन से पांच साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
पीडित नहीं, आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने का बोझ
पीसीएसओए में कहा गया है कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के मामले में आरोपी को यह साबित करना होगा कि उसने ऐसा नहीं किया, न कि पीडित को यह साबित करने की जरूरत है कि उसके साथ गलत हुआ। यदि आरोपी अवयस्क है तो मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष की बात पहले रखी जाएगी।
झूठी शिकायत करने वाले बच्चे को कोई सजा नहीं
यदि कोई वयस्क किसी के खिलाफ बच्चों के साथ यौन अपराध के झूठे आरोप लगाता है तो ऐसे शख्स के खिलाफ पीसीएसओए के तहत छह महीने तक कैद का प्रावधान है लेकिन नया कानून किसी बच्चे को ऐसे आरोप लगाने के बाद निर्दोष मानता है। यदि कोई बच्चा यौन शोषण की झूठी शिकायत करता है या गलत सूचना देता तो उसे किसी तरह की सजा नहीं होगी। इसका मतलब हुआ कि यदि कोई अवयस्क दूसरे अवयस्क के खिलाफ झूठे आरोप लगाता है तो आरोप लगाने वाले पर कोई जवाबदेही तय नहीं होती।
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