सत्य ही शिव हैसंसार में सुंदर शायद हम किसी को भी नहीं कह सकते। इस जीवन को तो बिल्कुल भी सुंदर नहीं कहा जा सकता। संसार में सबसे सुंदर यदि कुछ है तो वह मृत्यु है। मृत्यु जीव को नई प्रेरणा और प्रकृति को गति देती है। प्रकृति का चक्र चलता रहे और जीव मरने के बाद जन्म लेते रहें, यही ईश्वर की लीला है। शाश्वत जगत से परे परमात्मा में लीन हो जाना बहुत सुंदर है। वही परमसत्ता जीव को जीवन जीने की प्रेरणा देती है और वही परमसत्ता जीव को मृत्यु के अंक में समा देती है। मृत्यु न हो तो प्रकृति का कल्याण मुश्किल है। संसार में पैर रखने की भी जगह नहीं बचेगी। इसलिए भगवान शंकर को मृत्यु अर्थात प्रलय का देवता कहा गया है।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह मृत्यु से दूर भागता है, इसलिए वह महाशिवरात्रि पर उतना सहज और चौकन्ना नहीं होता जितना कि खुशी के क्षणों में रहता है। इसलिए भगवान शंकर कहते हैं कि जीव को जीवन के साथ-साथ अपनी मृत्यु का स्मरण करते रहना चाहिए। इसी में उसका भला है। वास्तविक भक्ति किसी देव में नहीं, बल्कि कल्याण में है।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह मृत्यु से दूर भागता है, इसलिए वह महाशिवरात्रि पर उतना सहज और चौकन्ना नहीं होता जितना कि खुशी के क्षणों में रहता है। इसलिए भगवान शंकर कहते हैं कि जीव को जीवन के साथ-साथ अपनी मृत्यु का स्मरण करते रहना चाहिए। इसी में उसका भला है। वास्तविक भक्ति किसी देव में नहीं, बल्कि कल्याण में है।
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