शनिवार, 10 दिसंबर 2011

अरे...यदि 'ये' जिंदा है, तो फिर 'वो' कौन था?

नई दिल्ली। एक ‘जीवित’ व्यक्ति की ‘हत्या’ के रहस्य पर से परदा हटाने के लिए न्यायिक जांच का सहारा लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आर एम लोढा और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की बेंच ने शुक्रवार को न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने झांसी के सत्र न्यायाधीश को 24 जनवरी से न्यायिक जांच शुरू करने और तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
मामला इस तरह है कि उत्तरप्रदेश पुलिस ने 2 अगस्त 2000 को झांसी के रहने वाले भगवान दास की हत्या का मामला दर्ज करते हुए उसके गांव से एक परिवार के तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। तीनों दाल चंद, मोहन और रामेश्वर को उम्र कैद की सजा भी सुना दी गई। तीनों 11 साल से जेल में थे।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले माह उन्हें जमानत दी है। तीनों ने कोर्ट में पेश याचिका में बताया कि भगवान दास जीवित होने का दावा कर रहा है। याचिकाकर्ताओं के इस दावे के मद्देनजर बेंच ने चार नवंबर को चारों को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए थे। सरकार ने मृतक का सौतेला भाई बताया है। राज्य सरकार ने दलील दी कि मृतक भगवान दास के जिंदा होने का याचिकाकर्ताओं का दावा गलत है। जीवित होने का दावा करने वाला व्यक्ति भगवान दास नहीं बल्कि उसका सौतेला भाई है।

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