राजस्थान में अब मच्छरों पर सैटेलाइट से नजर रखी जाएगी। इससे मलेरिया और डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का पता चल सकेगा। इन रोगों से बढ़ती मौतों के बाद राष्ट्रीय स्तर के दो संस्थान सर्वे करके केन्द्र सरकार को रिपोर्ट सौंपेंगे।
इण्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च(आईसीएमआर) ने इस मेगा प्रोजेक्ट का खाका तैयार कर लिया है। राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान की मदद से सैटेलाइट से देश के मलेरिया और डेंगू प्रभावित प्रदेशों का सर्वे होगा। इसके लिए जियोग्राफिकल इंफारमेशन सिस्टम (जीआईएस) तैयार होगा। जीआईएस के जरिए तमिलनाडु, कर्नाटक, पांडिचेरी व केरल में तकनीक का प्रयोग हुआ है। दिल्ली और असम के बाद इसकी शुरूआत राजस्थान में होगी। इसमें प्रदेश के जलभराव क्षेत्रों में मच्छरों की ब्रीडिंग की मैपिंग की जाएगी।
राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक जीआईएस की रिमोट सेंसिंग तकनीक से न केवल डेंगू, बल्कि मच्छर जनित अन्य रोगों चिकनगुनिया, मलेरिया आदि के बारे में जानकारी मिलेगी। सैटेलाइट इमेज की मदद से इन रोगों से सम्बन्घित प्रभावित जगहों पर ही बचाव कार्य करने से मानव श्रम की बचत होगी। वैज्ञानिक बताते हैं कि इसरो ने ब्रीडिंग वाली जगहों की सैटेलाइट तस्वीरें देने वाला सॉफ्टवेयर तैयार किया। यह सॉफ्टवेयर मच्छरों की ब्रीडिंग के स्थानों की तस्वीर लेगा।
सैटेलाइट में 22 पटि्टयां पूरी होने के बाद फिर वह उसी जगह का चित्र खींचता है, जहां पहली बार खींचा। ऎसे में मच्छरों के विकास का पता चल जाता है। सैटेलाइट इमेज में जलभराव काले रंग का दिखेगा और मच्छरों के ब्रीडिंग वाली जगहों का रंग बदला हुआ दिखेगा। फिलहाल सैटेलाइट तकनीक से यह काम असम में चल रहा है।
इण्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च(आईसीएमआर) ने इस मेगा प्रोजेक्ट का खाका तैयार कर लिया है। राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान की मदद से सैटेलाइट से देश के मलेरिया और डेंगू प्रभावित प्रदेशों का सर्वे होगा। इसके लिए जियोग्राफिकल इंफारमेशन सिस्टम (जीआईएस) तैयार होगा। जीआईएस के जरिए तमिलनाडु, कर्नाटक, पांडिचेरी व केरल में तकनीक का प्रयोग हुआ है। दिल्ली और असम के बाद इसकी शुरूआत राजस्थान में होगी। इसमें प्रदेश के जलभराव क्षेत्रों में मच्छरों की ब्रीडिंग की मैपिंग की जाएगी।
राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक जीआईएस की रिमोट सेंसिंग तकनीक से न केवल डेंगू, बल्कि मच्छर जनित अन्य रोगों चिकनगुनिया, मलेरिया आदि के बारे में जानकारी मिलेगी। सैटेलाइट इमेज की मदद से इन रोगों से सम्बन्घित प्रभावित जगहों पर ही बचाव कार्य करने से मानव श्रम की बचत होगी। वैज्ञानिक बताते हैं कि इसरो ने ब्रीडिंग वाली जगहों की सैटेलाइट तस्वीरें देने वाला सॉफ्टवेयर तैयार किया। यह सॉफ्टवेयर मच्छरों की ब्रीडिंग के स्थानों की तस्वीर लेगा।
सैटेलाइट में 22 पटि्टयां पूरी होने के बाद फिर वह उसी जगह का चित्र खींचता है, जहां पहली बार खींचा। ऎसे में मच्छरों के विकास का पता चल जाता है। सैटेलाइट इमेज में जलभराव काले रंग का दिखेगा और मच्छरों के ब्रीडिंग वाली जगहों का रंग बदला हुआ दिखेगा। फिलहाल सैटेलाइट तकनीक से यह काम असम में चल रहा है।
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