स्वर्णनगरी का गरबा महोत्सव हंै खास
यहां घूंघट में होते है गरबे
इसके पीछे न तो पर्दा प्रथा है और न ही किसी का डर, कारण है भी तो मात्र अपने बड़ों का सम्मान
जैसलमेर स्वर्णनगरी में चल रहे गरबा महोत्सव में गुजराती व राजस्थानी संस्कृतियों का मेल देखने को मिलता है। यहां गरबा आयोजन होते है लेकिन स्थानीय मान्यताओं एवं परंपराओं की जद में रह कर। आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल न होते हुए महिलाएं एवं युवतियां देवी की आराधना मान कर गरबो का लुत्फ उठाते है। यहां गरबा आयोजन होते तो गुजराती भजनों पर है लेकिन करने वाली महिलाएं राजस्थानी एवं पारंपरिक वेषभूषा में गरबा करती है। यहां तक कि गरबा पांडालों में महिलाएं घुंघट की आड़ में भी गरबा करते देखी जा सकती है।
यहां की महिलाएं किसी दबाव में आकर नहीं बल्कि अपने परिजनों एवं बड़े बुजुगों के सम्मान में घुंघट में गरबा करती है। यह अपने आप में एक मिसाल है। सभी आधुनिक है, गरबा की भी चाहत है लेकिन अपने बड़ों के आदर में महिलाएं घुंघट की आड़ में करती है गरबा।
नहीं बजते फिल्मी गाने: शहर में विभिन्न स्थानों पर होने वाले गरबा महोत्सव में किसी भी पांडाल में फिल्मी तथा पॉप गीतों पर युवा नहीं थिरकते है। गांधी कॉलोनी, कलाकार कॉलोनी, मोहता पाड़ा, मैनपुरा आदि स्थलों पर होने वाले गरबों में फिल्मी गीतों एवं रिमिक्स के उपयोग पर पूर्णतया पाबंदी है। यहां युवा थिरकते है भी तो गुजराती व राजस्थानी भजनों पर। यहां तक की उन फिल्मी रिमिक्स गानों पर भी रोक है जिनमें गरबा बीट का प्रयोग किया जाता है। युवाओं में जोश व जज्बा उस समय परवान पर होता है जब डीजे में गरबा बीट बजती है। साथ ही रात के 10.30 बजे के बाद गरबा आयोजनों पर पाबंदी के चलते सभी गरबा पांडाल बंद हो जाते है।
शाम होते ही शुरू हो जाती है रौनक: शाम होते ही शहर के गली मौहल्लों में सजे धजे पांडालों में गरबा महोत्सव की धुम प्रारंभ हो जाती है। डीजे पर बजने वाले गुजराती भजन एवं गरबा की धुन के मोहपाश से युवक युवतियां अपने आप को नहीं रोक पाते तथा पांडालों की तरफ खींचे चले आते है। जैसलमेर में यूं तो गरबा महोत्सव का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है लेकिन फिर भी शहर के हर युवक युवती के दिल में इन उत्सवों में शरीक होने की तम्मना जरुर है। शाम होते ही रोशनी से नहाए इन पांडालों में युवक युवतियों की रेलमपेल शुरू हो जाती है। कहीं गरबा तो कहीं डांडिया रास में जम कर युवा थिरकते है तथा मां दुर्गा की उपासना में लीन हो जाते है।
यहां घूंघट में होते है गरबे
इसके पीछे न तो पर्दा प्रथा है और न ही किसी का डर, कारण है भी तो मात्र अपने बड़ों का सम्मान
जैसलमेर स्वर्णनगरी में चल रहे गरबा महोत्सव में गुजराती व राजस्थानी संस्कृतियों का मेल देखने को मिलता है। यहां गरबा आयोजन होते है लेकिन स्थानीय मान्यताओं एवं परंपराओं की जद में रह कर। आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल न होते हुए महिलाएं एवं युवतियां देवी की आराधना मान कर गरबो का लुत्फ उठाते है। यहां गरबा आयोजन होते तो गुजराती भजनों पर है लेकिन करने वाली महिलाएं राजस्थानी एवं पारंपरिक वेषभूषा में गरबा करती है। यहां तक कि गरबा पांडालों में महिलाएं घुंघट की आड़ में भी गरबा करते देखी जा सकती है।
यहां की महिलाएं किसी दबाव में आकर नहीं बल्कि अपने परिजनों एवं बड़े बुजुगों के सम्मान में घुंघट में गरबा करती है। यह अपने आप में एक मिसाल है। सभी आधुनिक है, गरबा की भी चाहत है लेकिन अपने बड़ों के आदर में महिलाएं घुंघट की आड़ में करती है गरबा।
नहीं बजते फिल्मी गाने: शहर में विभिन्न स्थानों पर होने वाले गरबा महोत्सव में किसी भी पांडाल में फिल्मी तथा पॉप गीतों पर युवा नहीं थिरकते है। गांधी कॉलोनी, कलाकार कॉलोनी, मोहता पाड़ा, मैनपुरा आदि स्थलों पर होने वाले गरबों में फिल्मी गीतों एवं रिमिक्स के उपयोग पर पूर्णतया पाबंदी है। यहां युवा थिरकते है भी तो गुजराती व राजस्थानी भजनों पर। यहां तक की उन फिल्मी रिमिक्स गानों पर भी रोक है जिनमें गरबा बीट का प्रयोग किया जाता है। युवाओं में जोश व जज्बा उस समय परवान पर होता है जब डीजे में गरबा बीट बजती है। साथ ही रात के 10.30 बजे के बाद गरबा आयोजनों पर पाबंदी के चलते सभी गरबा पांडाल बंद हो जाते है।
शाम होते ही शुरू हो जाती है रौनक: शाम होते ही शहर के गली मौहल्लों में सजे धजे पांडालों में गरबा महोत्सव की धुम प्रारंभ हो जाती है। डीजे पर बजने वाले गुजराती भजन एवं गरबा की धुन के मोहपाश से युवक युवतियां अपने आप को नहीं रोक पाते तथा पांडालों की तरफ खींचे चले आते है। जैसलमेर में यूं तो गरबा महोत्सव का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है लेकिन फिर भी शहर के हर युवक युवती के दिल में इन उत्सवों में शरीक होने की तम्मना जरुर है। शाम होते ही रोशनी से नहाए इन पांडालों में युवक युवतियों की रेलमपेल शुरू हो जाती है। कहीं गरबा तो कहीं डांडिया रास में जम कर युवा थिरकते है तथा मां दुर्गा की उपासना में लीन हो जाते है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें