ग्रहण का सूतक काल--10 दिसम्बर 2011 के दिन खग्रास चन्द्र ग्रहण दिखाई देगा. इस ग्रहण का सूतक काल, इस दिन सुबह भारतीय समयानुसार 09:15 बजे से आरम्भ हो जाएगा.
ग्रहण काल तथा बाद में करने योग्य कार्य ——
ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, पाठ, मन्त्र, सिद्धि, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कार्यो का करना कल्याणकारी रहता है. धार्मिक लोगों को ग्रहण काल अथवा 10 दिसंबर के सूर्यास्त के बाद दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए. तथा अगले दिन 11 दिसंबर,2011 को प्रात: सूर्योदय के समय पुन: स्नान करके संकल्पपूर्वक योग्य ब्राह्माण को दान देना चाहिए.
ग्रहण के समय स्नानादि करने के पश्चात अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. चन्द्र ग्रहण पर भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए. जिसकी जो श्रद्धा है उसके अनुसार पूजा-पाठ, वैदिक मंत्रों का जाप तथा अनुष्ठान आदि करना चाहिए. ग्रहण के दौरान ही अन्न, जल, धन, वस्त्र, फल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. ग्रहण समय में पवित्र स्थलों पर स्नान करना चाहिए. इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, बनारस आदि तीर्थों पर स्नान का विशेष महत्व होता है.
धर्म सिन्धु के अनुसार, ग्रहण मोक्ष उपरान्त पूजा पाठ, हवन- तर्पण, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र- अनुष्ठान आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे कि अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि जो संभव हो सके, करना चाहिए।ग्रहण के समय स्नानादि करने के पश्चात अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. चन्द्र ग्रहण पर भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए. जिसकी जो श्रद्धा है उसके अनुसार पूजा-पाठ, वैदिक मंत्रों का जाप तथा अनुष्ठान आदि करना चाहिए. ग्रहण के दौरान ही अन्न, जल, धन, वस्त्र, फल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. ग्रहण समय में पवित्र स्थलों पर स्नान करना चाहिए. इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, बनारस आदि तीर्थों पर स्नान का विशेष महत्व होता है.
धर्मसिन्धु के अनुसार ग्रहण काल में स्पर्श के समय स्नान, ग्रहण काल में मध्य समय में होम तथा देवपूजन करना चाहिए. ग्रहण मोक्ष के समय में पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. अन्न, वस्त्र, धन आदि का अपनी क्षमतानुसार दान करना चाहिए. ग्रहण जब पूर्ण रुप से समाप्त हो जाए तब फिर स्नान करना चाहिए. यह सभी क्रम से करना चाहिए.
सूतक व ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श करना, अनावश्यक खाना-पीना, मैथुन, निद्रा, तैल, श्रंगार आदि करना वर्जित होता है. झूठ-कपटादि, वृ्था- अलाप आदि से परहेज करना चाहिए. वृ्द्ध, रोगी, बालक व गर्भवती स्त्रियों को यथानुकुल भोजन या दवाई आदि लेने में दोष नहीं लगता है.भारतीय शास्त्रों में ग्रहण काल में कुछ कार्यों के बारे में बताया गया है जिन्हें ग्रहण समय में नहीं करना चाहिए. इस समय गर्भवती महिलाओं को चाकू का उपयोग नहीं करना चाहिए. सब्जी तथा फलों को नहीं काटे. पापड़ भी नहीं सेंकना चाहिए. उत्तेजित पदार्थों से दूर रहना चाहिए. इस दौरान संभोग नहीं करना चाहिए. माँस तथा मदिरा का परहेज करना चाहिए.
