मरते है बेटे, जीती है बेटियां
बाड़मेर ।हर आने जाने वाले राहगीर व वाहन चालक को वे रूकने का इशारा करती है गोया लिफ्ट मांग रही हो। इतने में एक वाहन रूकता है । उसमें सवार कुछ लोग नीचे उतर कर एक युवती से बात करते है । कुछ पलों की बातचीत के बाद युवती उन लोगों के साथ वाहन में सवार होजाती है। एक झटके के साथ रवाना होता वाहन क्षणांक में ही अन्धेरे का हिस्सा बनजाता है ।
अनजान लोगों को यह ाब्द चित्र किसी कहानी का हिस्सा लग सकता है लेकिन समदड़ी क्षैत्र के आधा दर्जन गांवो में यह रोजमर्रा की हकीकत है । जिस्मफरोशी के कारोबार ने यंहा इस कदर पैर फेला दिए है कि इन गावों में रहने वाले ग्रामीणों को अपने गांव का नाम बताने में भी ार्म महसुस होती है । जिस्मफरोशी की इस मण्डी से आसपास के ान्त वातावरण को जबरदस्त ठेस पहुंची है।
समदड़ी क्षेत्र के सांवरड़ा, करमावास, सुइली, मजलव लाखेटा इत्यादि गावों तक जिस्मफरोशी का कारोबार बेरोक टोक चलता है । इनमें से सावरड़ा और करमावास में एक जाति विशोा के लोगों की संख्या ज्यादा होने से यह धन्धा ब.ता ही जा रहा है। इससे आसपास की सामाजिक संस्कृति पर पड़ रहे दुप्रभाव से अधिकांश ग्रामीणों को तनाव का सामना करना पड़ रहा है । इन सभी गांवो में सड़कों के किनारे इस धन्धे में लिप्त युवतियां सजधज कर आने जाने वाले राहगीर को न्यौता देती है । युवा इनकी जद में फंस जाते है । एक बार कोई युवा भूल से भी समय व्यतीत करने इनके साथ हो लिया तो पुनः उसे इस जगह पर आना ही पड़ता है । दिन भर इन गावों में सुबह से लगा कर रात तक रंगरेलियां मनाने वालों का जमघट रहता है । इस जाति के लोगों के लिए जिस्मफरोशी जीवन यापन का जरिया है । पन्द्रह साल से लेकर चालीस साल तक उम्र की महिलाऐं इसमें लिप्त है । परिवार के पुरू एंव वृद्ध महिलाऐं ग्राहकों को तलाशने में मदद करती है।
पिछले कई वाोर्ं से वेश्यावृति में लिप्त होने से यहां की युवतियां एंव महिलाएं विभिन्न प्रकार की बीमारियों से भी ग्रसित रही है । इस वजह से भी ग्रामीणों में भय के साथ रोा भी व्याप्त है।
इस संबध में करमावास के सरपंच ने बताया कि इस अवैध धंधे में लिप्त डेरों पर समाजकंटकों का जमघट रहने से आसपास का वातावरण दूित हो रहाहै ।
उन्होने इस पर अंकुश लगाने की मांग भी की है। सावरड़ा ग्राम पंचायत की पूव र्महिला संरपच ने भी दो वार पूर्व वेश्यावृति के खिलाफ आवाज उठाई थी । उन्होने गांव में पुलिस चौकी स्थापित करने के लिए पंचायत का प्रस्ताव भेजकर प्रशासन से मदद की गुहार की थी । ंइस पर कोई ठोस कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई । स्थिति यह है कि इन गांवो के नाम दूसरे लोग घृणा से लेते है । जिस्म फरोशी के कारोबार ने इन गावों के नाम को बदनाम कर दिया है । ऐसे में शरीफ लोगों का यहां रहना मुश्किल हो गया है । कई बार शरारती तत्वों द्वारा शराब के नशे में चूर होकर ग्रामीणों सहित राहगीरों के साथ गालीगलौच भी की जाती रही है । वातावरण में चारो तरफ जहर घोल रहे इस अवैध धंधे पर पाबन्दी लगाना आवश्यक भी माना जाने लगा है ।
मरते है बेटे, जीती है बेटियां
