गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

वादे तो वादे हैं, वादों का क्या?



बाड़मेर। 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में शहीद हुए योद्धाओं की स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के उद्देश्य बाड़मेर शहर में बना शहीद चौराहा उपेक्षा का शिकार है। प्रति वर्ष विजय दिवस के अवसर पर इसी चौराहे पर प्रशासनिक अघिकारियों द्वारा चौराहे को विकसित कर अमर जवान ज्योति स्मारक जयपुर की तरह बनाने का वादा किया जाता हैं, लेकिन निभाया नहीं जाता।

सोलह दिसम्बर को विजय दिवस पर एक सप्ताह बाद शहीदों की याद में एक बार फिर यहां पर समारोह होगा। यह भी तय है कि समारोह से ठीक पहले शहीद सर्किल की टूटी हुई रेलिंग दुरस्त कर दी जाएगी। चौराहे के ईर्द-गिर्द साफ सफाई कर चूने की लाइनिंग भी कर दी जाएगी, लेकिन यह सब कुछ घण्टों में कुछ घण्टों के लिए फौरी तौर पर किया जाने वाला काम होगा। इसके बाद यहां पर फिर उपेक्षा पसर जाएगी। कड़वी सच्चाई यह है कि शहीद सर्किल की रेलिंग बिखरे हुए महीनों बीत गए हैं।

नगरपालिका व इस चौराहे को गोद ले चुकी दी बाड़मेर सेण्ट्रल कॉ-ऑपरेटिव बैंक के पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि रेलिंग को दुरस्त कर लिया जाए। ऎसी बात भी नहीं है कि नगरपालिका इससे अनजान है। दरअसल अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद बाड़मेर ने इस ओर नगरपालिका का ध्यान भी खींचा, लेकिन पालिका प्रशासन की आंखें नहीं खुली।

बैंक ने 18 सितम्बर 2007 कोे इस चौराहे को गोद भी लिया, लेकिन रखरखाव करना भूल गए। पिछले पंाच वर्षाें में यहां पर जो सालाना समारोह हुए हैं, उसमें शामिल अतिथियों (प्रशासनिक अघिकारियों) ने शहीद सर्किल के सौन्दर्यकरण के लम्बे चौड़े वादे किए, लेकिन हकीकत यह है कि चौराहा तीन वर्ष पहले जिस स्थिति में था, उससे बदतर स्थिति में जा पहुंचा है।

नाम मिटे, फव्वारे हटे : शहीद सर्किल पर सौन्दर्यकरण के लिहाज से फव्वारे लगे हुए थे, जो हटा दिए गए हैं। शहीद स्मारक पर शहीदों के जो नाम लिखे हुए हैं, वह भी मिट गए हैं। स्मारक पर पोस्टर चस्पा करने वालों पर रोक टोक नहीं है।

इससे सौन्दर्यकरण का पलीता लग गया है। 2007 में हुए समारोह में तत्कालीन जिला कलक्टर ने चौराहे को अमर जवान ज्योति स्मारक जयपुर की तर्ज पर विकसित करने का वादा किया था, जो इसके बाद हुए समारोहों में दोहराया जाता रहा। अभी भी इस वादे के पूरा होने का इंतजार है।

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