रविवार, 11 मार्च 2012

हाशिए पर हकीकत

हाशिए पर हकीकत
बाड़मेर। बाड़मेर जिले को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लंबे प्रयासों के बाद आशातीत छोड़ मामूली सफलता भी मिलती नजर नहीं आ रही है। पर्यटक इस जिले की ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं और प्रशासन हर साल इसके लिए रस्म अदायगी मे लगा है।

लोक गायकी
बाड़मेर की एक बड़ी पहचान है यहां की मांगणिहार लोक गायकी। मांगणिहार परिवारों की संतानों का यह जन्मजात गुण है। मुफलिसी मे जीने वाले इन कुनबों ने सात समंदर पार तक की यात्राएं अपनी इसी खूबी के कारण की है। बखूबी बड़े उस्तादों ने उनकी गायकी का लोहा माना है। इस गायकी को उभारने के प्रयास गैर सरकारी स्तर पर हुए है, लेकिन सरकारी तवज्जों की दरकार है। साल मे एक बार होने वाले थार महोत्सव में भी दूसरे कलाकारों का ज्यादा कब्जा होता है और यहां के गायक दर्शक दीर्घा में बैठे नजर आते हंै।

काष्ठ कला : सागवान और रोहिड़े की लकड़ी पर जब थार के काष्ठ कलाकारों के औजार चलते है तो इतनी बारीक और आकर्षक खुदाई करते हैं मानो पत्थर पर मीनाकारी कर रहे हों। फिर जो काष्ठकला के नमूने सामने आते है दांतों तले अंगुली दब जाती है। यह कला भी देश विदेश पर व्यवसायियों की कोशिशों से पहुंची है, लेकिन पर्यटक केवल इस कला को निखारने और कद्र करने के लिए बाड़मेर पहुंचे ऎसे प्रयास नहीं हुए है।

धोरों की नहीं कद्र
महाबार के ऊंचे धोरों पर माटी के झरने जैसा आकर्षक दृश्य बनता है। ढलती सांझ में सोने सी चमक देने वाले इन धोरों की याद भी केवल थार महोत्सव के एक दिन आती है। इसके अलावा यहां पर न तो पर्यटक आते हैं और न उनको लाने की चेष्टा होती है। रस्म अदायगी की परंपरा के चलते महाबार के धोरों ने आज तक वो तवज्जो नहीं पाई है जो सम के धोरों की ओर पर्यटकों की है। चौहटन के मखमली धोरे और अन्य कई जगह के धोरों की नैसर्गिक संुदरता को बिना कुछ सोचे समझे पेड़ पौधे लगाकर बनावटी बना दिया।

हाशिए पर किराडू
बारहवीं शताब्दी के स्थापत्य को अपने में समेटे किराडू बाड़मेर की अनमोल थाती है। पत्थरों पर की गई उस जमाने की महीन कारीगरी और बोलती प्रतिमाओं को देखते ही हर कोई आकर्षित हो जाता है। यह खिंचाव पर्यटकों के कदम भी खींच सकता है, लेकिन किराडू भी एक दिन के लिए थार महोत्सव में ही याद किया जाता है।

शिल्पग्राम की हो गई शाम
जिले की पर्यटन कला और संस्कृति को उभारने के लिए शिल्पग्राम की कल्पना की गई। इस पर लाखों रूपए खर्च किए गए। हाट बाजार स्थापित करने की बड़ी परिकल्पना की गई। शिल्पग्राम की इमारत भी खड़ी कर दी गई, लेकिन चार साल ये यह इमारत वीराने में खण्डहर हुई जा रही है। न कोई सार संभाल लेने वाला है और न ही कोई इसको लेकर सोचने वाला।

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