मारवाड़ के मेवे पीलू की आई बहार
पश्चिमी राजस्थान के धोरों में जहां गर्मी के मौसम में पानी के लिए आमजन को तरसना पड़ रहा है, वहीं इस मौसम में मारवाड़ के मेवे के रूप में जाने जाने वाले पीलू की बहार आई हुई है।
ग्रामीण इलाके के लोग आज भी इसे बड़े चाव से खाते हैं। जाल के पेड़ पर लगने वाले फल पीलू के लिए अल सवेरे से ही युवाओं से लेकर वयस्क भी झुंड बनाकर घरों से निकल पड़ते हैं। बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि तेज गर्मी और लू के दौरान पकने वाले इस फल का सेवन करने से लू नहीं लगती है। वहीं इससे शरीर को पौष्टिक तत्व भी मिलते हैं। चने की दाल के आकार के इस फल को इकट्ठा करने के लिए ग्रामीणों को जाल के पेड़ पर चढ़कर काफी मशक्कत करनी पड़ती है। गले में धागे के सहारे लोटा बांधकर या पेड़ पर कपड़ा टांगकर एक एक कर पीलू को इकट्ठा किया जाता है। घंटों मशक्कत के बाद यह फल इकट्ठा हो पाता है, जिसे गांव के लोग आज भी बड़े चाव से खाते हैं। क्षेत्र के खेतों में स्थित जाल के पेड़ इन दिनों पीलू से लदे हुए नजर आ रहे हैं। राह चलते किसी भी व्यक्ति की इस पर नजर पड़ते ही वह इसका स्वाद चखने को लालायित हो उठता है। इस बार पीलू की बंपर आवक होने से अल सवेरे से लोगों का झुंड पीलू के लिए घरों से निकल पड़ता है।
स्वादिष्ट है मारवाड़ का मेवा
जाल के पेड़ पर लगने वाला यह फल देखने में जितना रसीला लगता है, उतना ही खाने में स्वादिष्ट होता है। यह फल हमें राजस्थान की पश्चिमी सभ्यता की याद दिलाता है। बड़े बुजुर्गों का मानना है कि भीषण गर्मी में पीलू खाने से हैजे जैसी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर रास्ते में थके यात्रियों के लिए पीलू ऊर्जा का संचार करते हैं। पीलू व इसके सूखने के बाद बनने वाली कोकड़ लू व गर्मी से बचाव के लिए रामबाण से कम नहीं है।
ऐसे करते हैं इकट्ठा
अक्सर मई-जून में जाल के पेड़ पर लगने वाले पीलू को बीनने के लिए स्थानीय लोग अलग-अलग अंदाज में जुट जाते है। इसे इकट्ठा करने के लिए लोटा या केतली पर पक्का धागा बांधकर उसे कमर पर टांग दिया जाता है। इसके बाद तेज गति से पीलू बीनने का कार्य किया जाता है। वहीं पीलू की सीजन के अंतिम पड़ाव पर तेज आंधी और हवा के दौरान ग्रामीण जाल के पेड़ के नीचे चादर बिछाकर पीलू एकत्रित करते हैं।
Chandan sa Great hai marwad..
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