वेश्यावृति के दलदल में फंसे इस क्षैत्र की सबसे बड़ी ओर आश्चर्यजनक हकीकत की बात जान आप भी आश्चर्य चकित रह जाऐगें । यहां पर जो होता चला आ रहा है । वो निश्चित रूप से अशिक्षा, गरीबी का परिणाम है । क्षेत्र में देह व्यापार से जुड़ी महिलाएं लड़कों को लिंग परीक्षण के पश्चात गर्भ में ही खत्म कर देतीहै । और लड़की का जन्म इनके लिए खुशियां लेकर आता है। आमतौर पर लड़कों के जन्म पर राजस्थान में बनजे वाली थाली लड़की के जन्म पर बजाई जाती है । यही नहीं हालात यह है कि चार सौ घरों वाली आबादी वाले करमावास,सावरंड़ा क्षेत्र में मात्र ३० फीसदी ही पुरुष है बाकी सभी महिलाऐं है । जो अपने परिवार को देह बेच कर पालती है ।
लोग बताते है कि कई बार राज्य सरकार को इस गंदे धंधे के बारे में बताया गया लेकिन एक संस्था के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आया जो इन्हे 21 वीं सदी के साथ जोड़ने की कोशिश करे ।
क्या है हकीकत
पश्चिमी सीमावर्ती बाड़मेर जिला विम भौगोलिक परिस्थतियों में बसा है । आर्थिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण तथा शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होने के कारण बाड़मेर जिला स्वास्थ्य की दृिट से बेहद कमजोर है । शिक्षा के प्रति अरूचि का मुख्य कारण सामाजिक रूविदिता है । बाड़मेर जिले में सामन्ती प्रवृति पुराने समय से रही है । जिले के सिवाना क्षेत्र के गांवो में जागीरदारी तथा जमींदारी ने अपनी अयाशी तथा ारीरिक आवश्यक्ताओं की पूर्ति के लिए गुजरात राज्य के कच्छ, भुज, गांधीधाम, हिम्मतनगर आदि क्षेत्रों से साहुकार जाति की महिलाओं को लाकर सिवाना के खण्डप, करमावास, सांवरड़ा,मजल,कोटड़ी,अमरखा आदि गावों में दशकों पूर्व लाकर बसाया था । जागीरदार इन महिलाओं के साथ अयाशियां करते, देख अखण्ड होने के साथ सामंतशाही तथा जागीरदारी प्रथा समाप्त होने के साथ गुजरात से लाई इन साहुकार साटिया जाति की महिलाओं में पेट पालने की मुसीबत हो गई, दो जून का खाना जुटाना मुश्किल हो गया । सामंतो ने निगाहें फेर ली। इन महिलाओं ने समूह बनाकर देह व्यापार का कार्य आरम्भ किया । साटिया जाति के ये महिलाऐं पिछले 40 वाोर्ं से देहव्यापार के धंधे में लिप्त है । इन महिलाओं द्वारा ादी नहीं की जाती। मगर ये अपनी बच्चियों को जन्म दे देती है । आज इन गावों में लगभग 450 महिलाऐं खुले आम देह व्यापार करती है ।
शिक्षा का अभाव
देह व्यापार में लिप्त महिलाऐं अशिक्षित है, जिसके कारण स्वास्थ्य सम्बधित जानकारियां उन्हे नहीं है । इन गावों में जाने से अक्सर जन प्रतिनिधी तथा प्रशासनिक अधीकारी परहेज करते है । जिसके कारण आज दिन तक इन नगर वधुओं के लिए किसी प्रकार के किसी प्रकार की योजना का प्रचारप्रसार, जन जागरण सम्बधित कार्यक्रम आयोजित नहीं हुए । ये महिलाऐं अक्सर बीमार पड़ती है । बीमार पड़ने पर पास स्थित समदड़ी कस्बे में स्थित राजकीय अस्पताल में उपचार के साथ साथ ये महिलाऐं जब गर्भवती होती है, लिंग परीक्षण भी आवश्यक रूप से कराती है, जिसका कारण उनके गर्भ से लड़का जन्म ना ले। ये लड़के के जन्म पर खुश नहीं होती है । लड़कियां पैदा होने पर ोलथाली बजाकर उसका स्वागत करती है ।
जागरूकता का अभाव
