इतिहास पर चिंतन, भ्रष्टाचार पर व्यंग्य
कला मेले में रम्मत, कवि सम्मेलन, गोष्ठी और प्रतियोगिताएं हुईं
बीकानेर.‘सुण काकी म्हारी हुकुम देवे तो लूटूं आगरो...’ के साथ गूंजते अमरसिंह के संवादों ने लोगों में जहां जोश भरा तो शाम को हुए कवियों के राजस्थानी में किए गए हास्य व्यंग्य ने हर किसी को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर देश किस ओर जा रहा है। कुछ ऐसा ही अल्हड़ता और जोश भरने का मौका दिया कला-साहित्य एवं संस्कृति मेले ने। डा. करणीसिंह स्टेडियम से लेकर टाउन हाल तक जगह-जगह राजस्थानी संस्कृति और वैभव से सराबोर करने वाले इस मेले के दूसरे दिन सृजनात्मकता और रचनात्मकता के रंग भी नजर आए। कला मेले में जहां विद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर विभिन्न जिलों से आए विद्यार्थियों ने वाद-विवाद, चित्रकला तथा निबंध प्रतियोगिता में भागीदारी निभाई तो वहीं महिलाओं और बच्चों के साथ युवाओं ने राजस्थानी फिल्म का आनंद लिया। मेला प्रभारी डॉ. महेन्द्र खडग़ावत ने बताया कि कला, साहित्य मेले के दूसरे दिन सिने मैजिक सिनेमा हॉल राजस्थानी फिल्म ‘मां राजस्थान री’ का प्रदर्शन किया गया। दूसरी ओर टाउन हॉल में शैली का रम्मत ‘अमर सिंह राठौड़’ का मंचन किया गया। वहीं पूर्व महाराज नरेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम में गोष्ठी का आयोजन किया गया। धरणीधर खेल मैदान में कलेक्टर इलेवन व कमिश्नर इलेवन टीमों के मध्य क्रिकेट मैच खेला गया, जिसमें कलेक्टर इलेवन ने एक गेंद शेष रहते जीत हासिल की। पहले खेलते हुए जहां कमिश्नर इलेवन टीम ने 12 ओवर में 72 रन बनाए। लक्ष्य का पीछा करने उतरी कलेक्टर इलेवन ने एक गेंद शेष रहते हुए रोमांचक जीत हासिल की। अंपायर प्रकाश चूरा व विजेंद्र व्यास थे। स्कोरर अभिषेक आचार्य तथा कमेंटेटर संजय पुरोहित व ज्योति प्रकाश रंगा थे। शाम को पवनपुरी में बीकानेर नर्सिंग होम के पीछे, रथखाना में रामदेव जी का जागरण तथा केसरदेसर कुआं स्थित पाबू जी मंदिर में पाबूजी की फड़ बांची गई।
‘राजस्थानी ने किया इतिहास लेखन को प्रभावित’
नरेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम में आयोजित ‘इतिहास लेखन : प्रासंगिक एवं महत्त्व’ विषय पर गोष्ठी की अध्यक्षता मालचंद तिवाड़ी ने की। उन्होंने कहा, भारतीय भाषाओं में राजस्थानी ही ऐसी भाषा है, जिसने इतिहास लेखन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। विशिष्ट अतिथि डॉ. किरण नाहटा ने कहा कि इतिहास लेखन की प्रासंगिकता तभी होगी, जब उसमें आम आदमी की बात हो। राजस्थानी इतिहास लेखन में जैन साहित्य का विशेष महत्त्व है। मुख्य वक्ता डॉ.मदन केवलिया ने कहा कि लेखक अपने वक्त के इतिहास और युगबोध को साहित्य के माध्यम से सामने लाता है और युगचेतना को प्रस्तुत करता है। राजस्थानी इतिहास लेखन में ख्यात, वात, पीढ़ी, वंशावली, विगत, वचनिका आदि की सुदीर्घ परंपरा है। इतिहास लेखन में ज्ञान-विज्ञान को भी सम्मिलित करना चाहिए। कार्यक्रम में डा.कृष्ण शंकर पारीक,डा.भंवर सिंह सामौर (चूरू),मोहन आलोक (श्रीगंगानगर),डा. ब्रह्मा-राम चौधरी व डा. सुरेंद्र सोनी (चूरू) ने भी विचार व्यक्त किए।
सुण रै सैण तनै साची कूंई, सगला रैमन चोर’
टाउन हॉल में राजस्थानी कवि सम्मेलन में संभाग भर से आए कवियों ने अपनी काव्य रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष श्याम महर्षि थे। मुख्य अतिथि महापौर भवानी शंकर शर्मा, विशिष्ट अतिथि नगर विकास न्यास के अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद तथा प्रधान भोमराज आर्य थे। रवि पुरोहित के संचालन में हुए कवि सम्मेलन की शुरुआत कवि राजेन्द्र स्वर्णकार ने सरस्वती वंदना ‘ओ वीणा धारिणी’ तथा गीत ‘राजस्थानी बोल बीरा इमरत वाणी बोल’ के साथ किया। कवि पवन शर्मा, कवयित्री मोनिका गौड़, हनुमानगढ़ के सरदार रूप सिंह राजपुरी, बीकानेर के आनन्द वि. आचार्य, चूरू के हनुमान आदित्य, बीकानेर के कवि शंकर सिंह राजपुरोहित,चूरू के बनवारी खामोश, श्रीगंगानगर के सुरेन्द्र सुदंरम् आदि ने अपनी रचनाओं का वाचन किया।
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