महात्मा गांधी की स्मृति में
आज जिस भारत में हम निवास कर रहे हैं वहां आतंकवादी हमलों तथा क्षेत्रीय विवादों के रूप में बड़े स्तर पर हिंसा देखी जा रही है। हमारे नागरिकों का जीवन विक्षोभ और भ्रम से बोझिल हो चुका है। निर्दोष नागरिक अपने जीवन खो देते हैं या उन्हें हमलों के डर से अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है, अत: शांति और अहिंसा की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
महात्मा गांधी को आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके द्वारा किए गए असाधारण योगदान के लिए ही नहीं अपितु अन्याय और असंगति के साथ निपटने में दुनिया को एक नई विचाराधारा देने के लिए भी याद किया जाता है। उन्होंने हमें अहिंसा का पा�� पढ़ाया हैं, जो मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान हेतु एक साधन के रूप में अहिंसा का उपयोग करने को प्रोत्साहन देता है।(पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है)
महात्मा गांधी को हम प्रेम से ‘बापू’ कहते हैं, जो राष्ट्रपिता हैं और दुनिया भर में उन्हें सबसे शक्तिशाली साधन – सत्य और अहिंसा से स्वतंत्रता का संघर्ष जीतने के लिए याद किया जाता है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869को पोरबंदर में हुआ था जो गुजरात राज्य का एक तटीय कस्बा है। लगभग 18 वर्ष की उम्र में वे कानून का अध्ययन करने के लिए तथा एक बेरिस्टर के रूप में प्रशिक्षण पाने के लिए इंग्लैंड गए। लगभग 6 वर्ष बाद उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय फर्म के लिए कार्य संविदा को स्वीकार किया। वहां उन्होंने स्वयं अपनी आंखों से पूर्वाग्रह देखा, जहां उन्हें एक अश्वेत होने के कारण रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर निकाल दिया गया, जबकि उनके पास यात्रा का वैध टिकट था। यह घटना उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ बनी।
गांधी जी ने सत्याग्रह को ‘सत्य के लिए एक अथक खोज और सत्य की खोज की दृढ़ता’ के रूप में बताया। उन्होंने ट्रांसवाल में पहली बार एक नए अध्यादेश का विरोध करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल किया, जो वहां रहने वाले भारतीय समुदाय के प्रति भेदभाव दर्शाता था। आगे चलकर, भारत में आने के बाद उन्होंने ‘स्वराज’ या स्वतंत्रता हेतु संघर्ष में इसे एक मुख्य विधि के रूप में अहिंसात्मक विरोध का तरीका अपनाया।
गांधी जी ने वर्ष 1917-18 के दौरान बिहार के चम्पारण नामक स्थान के खेतों में पहली बार भारत में सत्याग्रह का प्रयोग किया। यहां अकाल के समय गरीब किसानों को अपने जीवित रहने के लिए जरुरी खाद्य फसलें उगाने के स्थान पर नील की खेती करने के लिए ज़ोर डाला जा रहा था। उन्हें अपनी पैदावार का कम मूल्य दिया जा रहा था और उन पर भारी करों का दबाव था। गांधी जी ने उस गांव का विस्तृत अध्ययन किया और जमींदारों के विरुद्ध विरोध का आयोजन किया, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके कारावास में डाले जाने के बाद और अधिक प्रदर्शन किए गए। जल्दी ही गांधी जी को छोड़ दिया गया और जमींदारों ने किसानों के पक्ष में एक करारनामे पर हस्ताक्षर किए, जिससे उनकी स्थिति में सुधार आया।
इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए किए जाने वाले अन्य अभियानों में सत्याग्रह और अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि असहयोग आंदोलन, नागरिक अवज्ञा आंदोलन, दांडी यात्रा तथा भारत छोड़ो आंदोलन, गांधी जी के प्रयासों से अंत में भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली।
महात्मा गांधी द्वारा सत्य और अहिंसा के इन मूल्यों को दशकों पहले स्थापित किया गया था किन्तु ये आज पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण बन गए हैं। विवाद, हिंसा और आतंकवाद के तिहरे जोखिम के कारण इन विविध विचारों और अवधारणाओं के प्रति सहनशीलता महत्वपूर्ण हो गई है। विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के प्रति आदर केवल तभी लाया जा सकता है जब हम एक दूसरे से बात करें और बात सुनें तथा समझें। प्रत्येक सक्रिय लोकतंत्र में सहनशीलता एक महत्वपूर्ण पक्ष है जहां सभी की चिंता विशेष रूप से निर्धन वर्ग, महिलाओं और अपेक्षित समुदायों को अवश्य संबोधित किया जाना चाहिए। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि ऐसा कोई मुद्दा नहीं है जिसे शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया न जा सके और हमें इस अभ्यास को बनाए रखने के लिए कार्य करना चाहिए।
"मैं नहीं चाहता कि मेरे घर के सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद हों। मैं एक ऐसा घर चाहता हूं जिसकी सभी खिड़कियां और दरवाजे खुले हों, जिसमें हर भूमि और राष्ट्र की सांस्कृतिक पवन होकर गुजरे।"
- महात्मा गांधी
संयुक्त राष्ट्र ने इन वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण मूल्यों के निष्पादन को मान्यता देकर 2 अक्तूबर, महात्मा गांधी के जन्म दिवस कोअंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस(बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) के रूप में अपनाया है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महात्मा गांधी का यह अनश्वर संदेश आने वाले वर्षों में अनेक पीढियों तक प्रचलित रहेगा।
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