साटिया जाति कीदेह व्यापार से जुड़ी महिलाओं में जागरूकता का अभाव है । इनके यंहा आने वाले ग्राहकों का तांता लगा रहता है । ग्राहकों में अक्सर वाहन चालक होते है । जो अक्सर घरों से बाहर रहते है । तथा देह व्यावार से जुड़ी महिलाओं के पास आतेजाते रहते है । इन वाहन चालकों को विभिन्न बीमारियां होती है । कई मर्तबा यौन संसर्ग से संक्रामक बीमारियां इन देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं को लग जाती है । मगर जागरूकता के अभाव में इसका उपचार नहीं करा पाती है । अक्सर अनजाने विभिन्न व्यक्तियों के साथ अवैध सम्बन्ध स्थापित करनेके कारण ये महिलाऐं बीमार रहती है । विशोाकर यौन रोग सम्बन्धित बीमारियां अधिकतर होती है । मगर विभागीय तौर पर इनके स्वास्थ्य की जांच के लिए शिविरों का आयोजन नहीं किया ।
इतिहास ने मजबूर किया
मूलतः गुजरात प्रदेश की साटिया जाति साहूकार की ये महिलाऐं देह व्यापार पर अपना तथा परिवार का भरण पोाण करतेहै । तीन गांवके 400 परिवारों में बड़ी मुश्किल से तीस व्यक्ति है । इन परिवारों में महिलाऐं ही है देह व्यापार से जुड़ी इन महिलाओं के घरों में लड़कियों को ही जन्म दिया जाता है । लड़कों का भ्रूण परीक्षण कराकर गर्भपात कराया जाता है । इन तीन गावों में इन नगर वघुओं के लगभग 176 बालिकाएं है । समाज में हेय दृिट से इन्हे देखा जाताहै । समाज से परिकृत इन बालिकाओं को शिक्षा का अभाव लाभ भी नहीं मिलता समाज की मुख्यधारा में से ये बालिकाऐं अलग है । तीन वार पूर्व सांवरड़ा गांव में राजीव गांधी स्वर्ण जंयती पाठशाला की स्थापना हुई यहां वर्तमानमें 28 छात्र छात्राऐं का नामांकन है । मगर औसत उपस्थिति 1314 से अधिक नहीं है । वेश्याओं का मानना है कि लड़कियों को पा लिखाकर क्या करना है । आखिर इन्हे देह व्यापार का ही कार्य करना है । जो बच्चे विद्यालयों में अध्यनरत है उन बच्चों के पिता के नाम की बजाए माता का नाम ही अभिभावक के रूप में दर्ज है । नगर वधुओं के बालिकाओं का पिता का नाम नसीब नहीं है । इन बालिकाओं के लिये आवासीय शिक्षण शिविर संचालित कर प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्रदान की जा सकती है । सिवाना, पंचायत समिति क्षेत्र के समदड़ी क्षेत्र यंहा के पास करमावास, सांवरड़ा तथा मजल गांवों में लम्बे समय से नगर वधुओं द्वारा देह व्यापार किया जाता है । वहां इन सेक्स वर्कर के निवास है । उन स्थानों के आसपास समाज के लोग निवास नहीं करते । गांव के बाहर ही नगर वधुओं की बस्तीयां है । इन तीन गांवों में 400 परिवार नगर वधुओं के है । शिक्षित सेक्स वर्कर के नाम पर एक मात्र युवती है । जो राजीव गांधी पाठशाला में पैराटीचर नियुक्त है। नगरवधुएं बालिकाओं के साथ भेदभाव होता है । हेय दृिट से देखा जाता है । इस कारण बालिकाओं को विद्यालय भेजने में कोताही बरती जाती है । यदि इन बालिकाओं को अलग से शिक्षा की व्यवस्था मिलेगी तो आसानी से इनका उत्थान कर वहां उन्हे शिक्षित कर समाज तथा शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है ।
बाड़मेर ।हर आने जाने वाले राहगीर व वाहन चालक को वे रूकने का इशारा करती है गोया लिफ्ट मांग रही हो। इतने में एक वाहन रूकता है । उसमें सवार कुछ लोग नीचे उतर कर एक युवती से बात करते है । कुछ पलों की बातचीत के बाद युवती उन लोगों के साथ वाहन में सवार होजाती है। एक झटके के साथ रवाना होता वाहन क्षणांक में ही अन्धेरे का हिस्सा बनजाता है ।
