सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

इंदिरा गांधी की शहादत को राष्‍ट्र कभी नहीं भुला पाएगा.

देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शहादत को राष्‍ट्र कभी नहीं भुला पाएगा. 31 अक्‍तूबर, 1984 ही वह तारीख थी, जब इंदिरा गांधी देश की एकता और अखंडता के लिए कुर्बान हो गईं.
31 अक्तूबर 1984, को बुधवार का दिन. अक्तूबर की आखिरी सुबह. मौसम पूरी तरह करवट ले चुका है. ठंड दिल्ली में दस्तक दे चुकी है. गुनगुनी धूप के बीच हल्की सर्द हवा चल रही है. एक सफदरजंग बंगले के लॉन में चारों तरफ लगे नीम और इमली के पेड़ों के साथ फूल भी खिलखिला रहे हैं.

1, सफदरजंग के परिसर के अंदर ही दो बंगले हैं. एक बंगले में प्रधानमंत्री का दफ्तर और लोगों से मिलने-जुलने के लिए कई कमरे हैं, जबकि दूसरा बंगला प्रधानमंत्री का प्राइवेट क्वार्टर है, जिसमें इंदिरा गांधी अपने बेटे राजीव गांधी, बहू सोनिया गांधी और पोते-पोती राहुल और प्रियंका के साथ रहती हैं.





इस वक्त बंगले में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी बड़ी बहू सोनिया गांधी ही मौजूद हैं. राजीव गांधी जनवरी 1985 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी के सिलसिले में पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए हुए हैं, जबकि इंदिरा गांधी के दोनों पोते-पोती प्रियंका और राहुल गांधी सुबह-सुबह ही स्कूल के लिए निकल चुके हैं.

प्रियंका और राहुल को गले लगा कर स्कूल भेजने के बाद इंदिरा गांधी कुछ देर लॉन मे ही टहलती हैं. 66 साल की उम्र होने के बावजूद वो ना सिर्फ पूरी तरह फिट हैं बल्कि पांचवीं बार देश की प्रधानमंत्री बनने की तैयारी मे जुटी हैं.

इंदिरा गांधी अकसर देर रात रात काम किया करती थीं और सुबह चार बजे उठ भी जाती थीं. वो अकसर कहा करती थीं कि चार घंटे की नींद भी बहुत होती है, पर 31 अक्तूबर को सुबह वो थोड़ी देर से सोकर उठीं. दरअसल वो उड़ीसा की थका देने वाली चुनावी रैली से एक दिन पहले ही लौटी थीं.

मार्निंग वॉक और रुटीन योगा के बाद इंदिरा गांधी अब अपने दफ्तर जाने के लिए तैयार होने लगीं. ये सुबह उनके लिए खास है. बाहर कम्पाउंड में ही बने उनके दफ्तर में एक ब्रिटिश पत्रकार पीटर उस्तिनोव उनका इंतज़ार कर रहा है. दरअसल पीटर इंदिरा गांधी के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहा है. और इसी डॉक्यूमेंट्री के लिए वो इंदिरा गांधी का इंटरव्यू करने जा रहा था. पीटर एक दिन पहले ही इंदिरा गांधी के साथ उड़ीसा दौरे में दो दिन बिताने के बाद दिल्ली लौटा है.



चूंकि इंटरव्यू का वक्त्त तय है और इंटरव्यू एक डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा, लिहजा ब्रिटिश पत्रकार की गुजारिश पर इंदिरा गंधी अपने दफ्तर में ही मेकअप करवाने लगती हैं.

अभी इंदिरा गांधी मेकअप ही करवा रही थीं कि तभी उनके निजी सचिव आरके धवन दफ्तर पहुंचे. उन्हें भी इस इंटरव्यू के बारे में पहले से पता था. कुछ ही देर में इंदिरा गांधी का मेकप पूरा हो गया. इसके बाद वो आरके धवन को साथ लेकर दफ्तर से बाहर निकली पड़ीं.

9 बजकर 27 मिनट पर इंदिरा गांधी अपने बंगले से एक अकबर रोड़ पर बने अपने दफ्तर की तरफ बढ़ना शुरू करती हैं. एक घंटे का इंटरव्‍यू यहीं रिकार्ड होना है. इंदिरा आगे-आगे चल रही हैं, जबकि उनसे दो-तीन कदम पीछे भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के सुरक्षा गार्ड और आरके धवन चल रहे हैं. सफदरजंग बंगले से एक अकबर रोड दफ्तर जाने के लिए सिर्फ एक गेट पार करना होता है और इंदिरा गांधी अब उसी गेट की तरफ बढ़ रही हैं.

इंदिरा अब धीरे-धीरे गेट के करीब होती जा रही हैं. उनकी रफ्तार से रफ्तार मिलाते हुए सुरक्षा गार्ड और धवन अब भी पीछे-पीछे चल रहे हैं. अब तक सब कुछ शांत और खामोश है और सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा प्रधानमंत्री दफ्तर के रुटीन और वक्त के हिसाब से होना चाहिए.

9 बजकर 28 मिनट पर इंदिरा गांधी गेट के बिल्कुल करीब पहुंचती हैं. उन्हें करीब आता देख खास गेट पर तैनात दोनों सुरक्षा गार्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह फौरन अलर्ट हो जाते हैं. इंदिरा गांधी की सुरक्षा में फिलहाल यही दोनों अकेले सिख गार्ड हैं. दरअसल 6 जून 1984 को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी की सुरक्षा में तैनात सभी सिख गार्डस हटा लिए गए थे. ऐसा खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के बाद किया गया था, लेकिन जब इंदिरा गांधी को ये बात पता चली तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया और सभी सिख गार्डस को वापस बुला लिया.


गेट पर तैनात गार्ड बेअंत सिंह को इंदिरा गांधी दस साल से जानती हैं. ये उनका फेवरिट गार्ड है, जबकि बेअंत सिंह से कुछ कदम की दूरी पर खड़ा सतंवत सिंह प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सिर्फ पांच महीने पहले ही आया है.

सिर्फ दो महीने पहले ही किसी ने सतवंत सिंह और बेअंत सिंह को प्रधानमंत्री निवास में देख कर इंदिरा गांधी से ये पूछा था कि गोल्डन टेंपल में आर्मी भेजने के उनके विवादास्पद फैसले के बाद भी क्या वो अपने सिख सुरक्षा गार्ड पर भरोसा करती हैं? तब इंदिरा गांधी ने बेअंत सिंह की तरफ देखने के बाद ये जवाब दिया था कि जब तक मेरे पास ऐसे सिख हैं तब तक मुझे डरने की जरूरत नहीं है.

वही बेअंत सिंह सतवंत सिंह के साथ गेट पर ड्यूटी दे रहा था. गेट की तरफ बढ़ती इंदिरा गांधी को करीब आते देख दोनों की सांसे अचानक तेज़ हो जाती हैं.

9 बज कर 29 मिनट पर नारंगी रंग की प्रिंट साड़ी पहनीं इंदिरा गांधी अब गेट से मुश्किल से सात फीट की दूरी पर हैं. तभी इंदिरा गांधी की नजर दोनों गार्ड की नजरों से टकराती है. नज़रें मिलते ही सतवंत और बेअंत सिंह उन्हें नमस्ते कहता है. इंदिरा गांधी भी मुस्कुराते हुए दोनों को जवाब देती हैं...नमस्ते. ये उनके मुंह से निकला आखिरी शब्द था.

9 बज कर 30 मिनट पर इधऱ इंदिरा ने दोनों की नमस्ते का जवाब दिया, उधऱ उसी पल बेअंत सिंह ने पलक झपकते ही अपनी कमर पर लगे प्वाइंट 38 बोर का सर्विस रिवॉल्वर निकाला और बेहद करीब से एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं.



गोली लगते ही इंदिरा गांधी वहीं ज़मीन पर गिर पड़ीं, पर इससे पहले कि उनके साथ चल रहे सुरक्षा गार्ड या आरके धवन कुछ सोच भी पाते कि तभी सतवंत सिंह ने अपनी स्टेनगन का मुंह जमीन पर लहूलुहान गिरी इंदिरा गांधी की तरफ घुमाया और मैग्जीन में जमा 27 की 27 गोलियां खाली कर दीं.

इस तरह देश की एक महान नेता हमेशा के लिए इहलोक को त्‍यागकर परलोक सिधार गईं. देश आज भी इंदिरा गांधी के कृतित्‍व के प्रति ऋणी है.





1 टिप्पणी:

  1. इस पोस्ट के माध्यम से आपने एक ऐसे राजनैतिक व्यक्तित्व को याद किया है जिसे अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्र में ही नही अपितु विश्व में भी मान्यता मिली थी । इंदिरा गांधी की हत्या उस समय भी निंदनीय थी एवं आज भी निंदनीय है । पोस्ट अच्छा लगा । उनको विन्रम्र श्रद्धांजलि । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

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