पांच माह में दहेज की भेंट चढ़ीं नौ बहुएं
सामाजिक बुराईत्नलगातार बढ़ते जा रहे हैं दहेज हत्या के मामले, इस साल अब तक हो चुके हैं नौ मामले दर्ज
अधिकांश मामलों में जला कर मार दी जाती हैं बहुएं
जालोर
नाजों से पली बढ़ी अपनी बेटी को पहली बार ससुराल विदा करते समय पिता शायद ही यह सोच पाता हो कि ससुराल में उसकी बेटी के साथ बुरा व्यवहार होगा। वह ऐसा सोच भी नहीं सकता क्योंकि उसका विश्वास होता है कि बेटी हमेशा खुश रहेगी। उसका प्रयास होता है कि बेटी को कभी किसी चीज की कमी न खले। वह खिलखिलाती रहे, लेकिन पिता का यह विश्वास और उसका यह प्रयास आज भी कई घरों में दहेज की आग में ऐसा जलता है कि अनेक मां बाप बेटी को एक बार विदा करने के बाद दुबारा उसकी शक्ल तक नहीं देख पाते। क्योंकि दहेज की आग अनेक घरों में बहुओं को जला रही है। दहेज का यह लालच हर साल बढ़ता जा रहा है। जिले में पिछले चार साल के आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल दहेज हत्या के केस बढ़े हैं। दहेज प्रताडऩा के मामले तो बहुत ज्यादा होते जा रहे हैं। इसी साल की बात कर लीजिए। अभी आधा साल पूरा होने को है और दहेज हत्या के नौ मामले बन चुके हैं। यानी नौ बहुओं को दहेज के लिए मार दिया गया। बता दी जाती है मानसिक हालत खराब
बीते साढ़े तीन साल में दहेज हत्या के 47 मामले दर्ज किए गए हैं। ये वह मामले हैं जो विवाहिता के पीहर पक्ष वालों ने उसकी मौत के बाद दहेज हत्या के तहत दर्ज करवाए हैं, लेकिन इससे भी कहीं अधिक मामले विवाहिताओं की आत्महत्या के हैं। जिनमें बताया गया कि विवाहिता ने कुएं में कूदकर, जलकर, फांसी लगाकर या ट्रेन के आगे आकर आत्महत्या कर ली। खास बात तो यह है कि इन सभी मामलों में ससुराल पक्ष की ओर ये यही बताया गया है कि विवाहिता मानसिक रूप से विक्षिप्त थी और उसने आत्महत्या कर ली। इस प्रकार के मामलों में मर्ग दर्ज हो जाता है और फिर पुलिस एफआर दे देती है।
जांच हो तो मिलती है मदद
इस प्रकार के मामलों में एफएसएल टीम से अगर जांच हो तो कई बातें सामने आती हैं, लेकिन कई ऐसे मामले में हैं जब विवाहिता की मौत हो गई, लेकिन पुलिस ने जिला मुख्यालय पर मौजूद इस टीम को बुलाया ही नहीं। टीम के जिला प्रभारी हेमराज वर्मा बताते हैं कि अगर इस प्रकार के मामलों में सही समय पर मौके से सभी सबूत जुटा लिए जाएं तो इस बात की आसानी रहती है कि मामला जलाकर, गला घोंटकर या अन्य किसी प्रकार से हत्या का है या आत्महत्या का है। उन्होंने बताया कि पुलिस जब भी उन्हें बुलाती है वे जाते हैं और कई मामलों में सबूत भी जुटाकर दिए हैं।
॥दहेज हत्या समाज में एक कुरीति है। जो आज किसी दैत्य की तरह बढ़ती जा रही है। हम अगर कानून की बात करें तो हमारी दंड संहिताओं में इसके लिए कड़े प्रावधान हैं। जिनकी मदद से आरोपियों को सजा हो सकती है। कानून में इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए और 304 बी में प्रावधान है। 498 ए के तहत यदि किसी विवाहिता की मौत दहेज प्रताडऩा के कारण होती है तो तीन साल की सजा का प्रावधान है। वहीं 304 बी में आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। इसी से जुड़ी दो और धाराएं हैं। 113 ए और 113 बी एविडेंस एक्ट। 113 ए के तहत प्रावधान है कि कोर्ट यह मान भी सकती है और नहीं भी मान सकती कि विवाहिता की मौत दहेज के कारण हुई है जबकि 113 बी में कोर्ट यह मानकर चलती है कि मौत दहेज के कारण हुई और इसमें आरोपी खुद को निर्दोष साबित करना होता है। घरेलू महिला हिंसा रोकने के लिए भी एक एक्ट बना हुआ है। जिसके तहत विवाहिता को ससुराल में रहने और सभी अधिकार प्राप्त करने का हक है। दहेज हत्या और प्रताडऩा रोकने के लिए इस प्रकार के कानून काफी मददगार हैं, लेकिन साथ ही यह भी देखना चाहिए कि कहीं इनका मिस यूज न हो। चंद्रशेखर सोनी, वरिष्ठ अधिवक्ता जालोर
क्या कहते हैं दहेज हत्या के आंकड़े
वर्ष मामले चालान झूठे पेडिंग
2009 09 07 02 0
2010 14 11 03 0
2011 14 09 05 0
2012 09 04 02 03
झूठे भी निकले हैं कई मामले
पिछले साढ़े तीन साल में दहेज हत्या के जो 47 मामले दर्ज हुए हैं। उनमें 12 मामले झूठे पाए गए हैं। विवाहिता के पीहर पक्ष ने उसकी मौत के बाद थाने में दहेज हत्या का मामला दर्ज करवाया, लेकिन पुलिस जांच के बाद इनमें से 12 मामलों को झूठा बताया गया।
दहेज प्रताडऩा के मामले भी बढ़े
दहेज हत्या के साथ ही दहेज के लिए परेशान करने, तंग करन, ताने मारने, शारीरिक और मानसिक यातना देने और घर से निकालने के मामले भी बढ़े हैं। वर्ष 2009 में इस प्रकार के 142 मामले दर्ज हुए। वर्ष 2010 में 122, 2011 में 154 और इस साल अब तक 55 ऐसे मामले दर्ज हो चुके हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें