शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

फैशन के दौर में लुप्त होती बैलगाडिय़ां



फैशन के दौर में लुप्त होती बैलगाडिय़ां


क्षेत्र में बैलगाडिय़ों की संख्या लगातार घट रही है। आधुनिक संसाधनों के साथ फैशन का दौर बढऩे से बैलगाडिय़ों के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। पहले शहर सहित गांवों में सामान आदान-प्रदान करने के लिए अधिकांश बैलगाडिय़ों का उपयोग ही होता था, लेकिन वर्तमान में सामान की जल्दी डिलवरी लेने की होड़ में इनकी मांग कम हो जाने से धीरे-धीरे ये लुप्त होती जा रही है। करीब दो दशक पूर्व यहां धानमंडी व मालियोवास में बैलगाडिय़ों की सुबह से देर शाम तक रेलम-पेल लगी रहती थी, लेकिन अब एक-दो बैलगाड़ी ही नजर आती है।


सफर के लिए थी उपयोगी

एक जमाना था कि जिस व्यक्ति के पास ऊंट, घोड़े व बैल थे एवं इनके माध्यम से संचालित गाडिय़ां रहती थी। उस व्यक्ति को धनाढ्य ही नहीं बल्कि गांव, मोहल्ले में उसका काफी सम्मान किया जाता है, लेकिन फैशन के साथ आधुनिक वाहनों की चलन बढ़ते ही इसकी मांग घट गई। पहले इसका उपयोग सिर्फ सामान लाने में नहीं बल्कि सवारियों के लिए भी होता था। गांवों, ढाणियों में ग्रामीणों के आने-जाने के लिए बैलगाडिय़ों का ही उपयोग होता था।

आधुनिकता की मार : बैलगाडिय़ों के साथ ही ऊंट गाडिय़ों व तांगों पर भी फैशन की मार पड़ी है। इसकी वजह है अधिकांश लोग न तो इन्हें सामान के लिए किराए पर ले जाते हैं और नहीं इसमें सवारी करना पसंद करते हैं। पशु गाडिय़ों के संचालकों की माने तो पहले इस क्षेत्र में विभिन्न सामग्रियों का आदान-प्रदान बैलगाडिय़ों के माध्यम से ही किया जाता था, लेकिन इस समय आधुनिक वाहनों की चलन बढऩे से व्यापारियों व नागरिकों ने बैलगाडिय़ों में सामान लाना ही कम कर दिया साथ ही ऑटो रिक्शाओं की चलन होते ही अधिकांश व्यक्तियों ने अपनी बैलगाडिय़ां बेच दी है।

खर्च ज्यादा, आवक कम

बैलगाड़ी के मालिक ताराराम मेघवाल ने बताया कि पहले सिर्फ शिवगंज क्षेत्र में पचास से अधिक बैलगाडिय़ां थी, जो बाजार में सामान लाने ले जाने के उपयोग में आती थी, लेकिन पिछले 9-10 साल में तो इसकी संख्या और घट गई है। अब सिर्फ दर्जनभर बैलगाडिय़ां ही रही है। मेघवाल ने बताया कि दो बैलों के पालन-पोषण के लिए प्रतिदिन 25-30 रुपए ही व्यय होते थे, लेकिन इससे एक बैल का पेट भी नहीं भर पाता है। घास की कीमत बढऩे से दिनभर जो किराया राशि प्राप्त होती है, उसके हिसाब से नफे में भी कमी हुई है।

पहले आवश्यकता थी, अब शौक

आधुनिकता के इस दौर में बैलगाडिय़ों का उपयोग ब्याह-शादियों या फिर किसी मेले में ही उपयोग किया जाता था, जबकि पहले अधिकांश बारातें इन बैलगाडिय़ों के माध्यम से ही दुल्हन के घर पहुंचती थी। इसके लिए बैलों व गाडिय़ों को विभिन्न रंगों एवं अन्य सामग्री से सजाया जाता था, लेकिन अब तो सभी बारातें वाहनों में ही जाती है। सिर्फ कुछ धनाढ्य एवं शौकिया व्यक्ति ही इन बैलगाडिय़ों में बारात को ले जाते है। इसके लिए भी उन्हें बैलगाडिय़ों को ढूंढने के लिए आस पास के दर्जनों गांवों में चक्कर लगाने पड़ते है,ं तब कहीं बैलगाडिय़ां बारात के लिए मिल पाती है।

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