अनजान लोगों को यह ाब्द चित्र किसी कहानी का हिस्सा लग सकता है लेकिन समदड़ी क्षैत्र के आधा दर्जन गांवो में यह रोजमर्रा की हकीकत है । जिस्मफरोशी के कारोबार ने यंहा इस कदर पैर फेला दिए है कि इन गावों में रहने वाले ग्रामीणों को अपने गांव का नाम बताने में भी ार्म महसुस होती है । जिस्मफरोशी की इस मण्डी से आसपास के ान्त वातावरण को जबरदस्त ठेस पहुंची है।
समदड़ी क्षेत्र के सांवरड़ा, करमावास, सुइली, मजलव लाखेटा इत्यादि गावों तक जिस्मफरोशी का कारोबार बेरोक टोक चलता है । इनमें से सावरड़ा और करमावास में एक जाति विशोा के लोगों की संख्या ज्यादा होने से यह धन्धा ब.ता ही जा रहा है। इससे आसपास की सामाजिक संस्कृति पर पड़ रहे दुप्रभाव से अधिकांश ग्रामीणों को तनाव का सामना करना पड़ रहा है । इन सभी गांवो में सड़कों के किनारे इस धन्धे में लिप्त युवतियां सजधज कर आने जाने वाले राहगीर को न्यौता देती है । युवा इनकी जद में फंस जाते है । एक बार कोई युवा भूल से भी समय व्यतीत करने इनके साथ हो लिया तो पुनः उसे इस जगह पर आना ही पड़ता है । दिन भर इन गावों में सुबह से लगा कर रात तक रंगरेलियां मनाने वालों का जमघट रहता है । इस जाति के लोगों के लिए जिस्मफरोशी जीवन यापन का जरिया है । पन्द्रह साल से लेकर चालीस साल तक उम्र की महिलाऐं इसमें लिप्त है । परिवार के पुरू एंव वृद्ध महिलाऐं ग्राहकों को तलाशने में मदद करती है।
पिछले कई वाोर्ं से वेश्यावृति में लिप्त होने से यहां की युवतियां एंव महिलाएं विभिन्न प्रकार की बीमारियों से भी ग्रसित रही है । इस वजह से भी ग्रामीणों में भय के साथ रोा भी व्याप्त है।
इस संबध में करमावास के सरपंच ने बताया कि इस अवैध धंधे में लिप्त डेरों पर समाजकंटकों का जमघट रहने से आसपास का वातावरण दूित हो रहाहै ।
उन्होने इस पर अंकुश लगाने की मांग भी की है। सावरड़ा ग्राम पंचायत की पूव र्महिला संरपच ने भी दो वार पूर्व वेश्यावृति के खिलाफ आवाज उठाई थी । उन्होने गांव में पुलिस चौकी स्थापित करने के लिए पंचायत का प्रस्ताव भेजकर प्रशासन से मदद की गुहार की थी । ंइस पर कोई ठोस कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई । स्थिति यह है कि इन गांवो के नाम दूसरे लोग घृणा से लेते है । जिस्म फरोशी के कारोबार ने इन गावों के नाम को बदनाम कर दिया है । ऐसे में शरीफ लोगों का यहां रहना मुश्किल हो गया है । कई बार शरारती तत्वों द्वारा शराब के नशे में चूर होकर ग्रामीणों सहित राहगीरों के साथ गालीगलौच भी की जाती रही है । वातावरण में चारो तरफ जहर घोल रहे इस अवैध धंधे पर पाबन्दी लगाना आवश्यक भी माना जाने लगा है ।
मरते है बेटे, जीती है बेटियां
वेश्यावृति के दलदल में फंसे इस क्षैत्र की सबसे बड़ी ओर आश्चर्यजनक हकीकत की बात जान आप भी आश्चर्य चकित रह जाऐगें । यहां पर जो होता चला आ रहा है । वो निश्चित रूप से अशिक्षा, गरीबी का परिणाम है । क्षेत्र में देह व्यापार से जुड़ी महिलाएं लड़कों को लिंग परीक्षण के पश्चात गर्भ में ही खत्म कर देतीहै । और लड़की का जन्म इनके लिए खुशियां लेकर आता है। आमतौर पर लड़कों के जन्म पर राजस्थान में बनजे वाली थाली लड़की के जन्म पर बजाई जाती है । यही नहीं हालात यह है कि चार सौ घरों वाली आबादी वाले करमावास,सावरंड़ा क्षेत्र में मात्र ३० फीसदी ही पुरुष है बाकी सभी महिलाऐं है । जो अपने परिवार को देह बेच कर पालती है ।
