गुरुवार, 29 मार्च 2012

रक्षक है तनोट माता


रक्षक है तनोट माता

जैसलमेर। जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर भारत-पाक सीमा से सटे तनोट क्षेत्र में बने माता के मंदिर में 1965 व 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से गिराया गया एक भी बम यहां नहीं फूटा। यह माता का मंदिर सीसुब जवानो व अधिकारियो के साथ ही देश-प्रदेश के लोगों के लिए आस्था का केन्द्र बना है। इस युद्ध में पाक ने मंदिर के आस पास करीब तीन हजार बम बरसाए।

करीब साढे चार सौ गोले मंदिर परिसर में गिरे पर अधिकतर बम फटे ही नहीं। इनमें से कुछ मंदिर परिसर में आज भी मौजूद है। ये बम आज भी मंदिर की शोभा बढ़ा रहे हैं। तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने संवत् 787 को माघ पूर्णिमा को बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है। वर्तमान मे मन्दिर की पूजा- अर्चना सीसुब के जवान ही करते हैं। तनोट क्षेत्र सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यहां से पाकिस्तान की सीमा बमुश्किल 15-20 किलोमीटर है। इसके निकट पाकिस्तान का रहिमयारखां जिला है।

इतिहास के जीवंत दस्तावेज
यहां तैनात बल व क्षेत्र के बुजुर्गो के बताए अनुसार मुगल बादशाह अकबर के हिन्दू देवताओं के चमत्कारों से प्रभावित होकर विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने और छत्र वगैरह चढ़ाने के किस्से भले ही प्रमाणित न हों, लेकिन इस बात के तो आज भी कई चश्मदीद गवाह मौजूद हैं कि 1965 के युद्ध के दौरान एक प्राचीन सिद्ध मंदिर की अधिष्ठात्री देवी के चमत्कारों से अभिभूत पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भी उसके दर्शन के लिए लालायित हो उठे थे। चमत्कारिक माने जाने वाला यह मंदिर 1200 साल पुराना है। वर्ष 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों में भाग ले चुके भारतीय सैनिक बताते हैं कि मंदिर परिसर में गिरने वाले शत्रु के गोले फटते ही नहीं थे, जिससे मंदिर और उसके आस पास कोई नुकसान कभी नहीं हो पाया।

पाकिस्तानी ब्रिगेडियर हुआ नतमस्तक
वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। करीब ढाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने न केवल माता की प्रतिमा के दर्शन किए बल्कि मंदिर में चांदी का एक सुंदर छत्र चढ़ाया। ब्रिगेडियर खान का चढाया हुआ छत्र आज भी इस घटना का गवाह बना हुआ है।

"चमत्कारो" ने बढ़ाई आस्था
भारत-पाक सीमा पर स्थित मातेश्वरी तनोटराय मंदिर के 1965 और 1971 में युद्ध के दौरान हुए कई चमत्कारों से आज भी सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवान और अधिकारी अभिभूत हैं। यह मंदिर देश के कई श्रद्धालुओं की श्रद्धा का भी केन्द्र बना हुआ है। तनोट मातेश्वरी मंदिर में देशभर से सभी धर्मो के लोग श्रद्धा के साथ नतमस्तक होने पहुंचते है। सीमा पर स्थित इस मंदिर का महत्व 1965 के भारत-पाक युद्ध से और भी बढ़ गया।

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