कुप्रभाव से ऐसे बचें —–
ग्रहण का सूतक तीन प्रहर यानी नौ घंटे पहले से शुरू होगा। सूतक और ग्रहण काल में भगवान की पूजा व मूर्ति स्पर्श नहीं करना चाहिए। ग्रहण के कुप्रभाव से बचने के लिए भगवान के नाम का स्मरण करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान व चंद्रमा से संबंधित सफेद वस्तुएं व अन्न दान करें।
चन्द्रग्रहण में बोलें चंद्र गायत्री मंत्र.. टेंशन से मिलेगा छुटकारा----
प्रतियोगिता के इस दौर में मानसिक तनाव जीवन का हिस्सा है। तनाव से बिखरा और दु:खी मन इंसान की मनोदशा ही नहीं व्यवहार में भी बुरे बदलाव लाता है। जिससे जीवन में आंतरिक ही नहीं बाहरी कलह भी स्वयं के साथ करीबी लोगों के तनाव और कष्ट का कारण बन सकता है। ऐसी दशा से बाहर आने के लिए मानसिक संयम रख तनाव का कारण बनी समस्या, असफलता या अधूरी इच्छाओं पर सकारात्मक विचार जरूरी है।
वहीं इस समस्या के धार्मिक उपायों पर विचार करें तो शास्त्रों में चन्द्र मन का स्वामी माना गया है। यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्रों में तनाव, बेचैनी, मानसिक रोगों का कारण चन्द्र दोष माना जाता है। चन्द्र की अनुकूल स्थिति में इंसान मानसिक ऊर्जा से भरपूर, शांत और निरोगी जीवन पाता है।
वैसे तो चन्द्र दोष दूर करने के लिए सोमवार, अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ होता है। किंतु चन्द्र दोष से पीडि़त के लिए चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्र उपासना बहुत ही जरूरी होती है। चन्द्रग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले अमृत के बंटवारे के दौरान पैदा हुई शत्रुता के कारण छायाग्रह राहु के द्वारा चन्द्र को ग्रसने से चन्द्रग्रहण होता है।
बहरहाल, धर्म हो य विज्ञान चन्द्र के मानव जीवन और प्रकृति पर चन्द्र के प्रभाव को स्वीकारते हैं। इसलिए अगर आप भी किसी मानसिक परेशानी या तनाव से गुजर रहें है तो मन को शांत और एकाग्र करने के लिए कल यहां बताई जा रही चन्द्र पूजा की सरल विधि के साथ चन्द्रग्रहण के दौरान इस चन्द्र गायत्री मंत्र का जप करें -
- प्रात: स्नान कर नवग्रह मंदिर या देवालय में चन्द्रदेव की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- स्नान के बाद चंद्र पूजा में विशेष तौर पर सफेद सामग्रियों को अर्पित करें। इनमें सफेद चंदन, सफेद सुंगधित फूल, अक्षत, सफेद वस्त्र, दूर्वा चढ़ाकर दही या दूध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद इस चन्द्र गायत्री मंत्र का स्मरण करें, इसी चंद्र मंत्र का चंद्रग्रहण के दौरान भी जाप करें -
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।।
- पूजा व मंत्र जप के बाद घी व कर्पूर से आरती कर मानसिक सुख की कामना कर प्रसाद ग्रहण करें। रात्रि में चन्द्रग्रहण के दौरान मन ही मन चंद्र जप का यथाशक्ति जप मन को शांत, एकाग्र और स्थिर करने के साथ स्वास्थ्य और संतान सुख भी देने वाला माना गया है।
पंडित दयानन्द शास्त्री
ग्रहण काल तथा बाद में करने योग्य कार्य ——
ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, पाठ, मन्त्र, सिद्धि, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कार्यो का करना कल्याणकारी रहता है. धार्मिक लोगों को ग्रहण काल अथवा 10 दिसंबर के सूर्यास्त के बाद दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए. तथा अगले दिन 11 दिसंबर,2011 को प्रात: सूर्योदय के समय पुन: स्नान करके संकल्पपूर्वक योग्य ब्राह्माण को दान देना चाहिए.
ग्रहण के समय स्नानादि करने के पश्चात अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. चन्द्र ग्रहण पर भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए. जिसकी जो श्रद्धा है उसके अनुसार पूजा-पाठ, वैदिक मंत्रों का जाप तथा अनुष्ठान आदि करना चाहिए. ग्रहण के दौरान ही अन्न, जल, धन, वस्त्र, फल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. ग्रहण समय में पवित्र स्थलों पर स्नान करना चाहिए. इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, बनारस आदि तीर्थों पर स्नान का विशेष महत्व होता है.
धर्म सिन्धु के अनुसार, ग्रहण मोक्ष उपरान्त पूजा पाठ, हवन- तर्पण, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र- अनुष्ठान आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे कि अन्न, जल, वस्त्र, फल आदि जो संभव हो सके, करना चाहिए।ग्रहण के समय स्नानादि करने के पश्चात अपने इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए. चन्द्र ग्रहण पर भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिए. चन्द्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए. जिसकी जो श्रद्धा है उसके अनुसार पूजा-पाठ, वैदिक मंत्रों का जाप तथा अनुष्ठान आदि करना चाहिए. ग्रहण के दौरान ही अन्न, जल, धन, वस्त्र, फल आदि का अपनी सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए. ग्रहण समय में पवित्र स्थलों पर स्नान करना चाहिए. इस दिन प्रयाग, हरिद्वार, बनारस आदि तीर्थों पर स्नान का विशेष महत्व होता है.
धर्मसिन्धु के अनुसार ग्रहण काल में स्पर्श के समय स्नान, ग्रहण काल में मध्य समय में होम तथा देवपूजन करना चाहिए. ग्रहण मोक्ष के समय में पितरों का श्राद्ध करना चाहिए. अन्न, वस्त्र, धन आदि का अपनी क्षमतानुसार दान करना चाहिए. ग्रहण जब पूर्ण रुप से समाप्त हो जाए तब फिर स्नान करना चाहिए. यह सभी क्रम से करना चाहिए.
