बाड़मेर में कोयला घोटाला!
बाड़मेर पिछले कुछ सालों में बाड़मेर में विकास की रफ्तार तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन यहाँ पर विकास के साथ-साथ घोटालों का बड़ा काम हुआ हैं जिसके बारे में सरकार भी जानती हैं। ये अलग बात हैं कि कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ जबकि अगर कुछ कार्रवाई नहीं हुई तो यहाँ पर कोयला खनन घोटाला चालीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का आगामी तीस साल में हो सकता हैं। कोयला का अकूत भंडार मिलने के बाद बाड़मेर में खनन का ऐसा खेल हुआ हैं कि आने वाले तीस सालों में घोटाला काफी बढ़ सकता हैं। यह सनसनीखेज खुलासा राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के सामने दायर हुई एक याचिका के बाद हुई सुनवाई के बाद हुए निर्णय में सामने आई हैं।
राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के अध्यक्ष डीसी सामंत, सदस्य एस धवन, एसके मित्तल ने बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लि. की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। खासकर इसमें एक बड़ा खुलासा हुआ हैं कि जिंदल ग्रुप के राजवेस्ट पवार प्लांट लि. भादरेश बाड़मेर में लिग्नाईट की आपूर्ति के लिए बाड़मेर में माइनिंग का ठेका 812 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर से निविदा के जरिये प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से होना था, उसको बिना किसी प्रतिस्पर्धा के जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को 1230 रुपए प्रति मैट्रिक टन की दर से दे दिया गया। टैक्स जोड़ा जाए तो यह दर 1953 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर हो जाती हैं। मजे की बात यह कि जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. यह ठेका लेने की पात्रता भी नहीं रखती। तीस वर्ष के लिए दिए गए इस ठेके से उक्त अवधि में टैक्स समेत करीब इकसठ हजार करोड़ का नुकसान हो सकता हैं।
समझें घाटे का ये गणित : बाड़मेर जिले में जिंदल ग्रुप की फर्म राजवेस्ट पावर प्रोजेक्ट लि. के नाम से भादरेश में 135 मेगावाट की दस इकाइयां बनाई जानी प्रस्तावित हैं, जिनमे से दो इकाइयां बन कर तैयार हैं और शेष निर्माणाधीन हैं। जब पूर्ण क्षमता के साथ सभी दस इकाइयां काम करेंगी तब प्रतिदिन पचास हजार टन कोयले की जरूरत पड़ेगी। राजवेस्ट की कंसोर्टियम फर्म साउथ माइनिंग लि. इसके लिए प्रतिदिन छह करोड़ पन्द्रह लाख टैक्स समेत नौ करोड़ छियतर लाख पचास हजार लेगी, जो राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के समक्ष तय हुई दरों (812 रुपए प्रति मीट्रिक टन) से टैक्स सहित 5.70 करोड़ रुपए अधिक हैं। इस तरह प्रतिदिन 2.90 करोड़ टैक्स रहित घाटा होगा। एक महीने में 87 करोड़, एक वर्ष में 1044 करोड़, और तीस वर्षों में 31,220 करोड़ का घाटा होगा और टैक्स समेत यह घाटा इकसठ हजार करोड़ रुपए को पार कर जाएगा।
इक्यावन फीसदी है सरकार की हिस्सेदारी : बाड़मेर के कपूरडी और जालिपा के किसानों की करीब पचास हजार बीघा जमीन अवाप्त हुई हैं, इसका मकसद यहाँ पर कोयला खनन कर कम्पनी को आपूर्ति करनी था। भूमि अवाप्ति के लिए बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लिमिटेड का गठन किया गया, जिसमे 51 प्रतिशत हिस्सेदारी राज्य सरकार की है। शेष 49 फीसदी भागीदारी राजवेस्ट की है। यहाँ कहने का मतलब यह हैं कि ऊंची दरों पर राजवेस्ट की एसोसिएट फर्म को ठेका देने से होने वाले कुल घाटे में सरकार को इक्यावन फीसदी चूना लगेगा। वही राजवेस्ट को एसोसिएट फर्म से सीधा फायदा ही फायदा होगा।
ठेका निरस्त करने की सिफारिश हुई : राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन ने याचिका पर सुनवाई के बाद पिछले वर्ष अगस्त माह में दिए गए निर्णय अनुसार साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को दिए गए खनन ठेके को निरस्त करने और नए सिरे से निविदा आमंत्रित कर प्रतिस्पर्धी दरों के आधार पर ठेका देने के निर्देश दिए। हैरत की बात यह हैं कि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. कमीशन को न्यायिक क्षेत्र मानने से इनकार करते हुए अभी तक बिना रोक टोक खनन कर रहे हैं। वही सरकार भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं, जो काफी संशय पैदा कर रहा है।
कहीं कम कीमत पर कोयला उपलब्ध : राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान स्टेट माइंस मिनरल्स लि. द्वारा गिरल लिग्नाईट विद्युत तापीय संयत्र में 650 प्रति मीट्रिक टन की दर से कोयला उपलब्ध करवाया जा रहा हैं, जबकि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. टैक्स समेत 1953 रुपए की दर से कोयला उपलब्ध करवा रहा है। इस मामले में जिला कलेक्टर डॉ. वीणा प्रधान कुछ भी बयान देने से इनकार कर रही हैं।
