गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

परंपरा’ निर्वाह करने की जिद, चढ़ा दी बलि और सहमी पुलिस



अम्बाला .जिद थी ‘परंपरा’ निर्वाह करके रहेंगे, पुलिस हमें कैसे रोक सकती है? गुस्से से कांप रही जुबान पर जयकारे थे जिनका वेग ढोल पर पड़ रही थाप के साथ और बढ़ता जा रहा था। इन्हीं जयकारों की आवाज में सहमे बकरों का मिमियाना गौण था।


भीड़ बढ़ती रही और गुस्सा भी आखिर पुलिस भी ‘सहम’ गई। बलि चढ़ाकर रहेंगे.. इकलौता मकसद लेकर भीड़ मंदिर की तरफ बढ़ी और पुलिस पीछे हट गई। उसके बाद मंदिर की दहलीज पर एक-एक करके 40 से ज्यादा बकरों का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।


कैंट के कालीबाड़ी मंदिर में नवरात्रों के अंत में बलि देने की यह परंपरा काफी पुरानी है। मंदिर भी करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। हाथों में बकरों की रस्सी थामे मोची मंडी, खटीक मंडी, दीना की मंडी समेत कई इलाकों के लोग बुधवार को सुबह 11 बजे से मंदिर में पहुंचने लगे।


पहले से ही एक समुदाय के लोगों ने यहां बलि चढ़ाने को गलत ठहराते हुए रुकवाने की मांग की थी। काफी संख्या में पुलिस बल कैंट थाना प्रभारी बलजीत सिंह व पड़ाव थाना प्रभारी अजायब सिंह के नेतृत्व में पहुंच चुका था। पुलिस ने लोगों को मंदिर में बलि चढ़ाने से मना कर दिया।


इसे अपनी धार्मिक परंपरा में खलल मानते हुए लोगों ने काली मां के जयकारे और प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए। लोगों का कहना है कि यह परंपरा दशकों से चली आ रही है, पहले कभी ऐसी अड़चन नहीं हुई, पिछले दो साल से ही उन्हें रोकने की कोशिश होने लगी है।


गुस्साई भीड़ जिसमें काफी संख्या में महिलाएं व युवा शामिल थे, ने मंदिर के सामने चौराहे पर बैठ रास्ता रोक दिया। पुलिस ने उन्हें समझाने की कोशिश की और कुछ देर में एसडीएम के मौके पर पहुंचने की बात कही। करीब एक घंटा यह हो-हल्ला चलता रहा। आखिर लोगों ने फैसला किया कि हर हाल में बलि चढ़ाकर रहेंगे। लोग बकरों की रस्सी थामे मंदिर की तरफ बढ़ने लगे। पुलिस भी सहम गई और एक तरफ खड़ी हो गई।


डीजीपी तक को भेजी गई थी ईमेल : बलि को गलत ठहराते हुए कॉमन पीपल अम्बाला के नाम से डीजीपी, एडीजीपी लॉ एंड ऑर्डर, डीसी, डीसीपी को मंगलवार को ईमेल भेजी गई थी।


जिसमें तर्क यह था बलि भी टोने-टोटके की श्रेणी में है और अंधविश्वास का हिस्सा है। यही नहीं पशु के प्रति क्रूरता भी है। शास्त्रों में उल्लेख की बात कहकर कुछ लोग इसे बढ़ावा देते हैं। यह भी चुनौती दी गई थी कि मंदिर के पुजारी या कोई और धार्मिक नेता इस विषय में खुले मंच पर आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा करे। जिसकी सीडी तैयार कर पूरे शहर में बांटी जाएगी और एक चैनल पर चलाई जाएगी। उसके बाद लोग फैसला करेंगे। इसी तरह रेजिमेंट बाजार में भी एक घर में ही पशुओं की बलि देने की शिकायत भी की गई थी।


पशु क्रूरता अधिनियम में आता है मामला


एडवोकेट शैलेंद्र शैली कहते हैं कि पशु के प्रति किसी भी प्रकार की क्रूरता प्रिवेंशन ऑफ क्रूयल्टी टू एनिमल एक्ट (पशु क्रूरता अधिनियम), 1960 के तहत अपराध है जिसमें भादंसं की धारा 429 के तहत मामला बनता है। ये भी क्रूरता की श्रेणी में: किसी भी पशु को पीटना, उसे किक मारना, उस पर ज्यादा वजन या सवारी लादना या अन्य किसी तरीके से प्रताड़ित करना। पशु को पर्याप्त खाने-पीने को न देना। किसी भी पशु को क्रूरतापूर्ण तरीके से मारना। लेकिन सजा के नाम पर 10 रुपए से 100 रुपए तक जुर्माना और 3 महीने की सजा का ही प्रावधान है।

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