सूतक व ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श करना, अनावश्यक खाना-पीना, मैथुन, निद्रा, तैल, श्रंगार आदि करना वर्जित होता है. झूठ-कपटादि, वृ्था- अलाप आदि से परहेज करना चाहिए. वृ्द्ध, रोगी, बालक व गर्भवती स्त्रियों को यथानुकुल भोजन या दवाई आदि लेने में दोष नहीं लगता है.भारतीय शास्त्रों में ग्रहण काल में कुछ कार्यों के बारे में बताया गया है जिन्हें ग्रहण समय में नहीं करना चाहिए. इस समय गर्भवती महिलाओं को चाकू का उपयोग नहीं करना चाहिए. सब्जी तथा फलों को नहीं काटे. पापड़ भी नहीं सेंकना चाहिए. उत्तेजित पदार्थों से दूर रहना चाहिए. इस दौरान संभोग नहीं करना चाहिए. माँस तथा मदिरा का परहेज करना चाहिए.
कुप्रभाव से ऐसे बचें —–
ग्रहण का सूतक तीन प्रहर यानी नौ घंटे पहले से शुरू होगा। सूतक और ग्रहण काल में भगवान की पूजा व मूर्ति स्पर्श नहीं करना चाहिए। ग्रहण के कुप्रभाव से बचने के लिए भगवान के नाम का स्मरण करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान व चंद्रमा से संबंधित सफेद वस्तुएं व अन्न दान करें।
चन्द्रग्रहण में बोलें चंद्र गायत्री मंत्र.. टेंशन से मिलेगा छुटकारा----
प्रतियोगिता के इस दौर में मानसिक तनाव जीवन का हिस्सा है। तनाव से बिखरा और दु:खी मन इंसान की मनोदशा ही नहीं व्यवहार में भी बुरे बदलाव लाता है। जिससे जीवन में आंतरिक ही नहीं बाहरी कलह भी स्वयं के साथ करीबी लोगों के तनाव और कष्ट का कारण बन सकता है। ऐसी दशा से बाहर आने के लिए मानसिक संयम रख तनाव का कारण बनी समस्या, असफलता या अधूरी इच्छाओं पर सकारात्मक विचार जरूरी है।
वहीं इस समस्या के धार्मिक उपायों पर विचार करें तो शास्त्रों में चन्द्र मन का स्वामी माना गया है। यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्रों में तनाव, बेचैनी, मानसिक रोगों का कारण चन्द्र दोष माना जाता है। चन्द्र की अनुकूल स्थिति में इंसान मानसिक ऊर्जा से भरपूर, शांत और निरोगी जीवन पाता है।
वैसे तो चन्द्र दोष दूर करने के लिए सोमवार, अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ होता है। किंतु चन्द्र दोष से पीडि़त के लिए चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्र उपासना बहुत ही जरूरी होती है। चन्द्रग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथाओं के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले अमृत के बंटवारे के दौरान पैदा हुई शत्रुता के कारण छायाग्रह राहु के द्वारा चन्द्र को ग्रसने से चन्द्रग्रहण होता है।
बहरहाल, धर्म हो य विज्ञान चन्द्र के मानव जीवन और प्रकृति पर चन्द्र के प्रभाव को स्वीकारते हैं। इसलिए अगर आप भी किसी मानसिक परेशानी या तनाव से गुजर रहें है तो मन को शांत और एकाग्र करने के लिए कल यहां बताई जा रही चन्द्र पूजा की सरल विधि के साथ चन्द्रग्रहण के दौरान इस चन्द्र गायत्री मंत्र का जप करें -
- प्रात: स्नान कर नवग्रह मंदिर या देवालय में चन्द्रदेव की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- स्नान के बाद चंद्र पूजा में विशेष तौर पर सफेद सामग्रियों को अर्पित करें। इनमें सफेद चंदन, सफेद सुंगधित फूल, अक्षत, सफेद वस्त्र, दूर्वा चढ़ाकर दही या दूध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद इस चन्द्र गायत्री मंत्र का स्मरण करें, इसी चंद्र मंत्र का चंद्रग्रहण के दौरान भी जाप करें -
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृत तत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।।
- पूजा व मंत्र जप के बाद घी व कर्पूर से आरती कर मानसिक सुख की कामना कर प्रसाद ग्रहण करें। रात्रि में चन्द्रग्रहण के दौरान मन ही मन चंद्र जप का यथाशक्ति जप मन को शांत, एकाग्र और स्थिर करने के साथ स्वास्थ्य और संतान सुख भी देने वाला माना गया है।
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