बाड़मेर पिछले कुछ सालों में बाड़मेर में विकास की रफ्तार तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन यहाँ पर विकास के साथ-साथ घोटालों का बड़ा काम हुआ हैं जिसके बारे में सरकार भी जानती हैं। ये अलग बात हैं कि कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ जबकि अगर कुछ कार्रवाई नहीं हुई तो यहाँ पर कोयला खनन घोटाला चालीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का आगामी तीस साल में हो सकता हैं। कोयला का अकूत भंडार मिलने के बाद बाड़मेर में खनन का ऐसा खेल हुआ हैं कि आने वाले तीस सालों में घोटाला काफी बढ़ सकता हैं। यह सनसनीखेज खुलासा राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के सामने दायर हुई एक याचिका के बाद हुई सुनवाई के बाद हुए निर्णय में सामने आई हैं।
राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के अध्यक्ष डीसी सामंत, सदस्य एस धवन, एसके मित्तल ने बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लि. की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। खासकर इसमें एक बड़ा खुलासा हुआ हैं कि जिंदल ग्रुप के राजवेस्ट पवार प्लांट लि. भादरेश बाड़मेर में लिग्नाईट की आपूर्ति के लिए बाड़मेर में माइनिंग का ठेका 812 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर से निविदा के जरिये प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से होना था, उसको बिना किसी प्रतिस्पर्धा के जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को 1230 रुपए प्रति मैट्रिक टन की दर से दे दिया गया। टैक्स जोड़ा जाए तो यह दर 1953 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर हो जाती हैं। मजे की बात यह कि जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. यह ठेका लेने की पात्रता भी नहीं रखती। तीस वर्ष के लिए दिए गए इस ठेके से उक्त अवधि में टैक्स समेत करीब इकसठ हजार करोड़ का नुकसान हो सकता हैं।
समझें घाटे का ये गणित : बाड़मेर जिले में जिंदल ग्रुप की फर्म राजवेस्ट पावर प्रोजेक्ट लि. के नाम से भादरेश में 135 मेगावाट की दस इकाइयां बनाई जानी प्रस्तावित हैं, जिनमे से दो इकाइयां बन कर तैयार हैं और शेष निर्माणाधीन हैं। जब पूर्ण क्षमता के साथ सभी दस इकाइयां काम करेंगी तब प्रतिदिन पचास हजार टन कोयले की जरूरत पड़ेगी। राजवेस्ट की कंसोर्टियम फर्म साउथ माइनिंग लि. इसके लिए प्रतिदिन छह करोड़ पन्द्रह लाख टैक्स समेत नौ करोड़ छियतर लाख पचास हजार लेगी, जो राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के समक्ष तय हुई दरों (812 रुपए प्रति मीट्रिक टन) से टैक्स सहित 5.70 करोड़ रुपए अधिक हैं। इस तरह प्रतिदिन 2.90 करोड़ टैक्स रहित घाटा होगा। एक महीने में 87 करोड़, एक वर्ष में 1044 करोड़, और तीस वर्षों में 31,220 करोड़ का घाटा होगा और टैक्स समेत यह घाटा इकसठ हजार करोड़ रुपए को पार कर जाएगा।
इक्यावन फीसदी है सरकार की हिस्सेदारी : बाड़मेर के कपूरडी और जालिपा के किसानों की करीब पचास हजार बीघा जमीन अवाप्त हुई हैं, इसका मकसद यहाँ पर कोयला खनन कर कम्पनी को आपूर्ति करनी था। भूमि अवाप्ति के लिए बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लिमिटेड का गठन किया गया, जिसमे 51 प्रतिशत हिस्सेदारी राज्य सरकार की है। शेष 49 फीसदी भागीदारी राजवेस्ट की है। यहाँ कहने का मतलब यह हैं कि ऊंची दरों पर राजवेस्ट की एसोसिएट फर्म को ठेका देने से होने वाले कुल घाटे में सरकार को इक्यावन फीसदी चूना लगेगा। वही राजवेस्ट को एसोसिएट फर्म से सीधा फायदा ही फायदा होगा।
ठेका निरस्त करने की सिफारिश हुई : राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन ने याचिका पर सुनवाई के बाद पिछले वर्ष अगस्त माह में दिए गए निर्णय अनुसार साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को दिए गए खनन ठेके को निरस्त करने और नए सिरे से निविदा आमंत्रित कर प्रतिस्पर्धी दरों के आधार पर ठेका देने के निर्देश दिए। हैरत की बात यह हैं कि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. कमीशन को न्यायिक क्षेत्र मानने से इनकार करते हुए अभी तक बिना रोक टोक खनन कर रहे हैं। वही सरकार भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं, जो काफी संशय पैदा कर रहा है।
कहीं कम कीमत पर कोयला उपलब्ध : राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान स्टेट माइंस मिनरल्स लि. द्वारा गिरल लिग्नाईट विद्युत तापीय संयत्र में 650 प्रति मीट्रिक टन की दर से कोयला उपलब्ध करवाया जा रहा हैं, जबकि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. टैक्स समेत 1953 रुपए की दर से कोयला उपलब्ध करवा रहा है। इस मामले में जिला कलेक्टर डॉ. वीणा प्रधान कुछ भी बयान देने से इनकार कर रही हैं।
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