लोग बताते है कि कई बार राज्य सरकार को इस गंदे धंधे के बारे में बताया गया लेकिन एक संस्था के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आया जो इन्हे 21 वीं सदी के साथ जोड़ने की कोशिश करे ।
क्या है हकीकत
पश्चिमी सीमावर्ती बाड़मेर जिला विम भौगोलिक परिस्थतियों में बसा है । आर्थिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण तथा शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होने के कारण बाड़मेर जिला स्वास्थ्य की दृिट से बेहद कमजोर है । शिक्षा के प्रति अरूचि का मुख्य कारण सामाजिक रूविदिता है । बाड़मेर जिले में सामन्ती प्रवृति पुराने समय से रही है । जिले के सिवाना क्षेत्र के गांवो में जागीरदारी तथा जमींदारी ने अपनी अयाशी तथा ारीरिक आवश्यक्ताओं की पूर्ति के लिए गुजरात राज्य के कच्छ, भुज, गांधीधाम, हिम्मतनगर आदि क्षेत्रों से साहुकार जाति की महिलाओं को लाकर सिवाना के खण्डप, करमावास, सांवरड़ा,मजल,कोटड़ी,अमरखा आदि गावों में दशकों पूर्व लाकर बसाया था । जागीरदार इन महिलाओं के साथ अयाशियां करते, देख अखण्ड होने के साथ सामंतशाही तथा जागीरदारी प्रथा समाप्त होने के साथ गुजरात से लाई इन साहुकार साटिया जाति की महिलाओं में पेट पालने की मुसीबत हो गई, दो जून का खाना जुटाना मुश्किल हो गया । सामंतो ने निगाहें फेर ली। इन महिलाओं ने समूह बनाकर देह व्यापार का कार्य आरम्भ किया । साटिया जाति के ये महिलाऐं पिछले 40 वाोर्ं से देहव्यापार के धंधे में लिप्त है । इन महिलाओं द्वारा ादी नहीं की जाती। मगर ये अपनी बच्चियों को जन्म दे देती है । आज इन गावों में लगभग 450 महिलाऐं खुले आम देह व्यापार करती है ।
शिक्षा का अभाव
देह व्यापार में लिप्त महिलाऐं अशिक्षित है, जिसके कारण स्वास्थ्य सम्बधित जानकारियां उन्हे नहीं है । इन गावों में जाने से अक्सर जन प्रतिनिधी तथा प्रशासनिक अधीकारी परहेज करते है । जिसके कारण आज दिन तक इन नगर वधुओं के लिए किसी प्रकार के किसी प्रकार की योजना का प्रचारप्रसार, जन जागरण सम्बधित कार्यक्रम आयोजित नहीं हुए । ये महिलाऐं अक्सर बीमार पड़ती है । बीमार पड़ने पर पास स्थित समदड़ी कस्बे में स्थित राजकीय अस्पताल में उपचार के साथ साथ ये महिलाऐं जब गर्भवती होती है, लिंग परीक्षण भी आवश्यक रूप से कराती है, जिसका कारण उनके गर्भ से लड़का जन्म ना ले। ये लड़के के जन्म पर खुश नहीं होती है । लड़कियां पैदा होने पर ोलथाली बजाकर उसका स्वागत करती है ।
जागरूकता का अभाव
साटिया जाति कीदेह व्यापार से जुड़ी महिलाओं में जागरूकता का अभाव है । इनके यंहा आने वाले ग्राहकों का तांता लगा रहता है । ग्राहकों में अक्सर वाहन चालक होते है । जो अक्सर घरों से बाहर रहते है । तथा देह व्यावार से जुड़ी महिलाओं के पास आतेजाते रहते है । इन वाहन चालकों को विभिन्न बीमारियां होती है । कई मर्तबा यौन संसर्ग से संक्रामक बीमारियां इन देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं को लग जाती है । मगर जागरूकता के अभाव में इसका उपचार नहीं करा पाती है । अक्सर अनजाने विभिन्न व्यक्तियों के साथ अवैध सम्बन्ध स्थापित करनेके कारण ये महिलाऐं बीमार रहती है । विशोाकर यौन रोग सम्बन्धित बीमारियां अधिकतर होती है । मगर विभागीय तौर पर इनके स्वास्थ्य की जांच के लिए शिविरों का आयोजन नहीं किया ।
