रविवार, 27 नवंबर 2011

करगिल जंग: आईबी ने पहले ही चेताया था वाजपेयी को

नई दिल्ली।। पाकिस्तान के साथ 1999 में हुए करगिल युद्ध से करीब एक साल पहले खुफिया ब्यूरो (आईबी) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से इसकी आशंका जताई थी। आईबी ने करगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान की साजो-सामान संबंधी तैयारियों के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी को सूचना दी थी। फिर भी सरकार घुसपैठ रोकने से चूक गई और करगिल युद्ध का सामना करना पड़ा। सेना के एक वैचारिक संगठन ने इस बात का दावा किया है। Atal-Bihari-Vajpayee.jpg
' सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज' (क्लॉज) की स्टडी में कहा गया, '2 जून 1998 को आईबी ने प्रधानमंत्री को एक नोट भेजा, जिसमें करगिल के सामने वाले क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तान की साजो-सामान संबंधी तैयारी का ब्योरा था।'

इस स्टडी के मुताबिक यह अनुमान लगाया गया था कि परमाणु शक्ति संपन्न होने के बाद पाकिस्तान करगिल में भाड़े के सैनिक भेज सकता है। इस नोट पर तत्कालीन आईबी प्रमुख ने 'प्रोटोकॉल टर्म्स' में दस्तखत किए थे। यह एक ऐसा चिह्न है जो बताता है कि दस्तावेज की विषय-वस्तु असाधारण रूप से संवेदनशील है और इस पर ध्यान देना जरूरी है।

स्टडी 'पेरिल्स ऑफ प्रिडिक्शन, इंडियन इंटेलिजेंस ऐंड द करगिल क्राइसिस' में कहा गया कि रिसर्च ऐंड अनैलेसिस विंग (रॉ) ने भी अक्टूबर 1998 के अपने आकलन में आगाह किया था कि पाकिस्तानी सेना गठबंधन के अपने सहयोगियों (भाड़े के सैनिक) की संभावित मदद के साथ एक सीमित लेकिन तेज हमला कर सकती है।

इस स्टडी में कहा गया कि आमतौर पर विश्वसनीय मानी जाने वाली रॉ की इस रिपोर्ट में जंग की आशंका 'असंगत' नजर आई। लिहाजा, तुरंत सेना ने सवाल किए।

इसमें कहा गया कि अगले 6 महीने के जोखिम आकलन में रॉ ने 'सीमित हमले' का कोई संदर्भ नहीं दिया और पाकिस्तान से खतरे को सिर्फ भाड़े के सैनिकों वाला जोखिम करार दिया।

स्टडी के मुताबिक, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने करगिल युद्ध से पहले पाकिस्तान के मनसूबों का सटीक आकलन किया था, लेकिन उसके विशिष्ट प्रारूप के बारे में उनका अनुमान गलत रहा।

' क्लॉज' के अध्ययन में कहा गया कि जून 1998 से मई 1999 के बीच रॉ, आईबी और सेना की खुफिया इकाई के पास 43 रिपोर्टें आईं जो बाद में करगिल में पाकिस्तान के मनसूबों से संबंधित पाई गईं।

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