रविवार, 4 सितंबर 2011

युवाओं का हीरो राहुल नहीं, अन्ना

नई दिल्ली।। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का आंदोलन गैर-राजनीतिक था, लेकिन इसका जबर्दस्त राजनीतिक असर दिख रहा है। टीम अन्ना के सदस्यों के खिलाफ जुबानी जंग छेड़ने और बार-बार चुनाव के मैदान में किस्मत आजमाने की चुनौती देने वाले मंत्रियों और नेताओं के लिए ताजा सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं। anna-hazare-rahul-gandhi.jpg

स्टार न्यूज और मार्केट रिसर्च कंपनी नीलसन के सर्वे में यह बात सामने आई है कि आंदोलन की लहर का फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिलता दिख रहा है। अगर अभी लोकसभा के चुनाव हुए तो मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल अपनी सीट भी नहीं बचा पाएंगे। यही नहीं, इसकी वजह से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का क्रेज भी घटा है। युवाओं की पसंद भी राहुल नहीं, अन्ना हैं।

आंदोलन से बीजेपी को फायदा
देश के 28 शहरों में कराए गए इस सर्वे में अभी चुनाव होने पर 32 फीसदी लोगों ने बीजेपी को वोट देने की बात कही। सिर्फ 20 % ने कांग्रेस पर भरोसा जताया। सर्वे में चौंकाने वाली बात यह है कि महज तीन महीने में तस्वीर पूरी तरह बदल गई। आंदोलन से पहले मई, 2011 में कराए गए ऐसे ही सर्वे में 30 % लोग कांग्रेस के पक्ष में थे, जबकि सिर्फ 23% ने ही बीजेपी को वोट देने की बात कही थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में जिन लोगों ने कांग्रेस पार्टी को वोट दिया था, उनमें से अब 11 % बीजेपी को वोट देने के हक में हैं। वहीं, जिन लोगों ने बीजेपी को वोट दिया था उनमें से महज़ 5% ही उनसे खिसक रहे हैं।

युवाओं का हीरो राहुल नहीं, अन्ना
अन्ना के आंदोलन से कांग्रेस के साथ-साथ राहुल गांधी की भी किरकिरी हुई है। आंदोलन के दौरान चुप्पी साधने वाले राहुल जब संसद में बोले भी तो उनके बयान को जनलोकपाल के खिलाफ माना गया। सर्वे में शामिल 54% लोगों का कहना है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का यह सही समय नहीं है। अन्ना 78 % लोगों की पसंद हैं, जबकि सिर्फ 17 % लोग ने ही राहुल को तरजीह दी है।यहां तक कि 18-25 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं में भी राहुल की लोकप्रियता अन्ना से कम है।

किरन बेदी के आगे नहीं टिकेंगे सिब्बल
अगर अभी लोकसभा के चुनाव हुए तो मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल अपनी चांदनी चौक सीट नहीं बचा पाएंगे। अगर उनका सामना पूर्व आइपीएस किरन बेदी से हो गया, तब तो उन्हें बड़ी फजीहत का सामना करना पड़ सकता है। सर्वे में लोगों से यह भी पूछा गया कि किरन बेदी बनाम सिब्बल के मुकाबले में वह किसे चुनेंगे? आश्चर्यजनक रूप से 74 फीसदी ने बेदी को चुना। सिब्बल सिर्फ 14 फीसदी वोट हासिल कर सके।

चिदंबरम पर भारी केजरीवाल
अन्ना के आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल भी हीरो के तौर पर उभरे हैं। केजरीवाल बनाम गृह मंत्री पी. चिदंबरम के मुकाबले में भी ज्यादातर लोगों ने केजरीवाल का पक्ष लिया। 58 % लोग केजरीवाल के हक में वोट डालने की बात कबूल कर रहे हैं, जबकि 24 % लोग ही चिदंबरम को चुनना पसंद करेंगे। सर्वे में शामिल करीब 62 % लोगों का मानना है कि अरविंद केजरीवाल युवा भारत के नए रोल मॉडल हैं। उत्तर भारत में तो 75% लोग उन्हें रोल मॉडल समझते हैं।

अन्ना के साथ देश की जनता
आलोचक भले ही अन्ना के 'जिद्दी रवैये' की निंदा करते हों, लेकिन जनता पूरी तरह से उनके साथ है। सर्वे में शामिल 82% लोगों का कहना था कि सरकार से अपनी मांग मनवाने के लिए अन्ना के आमरण अनशन का तरीका वाजिब था। सिर्फ 12% लोगों ने अन्ना के तरीके से असहमति जताई और उसे सरकार के साथ ब्लैकमेलिंग करार दिया। यह मानने वालों की संख्या बड़ी है कि जन लोकपाल विधेयक भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में मील का पत्थर साबित हो सकता है। 54 % लोग मानते हैं कि सरकार का अन्ना के आंदोलन से निपटने का तरीका गलत था। 64 % लोगों का कहना था कि मनमोहन कैबिनेट के बड़े नामों की वजह से ही अन्ना को 12 दिन तक अनशन करना पड़ा। सर्वे में 8,926 लोगों ने अपनी राय दी।

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