थार महोत्सव ...तीस साल बाद भी पहचान नहीं मिली ...
प्रशासनिक लापरवाही बनी बाधा
बाड़मेर पश्चिमी राजस्थान की लोक कला ,संस्कृति ,परम्परा लोक गीत संगीत लोक जीवन ,थार की जीवन शैली ,इतिहास से दुनिया को रूबरू करने के उद्देश्य से तीस साल पहले जिला प्रशासन ने थार महोत्सव नामक लोक मेले की शुरुआत इस उद्देश्य से की थी की विदेशी पर्यटक थार की संस्कृति से जुड़े ,मगर अफ़सोस तीस साल बाद भी बाड़मेर का थार महोत्सव विदेशो की बात छोड़े आसपास के जिलो में भी अपनी पहचान नहीं बना पाया ,थार महोत्सव से देशी विदेशी पर्यटकों को जोड़ने की बजाय स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के मनोरंजन का साधन बन गया सबसे बड़ी बात की थार महोत्सव की कलेंडर तारीख आज भी तय नहीं हें जो नया कलेक्टर आया अपनी मर्जी व् सुविधा के अनुसार तारीखे तय करते हें ,थार महोत्सव के आयोजन की कमेटी में आज भी नब्बे फ़ीसदी लोग बाहरी प्रान्तों के हे जो थार की लोक कला और संस्कृति के बारे में कुछ नहीं जानते इन सदस्यों की सलाह पर थर महोत्सब्व में थार की लोक कला संस्कृति लोक गीत संगीत को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को स्थान देने की बजाय उलुल जुलूल कार्यक्रमों को इसमे शामिल कर महोत्सव के उद्देश्य को ही ख़तम कर दिया प्रशासनिक अधिकारी अपना अपना टाइम पास करने के उद्देश्य से कभी राजा हसन तो कभी कैलाश खेर को मोटी रकम देकर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बुलाते हे जिनका थार की संस्कृति से कोई लेना देना नहीं बाड़मेर जैसलमेर लोक गीत संगीत का खजाना हें यंहा लोक गायकी और संगीत से जुड़े नायब हीरे जड़े हें जिन्होंने राजस्थान की लोक कला और संस्कृति को सातवे आसमान तक और सात समुन्दर पार तक पंहुचाया यंहा के लोक कलाकारों को अपने ही महोतासवो में मौका नहीं मिलता उन्हें हमेशा ऐसे कार्यक्रमों में नज़र अंदाज़ किया जाता रहा हें ,थार महोत्सव का आयोजन का जिम्मा उन लोगो के पास हें जिनका थार से कोई जुड़ाव नहीं एक तरफ जैसलमेर का मरू महोत्सव हें जिसने कम समय में पुरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई जिसका मूल कारण स्थानीय लोक कलाकार हें जिन्होंने अपने कला से मरू महोत्सव को नई ऊँचाइया प्रदान की वन्ही दूसरी तरफ थार महोत्सव हे जो तीस साल में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया जिसके जिम्मेदार प्रशासन की नासमझी हें .आखिर थार महोत्सव का आयोजन क्यों और किसके लिए किया जा रहा हें यह समझ से परे हें.इधर सोमवार को थार महोत्सव का आयोजन शुरू हो रहा हें मगर पुरे बाड़मेर शहर में मात्र चार बेनर लगाए गए हें प्रचार के लिए सबसे दुखद पहलु हें की इन बेनारो में राजस्थान और थार की लोक संस्कृति को स्थान देने की बजाय कैलाश खेर को प्रमुखता दी हें थार महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य ही ख़तम होता जा रहा हें .बाड़मेर और थार की थली की लोक संस्कृति ,और परम्पराव का नाश किया जा रहा हें एक तरफ विद्यालयों में छात्रो के परिक्षाए चल रही हें ऐसे में सेलिब्रेटी के कार्यक्रम के आयोजन का कोई तुक समझ से परे हें ऐसे में जब कार्यक्रम थार महोत्सव का हो उसमे गैर राजस्थानी संस्कृति के कलाकारों के कार्यक्रमों के आयोजनों पर उंगलिया उठना स्वाभाविक हें .बहरहाल जिला प्रशासन राजस्थान की लोक कला और संस्कृति की बैंड बजाने पर तूला है .
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