इतिहास ने मजबूर किया
मूलतः गुजरात प्रदेश की साटिया जाति साहूकार की ये महिलाऐं देह व्यापार पर अपना तथा परिवार का भरण पोाण करतेहै । तीन गांवके 400 परिवारों में बड़ी मुश्किल से तीस व्यक्ति है । इन परिवारों में महिलाऐं ही है देह व्यापार से जुड़ी इन महिलाओं के घरों में लड़कियों को ही जन्म दिया जाता है । लड़कों का भ्रूण परीक्षण कराकर गर्भपात कराया जाता है । इन तीन गावों में इन नगर वघुओं के लगभग 176 बालिकाएं है । समाज में हेय दृिट से इन्हे देखा जाताहै । समाज से परिकृत इन बालिकाओं को शिक्षा का अभाव लाभ भी नहीं मिलता समाज की मुख्यधारा में से ये बालिकाऐं अलग है । तीन वार पूर्व सांवरड़ा गांव में राजीव गांधी स्वर्ण जंयती पाठशाला की स्थापना हुई यहां वर्तमानमें 28 छात्र छात्राऐं का नामांकन है । मगर औसत उपस्थिति 1314 से अधिक नहीं है । वेश्याओं का मानना है कि लड़कियों को पा लिखाकर क्या करना है । आखिर इन्हे देह व्यापार का ही कार्य करना है । जो बच्चे विद्यालयों में अध्यनरत है उन बच्चों के पिता के नाम की बजाए माता का नाम ही अभिभावक के रूप में दर्ज है । नगर वधुओं के बालिकाओं का पिता का नाम नसीब नहीं है । इन बालिकाओं के लिये आवासीय शिक्षण शिविर संचालित कर प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्रदान की जा सकती है । सिवाना, पंचायत समिति क्षेत्र के समदड़ी क्षेत्र यंहा के पास करमावास, सांवरड़ा तथा मजल गांवों में लम्बे समय से नगर वधुओं द्वारा देह व्यापार किया जाता है । वहां इन सेक्स वर्कर के निवास है । उन स्थानों के आसपास समाज के लोग निवास नहीं करते । गांव के बाहर ही नगर वधुओं की बस्तीयां है । इन तीन गांवों में 400 परिवार नगर वधुओं के है । शिक्षित सेक्स वर्कर के नाम पर एक मात्र युवती है । जो राजीव गांधी पाठशाला में पैराटीचर नियुक्त है। नगरवधुएं बालिकाओं के साथ भेदभाव होता है । हेय दृिट से देखा जाता है । इस कारण बालिकाओं को विद्यालय भेजने में कोताही बरती जाती है । यदि इन बालिकाओं को अलग से शिक्षा की व्यवस्था मिलेगी तो आसानी से इनका उत्थान कर वहां उन्हे शिक्षित कर समाज तथा शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है ।
oh ... iske liye to jaldi kuch kadam uthana chahiye hkm
जवाब देंहटाएंबड़ा ही ह्रदय विदारक लेख है समाज पर ! क्या मैं इस लेख के आधार पर राज्य के उच्चाधिकारियों को लिख सकता हूँ ? अनुमति दीजियेगा !
जवाब देंहटाएंबड़ा ही ह्रदय विदारक लेख है समाज पर ! क्या मैं इस लेख के आधार पर राज्य के उच्चाधिकारियों को लिख सकता हूँ ? अनुमति दीजियेगा !
जवाब देंहटाएंhttp://www.thepressvarta.com/national-international-news/5225-2012-05-21-10-39-13.html
जवाब देंहटाएंrajji aap is par karyavahi ke liye likh sakte he
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