वायु सेना में हुआ करोड़ों का घोटाला
नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भारतीय वायु सेना द्वारा 676 करोड रूपये की लागत से खरीदे गए गुब्बारों वाले राडारों के खराब होने का सनसनीखेज मामला पकडा है। वायु सेना की शब्दावली में एयरोस्टेट कहलाई जाने वाली यह राडार प्रणाली 15 हजार फुट की ऊंचाई पर लगाने के लिए खरीदी गई थी ताकि बेहद नीची उडान भरने भरने वाले दुश्मन के लडाकू विमानों को पकडा जा सके। भारतीय वायु सेना ने 6 एयरोस्टेट राडारों की जरूरत बताई थी और तुरंत की जरूरतों को देखते हुए मंत्रालय ने इजरायल की राफेल कंपनी से दो प्रणालियां खरीदीं।
संसद में आज पेश कैग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि इनमें से एक एयरोस्टेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया और दूसरे गुब्बारे के कपडे से हीलियम गैस का रिसाव हो गया। एक एयरोस्टेट 2007 में लगाया गया और इसके रखरखाव के लिए चार मौसम अधिकारियों और नौ मौसम सहायकों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया ताकि मौसम और हवा के रूख पर ध्यान रखा जा सके और गुब्बारे पर लगे राडार को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन मौसम अधिकारी की तैनाती नहीं की गई और 2009 में यह प्रणाली दुर्घटनाग्रस्त होकर धराशाई हो गई। इस तरह 338 करोड रूपये मिट्टी में मिल गए।
हादसे की जांच के लिए वायु सेना ने अदालती जांच बैठाई और तीन अधिकारियों को दोषी पाया गया। कैग ने यह बताया है कि एयरोस्टेट में हीलियम गैस भरकर फुलाने के तीसरे साल में रिसाव शुरू हो गया कपडे में छेद के कारण रिसाव की मात्रा 30 पौंड प्रति से बढकर 140 पौंड प्रतिदिन हो गई। दूसरे एयरोस्टेट का भी यही हाल हुआ और उसके कपडे से भी गैस रिसने लगी। इस तरह इन दोनों प्रणालियों को चालू रखने के लिए वायु सेना ने हर साल एक करोड रूपये का अतिरिक्त खर्च किया। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि 338 करोड रूपये का एक गुब्बारा मई 2009 से खराब पडा है और दूसरे के संचालन पर 2012 तक 302 करोड रूपये की लागत आ चुकी होगी और उसकी सेवाकाल की 80 प्रतिशत अवधि भी खत्म हो चुकी होगी।
नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भारतीय वायु सेना द्वारा 676 करोड रूपये की लागत से खरीदे गए गुब्बारों वाले राडारों के खराब होने का सनसनीखेज मामला पकडा है। वायु सेना की शब्दावली में एयरोस्टेट कहलाई जाने वाली यह राडार प्रणाली 15 हजार फुट की ऊंचाई पर लगाने के लिए खरीदी गई थी ताकि बेहद नीची उडान भरने भरने वाले दुश्मन के लडाकू विमानों को पकडा जा सके। भारतीय वायु सेना ने 6 एयरोस्टेट राडारों की जरूरत बताई थी और तुरंत की जरूरतों को देखते हुए मंत्रालय ने इजरायल की राफेल कंपनी से दो प्रणालियां खरीदीं।
संसद में आज पेश कैग की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि इनमें से एक एयरोस्टेट दुर्घटनाग्रस्त हो गया और दूसरे गुब्बारे के कपडे से हीलियम गैस का रिसाव हो गया। एक एयरोस्टेट 2007 में लगाया गया और इसके रखरखाव के लिए चार मौसम अधिकारियों और नौ मौसम सहायकों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया ताकि मौसम और हवा के रूख पर ध्यान रखा जा सके और गुब्बारे पर लगे राडार को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन मौसम अधिकारी की तैनाती नहीं की गई और 2009 में यह प्रणाली दुर्घटनाग्रस्त होकर धराशाई हो गई। इस तरह 338 करोड रूपये मिट्टी में मिल गए।
हादसे की जांच के लिए वायु सेना ने अदालती जांच बैठाई और तीन अधिकारियों को दोषी पाया गया। कैग ने यह बताया है कि एयरोस्टेट में हीलियम गैस भरकर फुलाने के तीसरे साल में रिसाव शुरू हो गया कपडे में छेद के कारण रिसाव की मात्रा 30 पौंड प्रति से बढकर 140 पौंड प्रतिदिन हो गई। दूसरे एयरोस्टेट का भी यही हाल हुआ और उसके कपडे से भी गैस रिसने लगी। इस तरह इन दोनों प्रणालियों को चालू रखने के लिए वायु सेना ने हर साल एक करोड रूपये का अतिरिक्त खर्च किया। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि 338 करोड रूपये का एक गुब्बारा मई 2009 से खराब पडा है और दूसरे के संचालन पर 2012 तक 302 करोड रूपये की लागत आ चुकी होगी और उसकी सेवाकाल की 80 प्रतिशत अवधि भी खत्म हो चुकी होगी।
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