सौजन्य ..दैनिक हिंदुस्तान कुलदीप तलवार वरिष्ठ पत्रकार
पाकिस्तान में चुनावी पैंतरेबाजी शुरू हो गई है, हालांकि वहां चुनाव अगले साल होने हैं। राजनीतिक वफादारियां बदली जा रही हैं। सिंध नेशनल पार्टी के मुखिया मुमताज भुट्टो का पाक की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज) में शामिल होना सत्ताधारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। सरकार में शामिल कुछ और पार्टियां भी पाला बदलने की तैयारी कर रही हैं। नए प्रांतों की स्थापना का मुद्दा अचानक जोर पकड़ गया है। सत्ताधारी पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में भी यह मुद्दा शामिल था।हाल ही में आनन-फानन में उसने राष्ट्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा आबादी वाले प्रांत पंजाब को बांटकर दक्षिणी पंजाब नाम का एक नया प्रांत का प्रस्ताव पारित करा लिया, जिसमें बहावलपुर को भी शामिल किया गया। प्रधानमंत्री गिलानी इस क्षेत्र के रहने वाले हैं। यह ठीक उस समय हुआ, जब विपक्षी सदन से सजायाफ्ता प्रधानमंत्री गिलानी के पद छोड़ने के मामले पर वॉक आउट कर गई थी। सदन में शोर-शराबा जारी था।
किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है? प्रस्ताव में कहा गया कि पंजाब प्रांत के दक्षिणी क्षेत्र के लोगों के राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक हितों को देखते हुए यह नया प्रांत बनना चाहिए। इसमें पंजाब सरकार से प्रांतीय विधानसभा में भी पंजाब को बांटकर नया प्रांत के गठन का प्रस्ताव को पारित कराने के लिए कहा गया। होना तो यह चाहिए था कि पहले प्रस्ताव प्रांतीय विधानसभा में पारित होता और फिर संसद में इस पर चर्चा होती।
पाक सरकार एक तरफ प्रांतों को अधिक से अधिक स्वायत्तता देना चाहती हैं, वहीं उनके संवैधानिक अधिकारों को छीन रही है। दरअसल, पंजाब को बांटकर नवाज शरीफ की पार्टी को परेशान करने की कोशिश हो रही है। उनकी पार्टी पंजाब को बांटने की सख्त विरोधी थी। अब जब वह दबाव में आई, तो उसने बहावलपुर को एक अलग प्रदेश बनाने की मांग शुरू कर दी। उसने खुद पंजाब को तीन प्रांतों में विभाजित करने का प्रस्ताव मंजूर करा लिया, जिसमें कहा गया कि दक्षिणी पंजाब, बहावलपुर और शेष पंजाब, यह तीन प्रांत जनसंख्या, क्षेत्र, आमदनी के स्रोत के फॉर्मूले पर आधारित बनाए जाने जरूरी हैं। बहावलपुर प्रांत की मांग बहुत पहले से उठ रही थी। 1947 में देश के बंटवारे के समय बहावलपुर एक प्रशासनिक इकाई थी। जनरल याह्या खान ने प्रांत बहाली के समय बहावलपुर को प्रांत के तौर पर बहाल नहीं किया था।
उधर सिंध प्रांत को बांटकर उर्दू बोलने वाले मुहाजिरों के लिए नया प्रांत और खैबर पख्तूनख्वा से हजारा डिवीजन के पांच जिलों से एक नया हजारा प्रांत बनाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। बलूच तो पहले से ही अलग होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अलग प्रांत की स्थापना एक संवेदनशील मामला है, जबकि सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां अब इसमें अपने हित देख रही हैं।
किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है? प्रस्ताव में कहा गया कि पंजाब प्रांत के दक्षिणी क्षेत्र के लोगों के राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक हितों को देखते हुए यह नया प्रांत बनना चाहिए। इसमें पंजाब सरकार से प्रांतीय विधानसभा में भी पंजाब को बांटकर नया प्रांत के गठन का प्रस्ताव को पारित कराने के लिए कहा गया। होना तो यह चाहिए था कि पहले प्रस्ताव प्रांतीय विधानसभा में पारित होता और फिर संसद में इस पर चर्चा होती।
पाक सरकार एक तरफ प्रांतों को अधिक से अधिक स्वायत्तता देना चाहती हैं, वहीं उनके संवैधानिक अधिकारों को छीन रही है। दरअसल, पंजाब को बांटकर नवाज शरीफ की पार्टी को परेशान करने की कोशिश हो रही है। उनकी पार्टी पंजाब को बांटने की सख्त विरोधी थी। अब जब वह दबाव में आई, तो उसने बहावलपुर को एक अलग प्रदेश बनाने की मांग शुरू कर दी। उसने खुद पंजाब को तीन प्रांतों में विभाजित करने का प्रस्ताव मंजूर करा लिया, जिसमें कहा गया कि दक्षिणी पंजाब, बहावलपुर और शेष पंजाब, यह तीन प्रांत जनसंख्या, क्षेत्र, आमदनी के स्रोत के फॉर्मूले पर आधारित बनाए जाने जरूरी हैं। बहावलपुर प्रांत की मांग बहुत पहले से उठ रही थी। 1947 में देश के बंटवारे के समय बहावलपुर एक प्रशासनिक इकाई थी। जनरल याह्या खान ने प्रांत बहाली के समय बहावलपुर को प्रांत के तौर पर बहाल नहीं किया था।
उधर सिंध प्रांत को बांटकर उर्दू बोलने वाले मुहाजिरों के लिए नया प्रांत और खैबर पख्तूनख्वा से हजारा डिवीजन के पांच जिलों से एक नया हजारा प्रांत बनाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। बलूच तो पहले से ही अलग होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अलग प्रांत की स्थापना एक संवेदनशील मामला है, जबकि सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां अब इसमें अपने हित देख रही हैं।
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