बुधवार, 14 मार्च 2012

घड़े भर पानी के लिए मीलों सफर

घड़े भर पानी के लिए मीलों सफर

बालोतरा। दुरूह रेतीले मार्ग और घड़ा भर पानी के लिए मीलों सफर की पीड़ा आज भी पचपदरा साल्ट के लवणीय क्षेत्र में श्रमिकों व नमक उत्पादकों के लिए नियति बनी हुई हैं। कहने को तो यहां सदियों से चलने वाला लवण उत्पादन का कार्य उद्योग की श्रेणी में शुमार है, लेकिन इसे विडंबना से कम नहीं कहा जाएगा कि दशकों बाद भी औद्योगिक विकास तो दूर की बात बुनियादी सुविधाएं भी जुट नहीं पाई है। न बिजली है, न पानी। सड़क का नामोनिशान नहीं है।

करीबन 32.34 वर्ग मील के रेतीले व दुरूह इलाके में जहां तक निगाह दौड़ाई जाए वहां बबूल की कंटीली झाडियां, रेतीली पगडंडिया और वीरानापन ही नजर आता है। मारवाड़ के सबसे पुराने उद्योगों में शुमार पचपदरा साल्ट के परंपरागत लवण उद्योग में दुश्वारियों की भरमार है।

मलाल इस बात का है कि विकास के नाम पर यहां आज तक सरकार ने नया धेला तक खर्च नहीं किया है। नतीजा यह है कि लवण क्षेत्र में पहुंचने वाले हजारों श्रमिकों व नमक उत्पादकों को आज भी बुनियादी समस्याएं मुंह बाएं खड़ी मिलती है। सरकार की उपेक्षित नीति, बर्बादी के मुहाने पर पहुंचे उद्योग तथा अनगिनत समस्याओं के बाद भी लवण उत्पादक अपने हौंसले के बूते पर इस उद्योग को जीवित बनाए हुए हैं।

पेयजल के लिए नहीं है पुख्ता बंदोबस्त
लवणीय क्षेत्र के चारों सेक्टर में कहीं भी पेयजल का पुख्ता बंदोबस्त नहीं है। आज तक यह इलाका जलप्रदाय योजना से नहीं जुड़ पाया है। लवण उत्पादन की सीजन के दौरान श्रमिकों व नमक उत्पादकों को इस रेतीले व दुर्गम इलाके में घड़े भर पानी के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है। हर खान पर एक श्रमिक सिर्फ पानी लाने के जुगाड़ में ही जुटा रहता है। दिन भर में कई बार उसे रेतीली पगडंडियों से चार से पांच किमी का पैदल फासला तय कर कंधों पर मटका ढोकर लाना पड़ता है।

गर्मी के दौरान पेयजल के इस बंदोबस्त में श्रमिकों व नमक उत्पादकों की हालत खस्ता हो जाती है। खासकर मई जून के दौरान पानी की यह पीड़ा आफत से कम साबित नहीं होती। गौरतलब रहे कि लवणीय क्षेत्र में गर्मी व लू का प्रकोप भी अत्यधिक रहता है। दोपहर में आग उगलते सूरज के प्रकोप से बचाव के लिए इस इलाके में छांव भरा दरख्त तक नसीब नहीं होता।

सड़कों का अभाव
तकरीबन 32.34 वर्ग मील के इलाके में पसरा लवण उद्योग आज तक सड़कों से अछूता है। रेतीले मार्गो से लवण का परिवहन मुश्किल मसौदा है। अव्वल तो ट्रक चालक लवण क्षेत्र में प्रवेश से ही कतराते हैं। उस पर अगर कोई तैयार भी हो गया तो नमक से लदे वाहन को सड़क तक पहुंचाना भारी पड़ जाता है। बरसात के दौरान नमक निकासी का कार्य पूरी तरह से ठप हो जाता है, क्योंकि क्षारीय इलाके में दलदल व धंसन के कारण भारी वाहन तो दूर राहगीरों का खान तक पहुंचना भी मुश्किल रहता है। इस स्थिति के कारण नमक परिवहन महंगा साबित हो रहा है।

बिजली का अभाव
किसी भी उद्योग के विकास के लिए बिजली प्राण वायु से कम नहीं है। अफसोस यह है कि इन बुनियादी अभावों के कारण पचपदरा का लवण उद्योग पिछड़ेपन से बाहर ही कदम नहीं रख पाया। बिजली से जुड़ाव दशकों बाद भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। लवण उत्पादक उद्योग में नवीनतम तकनीक अपनाने के इच्छुक भी है। लेकिन बिजली सहित बुनियादी सुविधाओं का अभाव इसमें आडे आ रहा है।

मिला तो सिर्फ भरोसा
उद्योग के विकास तथा समस्याओं के निराकरण के लिए ऎसा भी नहीं है कि कोशिशें नहीं हुई। बीते दशकों में लवण उत्पादक समाज के लोगों द्वारा इस उद्योग के विकास के लिए हर स्तर पर पुरजोर मांग की गई। समस्याओं व पिछड़ेपन की पीड़ा का हवाला भी दिया गया। जन प्रतिनिधियों व अधिकारियों ने झांसे खूब दिए। लेकिन नतीजे के नाम पर हाथ कुछ भी नहीं लगा।

विकास की राह में रोड़ा
बुनियादी सुविधाओं का अभाव विकास की राह में रोड़ा बन गया है। बिजली, पानी व सड़क के लिए अनगिनत बार सरकार से मांग की गई है। लेकिन सुनवाई एक बार भी नहीं हुई।
गोविंदराम खारवाल पूर्व सरपंच

नहीं ली सुध
प्रतिकूल हालातों के बाद भी लवण उद्योग अगर चल रहा है तो वह सिर्फ नमक उत्पादकों के हौंसले के बूते। सरकार ने आज तक सुध लेने की जहमत नहीं उठाई है। लवण क्षेत्र में जो हालात है, वे लवण उत्पादकों व श्रमिको के लिए पीड़ा का सबब है।
सौरभसिंह चौहान नमक उत्पादक

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